रविवार, 4 सितंबर 2011

कुपोषण के काल के गाल में नौनिहाल

भिवंडी, शाहपुर, वाडा, मोखाड़ा, पालघर, दहाणू, व तलासरी के इलाके देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से १०० किलोमीटर के दायरे में पड़ते है। लेकिन १०० किलोमीटर दूर मुंबई अगर अपने ऐशो आराम के लिए जानी जाती है तो मुंबई से सटे ये इलाके इन दिनों किसी और कारण से चर्चा में है। यह कारण है अबोध बच्चों की कुपोषण से मौत। भारी संख्या में बसे आदिवासी और उनके बच्चे भूख और कुपोषण के चलते कीड़े-मकोड़ों की तरह मरने को अभिशप्त है। बीते महीने अगस्त के आख़िरी सप्ताह में खबर आयी कि इन उपरोक्त इलाकों में कम से कम १५० आदिवासी बच्चों की कुपोषण से मौत हो गई तथा हजारों की संख्या में बच्चे आब भी कुपोषण के कारण मौत के कगार पर हैं।

यह खबर भी तब आ रही है जब देश भर में १ से ७ सितंबर के बीच राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया जा रहा हैराष्ट्रीय पोषण सप्ताह के बीच कुपोषण से मौत की ख़बरें स्तब्ध कर देने वाली है। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार अप्रैल से जून २०११ तक कुपोषण से ठाणे जिले में कुल १५८ मृत्यु दर्ज की गई। इसमें ११९ बच्चों की उम्र केवल १ वर्ष है तथा बाकी बच्चों की उम्र ६ वर्ष तक है। आंकड़ों के अनुसार अप्रैल में ५५, मई में ४९, और जून में ५४ बच्चों की मृत्यु कुपोषण से हुई इस वर्ष के आंकड़ों के अनुसार भिवंडी में ३, वसई में १, मुरबाड में ३, शाहपुर में १४, वाडा में ६, दहाणू में ७, मोखाड़ा में ५, जव्हार में ६, और विक्रमगढ़ में १, बच्चे की मौत कुपोषण के कारण हुई।

इन कुपोषण से लगातार हो रही मौतों के संबंध में अगर ठाणे जिले के स्वास्थ्य विभाग के दावे को माने तो कुपोषण से हो रही इन मौतों में ३०% की कमी आयी है प्राप्त आंकड़ों के अनुसार मोखाड़ा तालुका में ही कुल ९४३७ बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। बताया जाता है कि मोखाड़ा तालुका में सामान्य कुपोषित बच्चों की संख्या ५९९०, तथा मध्यम कुपोषित बच्चों की संख्या ३१६५ और तीव्र कुपोषित बच्चों की संख्या २८२ सहित कुल ९४३७ बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं। उन २८२ कुपोषित बच्चों की हालत दिनों-दिन बद-से बदतर होती जा रही है और जिले का स्वास्थ्य विभाग आंकड़े इकट्ठे करने और उसकी तुलना पिछले वर्ष कुपोषण से हुई मौतों से करने में मशगुल है। जबकि स्वास्थ्य विभाग को यह मालूम रहता है कि कुपोषण का गंभीर खतरा सबसे अधिक बच्चों के गर्भ में आने से लेकर ३३ महीने तक रहता है। और कुपोषणग्रस्त इलाकों में कम से कम ६ वर्ष तक नजर रखना आवश्यक होता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि फुला हुआ पेट, थका हुआ चेहरा और बेहद पतले हांथ-पैर बच्चों में कुपोषण के आम लक्षण हैं।

