एलाने-जंग हो गया
मोह भंग हो गया
अब जंग भ्रष्टाचार से
केंद्र की सरकार से
यह पुनीत कार्य है
क्या तुम्हे स्वीकार्य है
राष्ट्र की पुकार सुन
अन्ना की हुंकार सुन
अमर सपूत हो अगर
उठो चलो धरो डगर
मां भारती का कर्ज है
हम सबका यही फर्ज है
इस देश को बचना है
जेल में भी जाना है
इस् ब्लॉग के माध्यम से मैं कोशिश करूँगा कि एकत्र किए गये आलेखों से लोगों के समक्ष मानव अधिकारों से जुड़ी हुई बातें एवं हनन के मामलों को ला सकूं
मंगलवार, 16 अगस्त 2011
सोमवार, 15 अगस्त 2011
दिल्ली की सरकार संभल जा
दिल्ली की सरकार संभल जा
वो गांधी का अनुयायी है
कहते है सब अन्ना उसको
वह देश का बड़ा भाई है
तन मन धन सब दान दिया
भारत माता का लाल है वो
मानो मांग जनलोकपाल की
वर्ना फिर महा काल है वो
अनसन पर गर बैठ गया तो
समझो शामत आ जायेगी
और महंगा होगा जेल भेजना
दिल्ली की सत्ता जायेगी
मत करो उपेक्षा जनहित की
अब अपना मुह मत मोड़ो
जनअधिकारों को मान्य करो
आसुरी प्रवित्ति छोडो
वो गांधी का अनुयायी है
कहते है सब अन्ना उसको
वह देश का बड़ा भाई है
तन मन धन सब दान दिया
भारत माता का लाल है वो
मानो मांग जनलोकपाल की
वर्ना फिर महा काल है वो
अनसन पर गर बैठ गया तो
समझो शामत आ जायेगी
और महंगा होगा जेल भेजना
दिल्ली की सत्ता जायेगी
मत करो उपेक्षा जनहित की
अब अपना मुह मत मोड़ो
जनअधिकारों को मान्य करो
आसुरी प्रवित्ति छोडो
गुरुवार, 11 अगस्त 2011
रक्षा करो अन्नदाता की
अरे किसान की कौन सुने
सत्ता का खेल जारी है
जंगल जमीन सब छीन रहे
अब पानी की बारी है
सुन सकते हो लालबहादुर
क्या हुआ तुम्हारा नारा
जो अधिकारों की मांग करे
वो मारा जाय बेचारा
पुलिस कर रही हत्याएं
और सरकारें सोती हैं
आह, चार को मार दिए
भारत माता भी रोती हैं
वो किसान हैं कहाँ जांय
क्या करें तुम्ही बतलाओं
रक्षा करो अन्नदाता की
स्वर्ग से वापस आओ
सत्ता का खेल जारी है
जंगल जमीन सब छीन रहे
अब पानी की बारी है
सुन सकते हो लालबहादुर
क्या हुआ तुम्हारा नारा
जो अधिकारों की मांग करे
वो मारा जाय बेचारा
पुलिस कर रही हत्याएं
और सरकारें सोती हैं
आह, चार को मार दिए
भारत माता भी रोती हैं
वो किसान हैं कहाँ जांय
क्या करें तुम्ही बतलाओं
रक्षा करो अन्नदाता की
स्वर्ग से वापस आओ
गुरुवार, 4 अगस्त 2011
बहुत हुआ यह अत्याचार
आम जनों को पता नहीं था
महंगाई की मार पड़ेगी
कालेधन और लोकपाल पर
मनमोहन सरकार अड़ेगी
अगर आमजन जाग गया तो
तुम चुनाव जाओगे हार
सरकारों अब दिशा बदल दो !
बहुत हुआ यह अत्याचार !!
भुला दिया तुमने जनता को
धनपशुओं का रख्खा ध्यान
इनके ही शोषण में फंसकर
फांसी लगाकर मरें किसान
ऐश कर रहे नेता-मंत्री
खूब कर रहे पापाचार
सरकारों अब दिशा बदल दो !
बहुत हुआ यह अत्याचार !!
अधिकारी घुसखोर हो गये
जनप्रतिनिधि चोर हो गये
जनता त्राहि त्राहि करती है
भूख कुपोषण से मरती है
दलित, किसान व मजदूरों के
छिने जा रहे है अधिकार
सरकारों अब दिशा बदल दो !
बहुत हुआ यह अत्याचार !!
महंगाई की मार पड़ेगी
कालेधन और लोकपाल पर
मनमोहन सरकार अड़ेगी
अगर आमजन जाग गया तो
तुम चुनाव जाओगे हार
सरकारों अब दिशा बदल दो !
बहुत हुआ यह अत्याचार !!
भुला दिया तुमने जनता को
धनपशुओं का रख्खा ध्यान
इनके ही शोषण में फंसकर
फांसी लगाकर मरें किसान
ऐश कर रहे नेता-मंत्री
खूब कर रहे पापाचार
सरकारों अब दिशा बदल दो !
बहुत हुआ यह अत्याचार !!
अधिकारी घुसखोर हो गये
जनप्रतिनिधि चोर हो गये
जनता त्राहि त्राहि करती है
भूख कुपोषण से मरती है
दलित, किसान व मजदूरों के
छिने जा रहे है अधिकार
सरकारों अब दिशा बदल दो !
बहुत हुआ यह अत्याचार !!
गुरुवार, 28 जुलाई 2011
मुंबई शहर की समेकित बाल विनाश योजना

समेकित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) के कार्यक्रम अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा हेतु तमाम अन्य योजनाओं के माध्यम से सरकार द्वारा करोड़ों का बजट आबंटित किया जा रहा है. ज्ञात हो कि इस मद में वर्ष २००९-१० में ८१७२ करोड़ तथा वर्ष २०१०-११ में ८७०० करोड़ रुपया आबंटित किया गया किन्तु क्या यह आपको पता है कि आईसीडीएस कार्यक्रम के लिए आबंटित इस भारी भरकम धनराशि का लाभ उन ३ करोड ५० लाख बच्चों को मिल पा रहा है, सरकार द्वारा जिन्हें लाभान्वित होने का दावा किया जा रहा है ? समेकित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) के तहत मुंबई में चल रही आँगनवाड़ियों (बालवाड़ी) को केंद्रित करके जब हमने इस विषय का अध्ययन किया तो काफी चौकाने वाले तथ्य उभर कर सामने आये जोकि काफी चिंताजनक हैं.
समेकित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) और उसी की तर्ज पर ही महाराष्ट्र राज्य में संचालित योजना “एकात्मिक बाल विकास योजना” के तहत कुल ८८ हजार २ सौ ७२ आँगनवाड़ियों को संचालित किया जा रहा है और बताते है कि महाराष्ट्र में इस योजना से ८६ लाख ३२ हजार बच्चे लाभान्वित हो रहे है किन्तु जब हमने इस आँगनवाड़ी योजना को लेकर मुंबई की स्थिति की जानकारी इकट्ठी की तो हमने पाया कि इन आँगनवाड़ियों (बालवाड़ी) की आड में भारी पैमाने पर गडबडियां की जा रही हैं. इन आँगनवाड़ियों (बालवाड़ी) से संबंधित गडबड़ियों एवं भ्रष्टाचार में आकंठ तक डूबे प्रकल्प अधिकारियों ( Project Officer) से लेकर आँगनवाडी कार्यकर्ता सभी शामिल है. इस योजना के मुंबई में संचालन का जिम्मा कुल ३२ प्रकल्प अधिकारियों ( Project Officer) पर है प्रत्येक प्रकल्प अधिकारी के अंतर्गत २० से २५ आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) प्रत्येक आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) में अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा प्राप्त कर रहे कम से कम ३० और अधिक से अधिक ५० बच्चे है. इस तरह मुंबई में सरकार द्वारा चलाई जा रही इन आँगनवाड़ियों (बालवाड़ी) में लगभग २८ हजार बच्चे अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा प्राप्त कर रहे है.
इन आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) के प्रत्येक बच्चे के लिए पूरक पोषाहार के रूप में मध्यान्ह भोजन ( Mid Day Meal) के रूप में प्रत्येक बच्चों के लिए १०० ग्राम प्रतिदिन पोषक तत्वों से भरपूर पका हुआ भोजन जिसमें एनपी एनएसपीई २००६ के संशोधित नियम के अनुसार पोषण सामग्री जिसमें ४५० कैलोरी, १२ प्रोटीन एवं सूक्ष्म आहार के रूप में आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन-ए, इत्यादि सक्षम आहारों की पर्याप्त मात्रा हो, दिया जाना चाहिए. मुंबई के जिस आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) में ५० बच्चे अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं उन्हें पोषक तत्वों से भरपूर पका हुआ भोजन १०० ग्राम के हिसाब से ५ किलो मिलना चाहिए किन्तु किन्तु आलम यह है कि इन केन्द्रों पर ठेकेदार संस्थाओं द्वारा दो से ढाई किलो ही पका हुआ खाना आँगनवाड़ियों (बालवाड़ी) के बच्चों में वितरित कर रहे है तथा इस चोरी के एवज में आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) कार्यकर्ता को ५० रूपये प्रतिदिन रिश्वत के रूप में दे रहे है.
५० रूपये रिश्वत पा जाने पर आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) कार्यकर्ता पोषक आहार मुहैया कराने वाले ठेकेदार के ५ किलो के चालान पर आँख बंद करके हस्ताक्षर कर रहे है. अगर आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) के बच्चों को दिया जाने वाला पका हुआ भोजन आधा से अधिक चोरी कर रहे हैं. तो पौष्टिक आहार के (Composition) जैसे कैलोरी, प्रोटीन, आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन-ए, आदि सक्षम आहारों के समिश्रण के अनुपालन का तो भगवान ही मालिक है. पोषक आहार उपलब्ध कराने वाले ठेकेदारों द्वारा प्रकल्प अधिकारी ( Project Officer) को उनके रिश्वत का हिस्सा पहुंचाया जाता है. बताया जाता है कि आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) कार्यकर्ताओं के ऊपर पर्यवेक्षक का एक पद होता है. एक पर्यवेक्षक के अनुसार उनकी शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया जाता. जो पर्यवेक्षक इन आँगनवाड़ियों (बालवाड़ी) में नियमतः काम करवाना चाहते है उन्हें या तो शीर्षस्थ अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित कर चुप करा दिया जाता है या तो उनका स्थानांतरण कर दिया जाता है.
मुंबई में चल रहे आँगनवाड़ियों (बालवाड़ी) की योजना में करोड़ों रूपये का घोटाला केवल हुआ ही नहीं बल्कि लगातार हो रहा है. बावजूद इसके इस योजना का महाराष्ट्र में पिछले ५ वर्षों से ऑडिट नहीं किया गया है. भ्रष्टाचार में आकंठ तक डूबे अधिकारियों की रिपोर्ट को सही मानकर योजना की धनराशि बढाकर मुहैया करा दी जाती है और इस योजना से भ्रष्टाचार का परनाला लगातार बहता रहता है. उस पर तुर्रा यह कि अभी हाल में ही आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) कर्मियों के मानदेय को दुगना कर दिया गया पिछले दिनों प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों पर मंत्रिमंडल समिति की बैठक में आँगनवाड़ी कर्मियों को दिये जा रहे मानदेय को १५०० रूपये प्रति माह से बढ़ा कर ३००० हजार करने को मंजूरी दी गई. कैबिनेट की बैठक के बाद पेट्रोलियम मंत्री एस जयपाल रेड्डी ने संवाददाताओं से कहा कि अर्ध आँगनवाड़ी कर्मियों को समेकित बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) के तहत अब ७५० रूपये प्रतिमाह के स्थान पर १५०० रूपये प्रतिमाह मानदेय दिया जायेगा. सवाल यह है कि क्या इस बढे हुए मानदेय के मद्देनजर आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) कार्यकर्ता भारी पैमाने पर चल रहे भ्रष्टाचार से अलग कर लेंगे, शायद नहीं.
“निरक्षरता हमारे लिए पाप और शर्मनाक है इसका नाश किया जाना चाहिए” महात्मा गांधी के इसी आदर्श वाक्य के मद्देनजर तथा भारत सरकार की राष्ट्रीय बाल नीति जिसमें कि बच्चों को राष्ट्र की परम महत्वपूर्ण संपत्ति माना गया है, से हुआ. इस योजना का नाम समेकित बाल विकास योजना रखा गया इसकी नीव १९७४ में रखी गई तथा इसकी शुरूवात महात्मा गांधी के जन्म दिवस २ अक्टूबर को वर्ष १९७५ की गई प्रयोग के तौर पर यह कार्यक्रम उस समय संपूर्ण भारत के केवल ३३ खण्डों में चलाया गया किन्तु आज के समय में इसका विस्तार पुरे देश में व्यापक रूप से हो चुका है इस कार्यक्रम का उद्देश्य छ: साल तक के आयु के बच्चों पोषण व स्वास्थ्य में सुधार लाना, बच्चों के मानसिक, शारीरिक, सामाजिक व बौद्धिक विकास की नीव रखना, बाल मृत्यु दर व बच्चों के कुपोषण में कमी लाना, बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर [ ड्राप आउट] {राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन की ओर से २००९ में किए गए अध्ययन के मुताबिक ८१.५० लाख बच्चों ने स्कूली शिक्षा अधूरी छोड़ी जो ६-१३ आयुवर्ग के बच्चों की आबादी के ४.२८ प्रतिशत है} में कमी लाना, गर्भवती व दूध पिलाने वाली माताओं के स्वास्थ्य व पोषण स्तर में सुधार लाना, महिलाओं में स्वास्थ्य व पोषण के बारे में जागृती लाकर उन्हें इस काबिल बनाना कि वे अपने परिवार तथा विशेषतौर से अपने बच्चों की पोषाहार व स्वास्थ्य की जरूरतों को स्वयं पूरा कर सकें. इन समेकित बाल विकास योजना के तहत संचालित आँगनवाडियों के माध्यम से दी जाने वाली सेवाएं निम्नलिखित है जैसे पूरक पोषाहार, अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा, टीकाकरण, स्वास्थ्य जां, पोषाहार एवं स्वास्थ्य शिक्षा ( महिलाओं के लिए) और संदर्भ सेवाएं प्रमुख है.
इस समेकित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) के तहत चलाई जा रही आँगनवाड़ियों के माध्यम से बच्चों को दी जा रही अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा जिसे मुंबई में बालवाड़ी योजना के नाम से जाना जाता है, में चल रहे भारी भ्रष्टाचार को देखकर यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि इस योजना का मुंबई जैसे शहर में जहाँ अत्यधिक जागरूक नागरिक बसते है, यह हाल है तो भारत के दूर-दराज के गाँव में क्या होता होगा इसमें कोई शक नहीं कि भारत के दूर-दराज के गाँव में आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) केवल कागजों पर ही होती होंगी. ऐसे में भारत सरकार की राष्ट्रीय बाल नीति जिसमें कि बच्चों को राष्ट्र की परम महत्वपूर्ण संपत्ति माना जाता है, के क्या मायने है और आखिर यह सवाल किससे किया जाना चाहिए कि बच्चों के मानसिक, शारीरिक, सामाजिक व बौद्धिक विकास की नीव रखने की जिम्मेदारीयुक्त आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) में चल रहे भारी भ्रष्टाचार और उनके पोषक आहार पर डाले जा रहे डाके को रोकने की जिम्मेदारी किसकी है ?
यह लेख विस्फोट.कॉम पर २७ जुलाई २०११ को प्रकाशित हो चुका है
समेकित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) और उसी की तर्ज पर ही महाराष्ट्र राज्य में संचालित योजना “एकात्मिक बाल विकास योजना” के तहत कुल ८८ हजार २ सौ ७२ आँगनवाड़ियों को संचालित किया जा रहा है और बताते है कि महाराष्ट्र में इस योजना से ८६ लाख ३२ हजार बच्चे लाभान्वित हो रहे है किन्तु जब हमने इस आँगनवाड़ी योजना को लेकर मुंबई की स्थिति की जानकारी इकट्ठी की तो हमने पाया कि इन आँगनवाड़ियों (बालवाड़ी) की आड में भारी पैमाने पर गडबडियां की जा रही हैं. इन आँगनवाड़ियों (बालवाड़ी) से संबंधित गडबड़ियों एवं भ्रष्टाचार में आकंठ तक डूबे प्रकल्प अधिकारियों ( Project Officer) से लेकर आँगनवाडी कार्यकर्ता सभी शामिल है. इस योजना के मुंबई में संचालन का जिम्मा कुल ३२ प्रकल्प अधिकारियों ( Project Officer) पर है प्रत्येक प्रकल्प अधिकारी के अंतर्गत २० से २५ आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) प्रत्येक आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) में अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा प्राप्त कर रहे कम से कम ३० और अधिक से अधिक ५० बच्चे है. इस तरह मुंबई में सरकार द्वारा चलाई जा रही इन आँगनवाड़ियों (बालवाड़ी) में लगभग २८ हजार बच्चे अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा प्राप्त कर रहे है.
इन आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) के प्रत्येक बच्चे के लिए पूरक पोषाहार के रूप में मध्यान्ह भोजन ( Mid Day Meal) के रूप में प्रत्येक बच्चों के लिए १०० ग्राम प्रतिदिन पोषक तत्वों से भरपूर पका हुआ भोजन जिसमें एनपी एनएसपीई २००६ के संशोधित नियम के अनुसार पोषण सामग्री जिसमें ४५० कैलोरी, १२ प्रोटीन एवं सूक्ष्म आहार के रूप में आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन-ए, इत्यादि सक्षम आहारों की पर्याप्त मात्रा हो, दिया जाना चाहिए. मुंबई के जिस आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) में ५० बच्चे अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं उन्हें पोषक तत्वों से भरपूर पका हुआ भोजन १०० ग्राम के हिसाब से ५ किलो मिलना चाहिए किन्तु किन्तु आलम यह है कि इन केन्द्रों पर ठेकेदार संस्थाओं द्वारा दो से ढाई किलो ही पका हुआ खाना आँगनवाड़ियों (बालवाड़ी) के बच्चों में वितरित कर रहे है तथा इस चोरी के एवज में आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) कार्यकर्ता को ५० रूपये प्रतिदिन रिश्वत के रूप में दे रहे है.
५० रूपये रिश्वत पा जाने पर आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) कार्यकर्ता पोषक आहार मुहैया कराने वाले ठेकेदार के ५ किलो के चालान पर आँख बंद करके हस्ताक्षर कर रहे है. अगर आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) के बच्चों को दिया जाने वाला पका हुआ भोजन आधा से अधिक चोरी कर रहे हैं. तो पौष्टिक आहार के (Composition) जैसे कैलोरी, प्रोटीन, आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन-ए, आदि सक्षम आहारों के समिश्रण के अनुपालन का तो भगवान ही मालिक है. पोषक आहार उपलब्ध कराने वाले ठेकेदारों द्वारा प्रकल्प अधिकारी ( Project Officer) को उनके रिश्वत का हिस्सा पहुंचाया जाता है. बताया जाता है कि आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) कार्यकर्ताओं के ऊपर पर्यवेक्षक का एक पद होता है. एक पर्यवेक्षक के अनुसार उनकी शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया जाता. जो पर्यवेक्षक इन आँगनवाड़ियों (बालवाड़ी) में नियमतः काम करवाना चाहते है उन्हें या तो शीर्षस्थ अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित कर चुप करा दिया जाता है या तो उनका स्थानांतरण कर दिया जाता है.
मुंबई में चल रहे आँगनवाड़ियों (बालवाड़ी) की योजना में करोड़ों रूपये का घोटाला केवल हुआ ही नहीं बल्कि लगातार हो रहा है. बावजूद इसके इस योजना का महाराष्ट्र में पिछले ५ वर्षों से ऑडिट नहीं किया गया है. भ्रष्टाचार में आकंठ तक डूबे अधिकारियों की रिपोर्ट को सही मानकर योजना की धनराशि बढाकर मुहैया करा दी जाती है और इस योजना से भ्रष्टाचार का परनाला लगातार बहता रहता है. उस पर तुर्रा यह कि अभी हाल में ही आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) कर्मियों के मानदेय को दुगना कर दिया गया पिछले दिनों प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों पर मंत्रिमंडल समिति की बैठक में आँगनवाड़ी कर्मियों को दिये जा रहे मानदेय को १५०० रूपये प्रति माह से बढ़ा कर ३००० हजार करने को मंजूरी दी गई. कैबिनेट की बैठक के बाद पेट्रोलियम मंत्री एस जयपाल रेड्डी ने संवाददाताओं से कहा कि अर्ध आँगनवाड़ी कर्मियों को समेकित बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) के तहत अब ७५० रूपये प्रतिमाह के स्थान पर १५०० रूपये प्रतिमाह मानदेय दिया जायेगा. सवाल यह है कि क्या इस बढे हुए मानदेय के मद्देनजर आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) कार्यकर्ता भारी पैमाने पर चल रहे भ्रष्टाचार से अलग कर लेंगे, शायद नहीं.
“निरक्षरता हमारे लिए पाप और शर्मनाक है इसका नाश किया जाना चाहिए” महात्मा गांधी के इसी आदर्श वाक्य के मद्देनजर तथा भारत सरकार की राष्ट्रीय बाल नीति जिसमें कि बच्चों को राष्ट्र की परम महत्वपूर्ण संपत्ति माना गया है, से हुआ. इस योजना का नाम समेकित बाल विकास योजना रखा गया इसकी नीव १९७४ में रखी गई तथा इसकी शुरूवात महात्मा गांधी के जन्म दिवस २ अक्टूबर को वर्ष १९७५ की गई प्रयोग के तौर पर यह कार्यक्रम उस समय संपूर्ण भारत के केवल ३३ खण्डों में चलाया गया किन्तु आज के समय में इसका विस्तार पुरे देश में व्यापक रूप से हो चुका है इस कार्यक्रम का उद्देश्य छ: साल तक के आयु के बच्चों पोषण व स्वास्थ्य में सुधार लाना, बच्चों के मानसिक, शारीरिक, सामाजिक व बौद्धिक विकास की नीव रखना, बाल मृत्यु दर व बच्चों के कुपोषण में कमी लाना, बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर [ ड्राप आउट] {राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन की ओर से २००९ में किए गए अध्ययन के मुताबिक ८१.५० लाख बच्चों ने स्कूली शिक्षा अधूरी छोड़ी जो ६-१३ आयुवर्ग के बच्चों की आबादी के ४.२८ प्रतिशत है} में कमी लाना, गर्भवती व दूध पिलाने वाली माताओं के स्वास्थ्य व पोषण स्तर में सुधार लाना, महिलाओं में स्वास्थ्य व पोषण के बारे में जागृती लाकर उन्हें इस काबिल बनाना कि वे अपने परिवार तथा विशेषतौर से अपने बच्चों की पोषाहार व स्वास्थ्य की जरूरतों को स्वयं पूरा कर सकें. इन समेकित बाल विकास योजना के तहत संचालित आँगनवाडियों के माध्यम से दी जाने वाली सेवाएं निम्नलिखित है जैसे पूरक पोषाहार, अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा, टीकाकरण, स्वास्थ्य जां, पोषाहार एवं स्वास्थ्य शिक्षा ( महिलाओं के लिए) और संदर्भ सेवाएं प्रमुख है.
इस समेकित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) के तहत चलाई जा रही आँगनवाड़ियों के माध्यम से बच्चों को दी जा रही अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा जिसे मुंबई में बालवाड़ी योजना के नाम से जाना जाता है, में चल रहे भारी भ्रष्टाचार को देखकर यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि इस योजना का मुंबई जैसे शहर में जहाँ अत्यधिक जागरूक नागरिक बसते है, यह हाल है तो भारत के दूर-दराज के गाँव में क्या होता होगा इसमें कोई शक नहीं कि भारत के दूर-दराज के गाँव में आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) केवल कागजों पर ही होती होंगी. ऐसे में भारत सरकार की राष्ट्रीय बाल नीति जिसमें कि बच्चों को राष्ट्र की परम महत्वपूर्ण संपत्ति माना जाता है, के क्या मायने है और आखिर यह सवाल किससे किया जाना चाहिए कि बच्चों के मानसिक, शारीरिक, सामाजिक व बौद्धिक विकास की नीव रखने की जिम्मेदारीयुक्त आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) में चल रहे भारी भ्रष्टाचार और उनके पोषक आहार पर डाले जा रहे डाके को रोकने की जिम्मेदारी किसकी है ?
यह लेख विस्फोट.कॉम पर २७ जुलाई २०११ को प्रकाशित हो चुका है
शुक्रवार, 4 मार्च 2011
कैसे होगा मानवाधिकारों का संरक्षण ?

देश के मानवाधिकार आयोगों में बैठे लोगों के कारण मानवाधिकार आयोगों की भारी किरकिरी हो रही है मौजूदा समय में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष के। जी. बालाकृष्णन के ऊपर लगातार हो रहे आरोपों की बौछार से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जो स्थिती है वह किसी से छुपी नहीं है के. जी. बालाकृष्णन के तीन रिश्तेदारों के खिलाफ चल रहे आय से अधिक सम्पति के आरोपों की जांच में उनके पास काला धन होने की खबर आने से भी के. जी. बालाकृष्णन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष के पद से चिपके हुए है इन विवादों के चलते पूर्व चीफ जस्टिस जे. एस. वर्मा ने २७ फरवरी २०११ को बालाकृष्णन से एनएचआरसी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की मांग की उन्होंने कहा कि ऐसा न होने पर पूर्व चीफ जस्टिस को हटाने के लिए राष्ट्रपति को मामले में दखल देनी चाहिए. वर्मा ने कहा कि अगर आरोप सच नहीं हैं तो उन्हें गलत साबित करने की जिम्मेदारी भी बालाकृष्णन की ही है. ऐसे वक्त में चुप्पी साधना कोई विकल्प नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर पूर्व सीजेआई चुप रहने का विकल्प चुनते हैं और खुद को बेदाग नहीं साबित करते तो उन्हें हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी जानी चाहिए. इस मामले में कोच्चि के डायरेक्टर जनरल ऑफ इनकम टैक्स (इन्वेस्टिगेशन)ई. टी. लुकोसे का कहना है कि जहां तक पूर्व सीजेआई बालाकृष्णन का सवाल है तो अभी इस बारे में कुछ नहीं कह सकता लेकिन जहां तक उनके रिश्तेदारों का सवाल है तो हमने उनके मामले में ब्लैक मनी की मौजूदगी पाई है. यह अफ़सोसजनक है कि इस नई संस्कृति का शिकार अब नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए बने संस्थान हो रहे है, मानवाधिकार आयोग हो, सूचना आयोग, महिला आयोग, बाल अधिकार आयोग या न्यायपालिका सबकी स्थिति लगभग एक जैसी ही है सभी जगहों पर सत्ता के एजेंट ही बैठे है और उनका तालमेल अद्भुत है, मजाल कही आम आदमी के लिए कोई एक छेद भर भी गुंजाईस हो. चोरी और सीनाजोरी की यह व्यवस्था मुकम्मिल तौर पर इस सत्ता और उसके एजेंटो की है ना कम ना ज्यादा पूरी की पूरी जमीनी लूट से उपरी न्यायपालिका और आसमानी सत्ता तक अब बालकृष्णन से आप क्या आशा कर सकते है, न्याय की, नहीं आप तो केवल सत्ता की वफ़ादारी की ही आशा कीजिये, इसी मे आपकी समझदारी है और उनकी सुविधा भी.
मुंबई के अख़बारों में दिनांक २५ फरवरी २०११ को एक छोटी सी खबर छपी थी कि मुंबई में अशोक ढवले नामक एक पुलिस अधिकारी को ब्राउन शूगर के साथ रंगे हाँथ पकड़ा गया इस विषय पर जानकारी हासिल करने की उत्सुकता तब और बढ़ी जब यह पता चला कि अशोक ढवले महाराष्ट्र पुलिस में डीवायएसपी के पद पर था और तब आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब यह पता चला कि यह मादक पदार्थों का तस्कर पुलिस अधिकारी महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग के उस विभाग में डीवायएसपी के पद पर तैनात था जो विभाग नागरिकों से प्राप्त मानवाधिकार हनन के मामलों की जाँच करता है अशोक ढवले नामक मादक पदार्थों का तस्कर पुलिस अधिकारी को रंगे हाथ पकडनें पर मै मुंबई पुलिस को बधाई देता हूँ लेकिन मुंबई पुलिस द्वारा जारी किये गये प्रेस नोट जिसमें यह बताया गया था कि अशोक ढवले “प्रोटेक्शन ऑफ़ सिव्हिल राईट” विभाग में काम कर रहा था की निंदा करता हूँ मुंबई पुलिस नें सीधे सीधे अपने प्रेस नोट में यह क्यों नहीं बताया कि अशोक ढवले महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग के जाँच विभाग ( इन्क्वायरी विंग) में तैनात था आखिर मुंबई पुलिस नें महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग का नाम इस मामले में छुपाने का प्रयास क्यों किया जहाँ यह तस्कर अधिकारी तैनात था। यहाँ मुद्दा यह नहीं है कि एक पुलिस अधिकारी ब्राउन शूगर की तस्करी करते रंगे हाथों पकड़ा गया मुद्दा ऐसे रंगे सियारों का मानवाधिकार आयोगों में बिठाये जाने का है यह चिंता का विषय है कि मौजूदा समय में ऐसा प्रतीक होता है कि भारत के मानवाधिकार आयोग अपराधियों के शरण स्थली बनते जा रहे है.
इसके पहले भी मुंबई से ही एक खबर आयी थी कि महाराष्ट्र राज्य के मानवाधिकार आयोग में तैनात पूर्व आईएएस अधिकारी सुभाष लाला नामक सदस्य आदर्श हाऊसिंग सोसायटी घोटाले में संलिप्त है आदर्श हाउसिंग सोसायटी मामले में अपनी भूमिका को लेकर आरोपों के घेरे में आए सुभाष लाला ने राज्य मानवाधिकार आयोग के सदस्य के पद से इस्तीफा भी दे दिया। बताया जाता है कि सुभाष लाला महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के कृपापात्र नौकरशाहों में एक ( पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के पूर्व निजी सहायक) थे और इन्हें विलासराव देशमुख के ही कृपा से महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग में सदस्य की कुर्सी मिली थी महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग में सुभाष लाला को लेकर एक बात प्रचलित थी इन्हें महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग में सरकार एवं पुलिस के विरुद्ध आयी शिकायतों पर सरकार एवं पुलिस के लिए सेप्टी वाल्व की तरह काम करने के लिए नियुक्त किया गया है महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग में शिकायतों को लेकर जाने वाले स्वयंसेवी संगठन बताते है कि आयोग में आयी सामान्य और गंभीर दोनों किस्म की जितनी शिकायतों को सुभाष लाला नें कार्रवाई के लिए अयोग्य बताकर निरस्त किया उतनी शिकायतें किसी अन्य सदस्य नें निरस्त नहीं किया सुभाष लाला के बारे में बताया जाता है कि इनके पास मुंबई में कई बेनामी संपत्तियां और फ्लैट्स है जिससे लाखों रूपये किराये के रूप में प्राप्त होते है हालाँकि आदर्श मामले में सुभाष लाला नें सफाई दी थी कि उनके दिवंगत पिता संग्राम लाला सैन्य इंजीनियरिंग सेवा में कार्यरत थे इसीलिए आदर्श सोसायटी के मुख्य प्रमोटर आर सी ठाकुर नें उन्हें आदर्श सोसायटी में सदस्य बनाया था. वस्तुतः आदर्श सोसायटी कारगिल के शहीदों के परिजनों को आवासीय सहायता के नाम पर अवैध तरीके से बनाई गयी थी अतः सुभाष लाला के इस सफाई का क्या औचित्य है.
इतना ही नहीं पिछले दिनों महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग के कार्य कलापों को के विरुद्ध मुंबई के एक व्यवसायी व समाजसेवी पुष्कर दामले नें मुंबई हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी यह याचिका मानवाधिकार आयोग में मानवाधिकार उल्लंघन के बारे में प्राप्त शिकायतों पर कोई करवाई न किए जाने और आयोग के सदस्यों द्वारा नियमित तौर पर की गई अनियमितताओं की जाँच के लिए दायर की गयी थी। इस याचिका के लिए सूचना अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त की गई सूचनाओं से पता चला था कि जून २००८ तक २८,०८३ मामले दायर किए गए थे । परन्तु आयोग नें कारवाई का आदेश केवल ३९ मामलों में दोषी अधिकारियों के खिलाफ दिया है. ये मामले राज्य के विरुद्ध थे जिसमें सरकारी अधिकारी भी शामिल थे. आयोग नें २४०७१ मामले निपटाए तथा जून २००८ तक ४०१२ मामले निपटाने बाकी थे याचिका में कहा गया था कि २४०३२ मामलों को विचारणीय न माना जाना अजीब लगता है. इसका अर्थ यह हुआ कि केवल ०.१६ प्रतिशत मामलों में ही मानवाधिकार उल्लंघन के केस साबित हो पाए क्या बाकी बकवास थे ? यह याचिका हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार तथा एस.सी. धर्माधिकारी की खंडपीठ में सुनवायी हेतु आयी थी । खंडपीठ नें इस याचिका पर राज्य सरकार से ३ सप्ताह के भीतर उत्तर देने को कहा था. याचिका में बताया गया है कि राज्य सरकार नें वर्ष १९९३ के मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम के वर्ष २००६ के संशोधन के प्रावधानों को लागू करने का कोई प्रयास नहीं किया इस परिवर्तन से किसी भी उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता तथा ४ सदस्यों वाले आयोग में मात्र एक अध्यक्ष तथा दो सदस्य रखे जाने थे पर वर्ष २००६ में आयोग केवल एक सदस्य अध्यक्ष सी.एल. थूल ( सेवानिवृत्त जिला जज) की अध्यक्षता में ६ माह तक काम करता रहा. याचिका में आरोप लगाया गया है कि २३.११.२००६ में इसके लागू होने से पूर्व महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित कमेटी नें ३ सदस्यों का चयन किया इनकी नियुक्ति राज्यपाल नें वास्तव में १०.११.२००६ में की थी. अब तक जो सदस्य कार्यरत रहे उनमें टी.सिंगार्वेल ( नागपुर के पूर्व पुलिस आयुक्त ) सुभाष लाला ( मुख्यमंत्री के पूर्व निजी सहायक) तथा विजय मुंशी ( उच्च न्यायलय के पूर्व जज ) याचिका में कहा गया है कि परिवर्तित एच.आर. एक्ट अभी तक महाराष्ट्र सरकार नें लागू नहीं किया है. याचिका में कहा गया था कि अपनी नियुक्ति के एक दिन बाद ही एक सदस्य कैंसर सर्जरी के लिए अवकाश पर चला गया. इस सदस्य के इलाज पर राज्य सरकार के ६.२५ लाख रूपये खर्च हुए एक अन्य सदस्य नें निर्देशों का उल्लंघन करके अपनी पत्नी के साथ अत्यधिक देश-विदेश की यात्रायें की थी इस जनहित याचिका का जिक्र करने का आशय यह नहीं कि उक्त याचिका पर मुंबई हाई कोर्ट के माध्यम से कार्रवाई की गयी या नहीं. आशय आयोगों के क्रियाकलापों को उजागर करना है.
मानव अधिकार आयोगों के संबंध में समय-समय पर एक बात और उजागर हो रही है कि वे नागरिक अधिकार आंदोलनों, सामाजिक और मानवाधिकार संगठनों को कुचलने का काम कर रहे है इनके क्रियाकलापों तथा जनसंगठनों के विरुद्ध कार्रवाई हेतु प्रशासन और पुलिस को भेजे जा रहे पत्रों को देखकर ऐसा प्रतीक होता है कि इन सरकारी आयोगों का गठन सरकारों नें नागरिक अधिकार आंदोलनों को कुचलने के लिए ही किया है. जबकि मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम १९९३ में यह कलमबद्ध किया गया है कि मानव अधिकारों के क्षेत्र में काम करने वाले स्वयंसेवी संगठनो, संस्थाओं को मानव अधिकार आयोगों द्वारा प्रोत्साहित किया जायेगा किन्तु स्थिति इससे उलट है "मानव अधिकार जो कि आम नागरिक का मुद्दा है उसे व्यवस्था नें हड़प लिया है" तथा मानव अधिकार के क्षेत्र में काम करने वाले गैर सरकारी संगठनो तथा संस्थाओं पर इन्ही आयोगों के माध्यम से हमले तेज कर दिए है उनके इन हमलों से पता चलता है कि सरकारों को ऐसे नागरिक अधिकार आन्दोलन, स्वयंसेवी संगठन, तथा संस्थाएं नहीं चाहिए जो आयोगों के क्रियाकलापों पर नजर रख सकते है उनके द्वारा गलत किये जाने पर ऊँगली भी उठा सकते. उन्हें चाहिए सरकारी मानवाधिकार आयोगों में बैठे भ्रष्ट एवं आपराधिक प्रवित्ति के लोग जो कि मानवाधिकारों के संरक्षण के नाम पर सत्ता के एजेंट के रूप में काम करें.
शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011
अच्छा है मानवाधिकार
अंजाम देखा आपने
हुस्ने मुबारक का
था मिस्र का भी वही
जो है हाल भारत का
परजीवियों के राज का
तख्ता पलट कर दो
जन में नई क्रांति का
जोश अब भर दो
उठो आओ हिम्मत करो
क्रांति का परचम धरो
मत भूलो यह सरोकार
अच्छा है मानवाधिकार
हुस्ने मुबारक का
था मिस्र का भी वही
जो है हाल भारत का
परजीवियों के राज का
तख्ता पलट कर दो
जन में नई क्रांति का
जोश अब भर दो
उठो आओ हिम्मत करो
क्रांति का परचम धरो
मत भूलो यह सरोकार
अच्छा है मानवाधिकार
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