आपको याद दिला दें कि दिसंबर २०१० में एक खबर आयी थी कि देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले मुंबई शहर में १४ बच्चे भुखमरी और कुपोषण के कारण काल के गाल में समा गए थे। इस भूखमरी और कुपोषण से प्रशासन और सरकार बेखबर थी जब मीडिया के द्वारा खबरें निकलकर आयी तो पता चला कि मुंबई के गोवंडी इलाके में पांच साल और उससे कम उम्र के १४ बच्चे भूख और कुपोषण के शिकार हो गए। पता चला था कि गोवंडी के झोपड़पट्टी में ६५% बच्चे कुपोषण के शिकार थे। इस मामले का खुला तब हुआ जब मुंबई की टाटा इंस्टीट्युट ऑफ़ सोशल साईंस से जुडी एक स्वयंसेवी संस्था नें जब गोवंडी झोपड़पट्टी का सर्वे किया। कुल ६०० परिवारों का सर्वे करनें पर उन्हें पता चला कि इन ६०० परिवारों के बीच कुल १४ बच्चे कुपोषण के वजह से मौत के शिकार हुए और गोवंडी की झोपड़पट्टी में ६५ % कुपोषण के शिकार बच्चे कमजोरी के कारण नियुमोनिया, मेनेंजाईटीस, और डायरिया से जूझ रहे थे। अब अगर पिछले साल ही सही देश की आर्थिक राजधानी मुंबई का यह हाल था तो मुंबई से सटे ठाणे जिले के आदिवासी इलाके के १५८ बच्चों की भूख और कुपोषण से हुई मौत आश्चर्य तो नहीं किन्तु शासन और प्रशासन की लापरवाही पर गंभीर चिंता का सबब बनता है।

हमारे शासकों द्वारा बताया जा रहा है कि भारत तेजी से विश्व की एक बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित हो रहा है और इस विकास दर को ८.५ का बताया जा रहा है । देश के नीतिनिर्धारकों के लिए क्या यह शर्म की बात नहीं है कि इस तेजी से विकसित हो रहे देश में बच्चों की एक बड़ी आबादी कुपोषण के कारण तिल-तिल कर मरने को मजबूर है आंकड़े बताते हैं कि देश में प्रति वर्ष ६,००,००० बच्चों की मौत कुपोषण के कारण हो जाती है। वैश्विक संस्थाओं, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण और तमाम गैर सरकारी संगठनों के आंकड़ों पर नजर डालें तो देश में बाल कुपोषण की खतरनाक स्थिति का पता चलता है। देश में ४३% बच्चे कुपोषण के वजह से सामान्य से कम वजन के हैं। और ५ वर्ष से कम उम्र के करीब ७०,००,००० बच्चे गंभीर रूप से कुपोषण के शिकार हैं। वैश्विक भूख सूचकांक नें भी २०१० की अपनी रिपोर्ट में भारत में कुपोषण की स्थिति पर गंभीर चिंता जताई थी वैश्विक भूख सूचकांक की रिपोर्ट में शामिल १२२ विकासशील देशों की सूची में भारत ६४ वें स्थान पर था इस रिपोर्ट के अनुसार विश्व के सामान्य से कम वजन वाले बच्चों में से ४२ % बच्चे भारत में ही हैं।

सरकार और उसके नुमाइन्दों द्वारा आमतौर पर यह तर्क दिया जाता है कि कुपोषण की समस्या का मूल कारण आबादी है पर अगर हम अपनी तुलना चीन से करेंगे तो हमारी सरकार और उसके नुमाइन्दों का तर्क हमें खोखला और बेमानी लगने लगता है क्योंकि चीन की जनसंख्या हमारे देश से कहीं अधिक है। फिर भी वहां कुपोषण के शिकार बच्चे हमारे देश से छह गुणा कम है। सरकार नें बच्चों में कुपोषण को दूर करने के लिए कई योजनायें और जागरूकता कार्यक्रम भी चलायें हैं। छह वर्ष तक के बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए समेकित बाल विकास योजना शुरू कई गई। केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अधीन खाद्य एवं पोषण बोर्ड लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाने के लिए हर साल १ से ७ सितंबर तक राष्ट्रीय पोषण सप्ताह आयोजित करता है। इस् वर्ष भी इस् सप्ताह के दौरान देश भर में कार्यशालाओं, शिविर, प्रदर्शनी आदि का आयोजन कर लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाया जा रहा है। लेकिन लगातार कुपोषण से हो रही मौतों के आकड़ें ऐसे प्रयासों, कार्यक्रमों और नीतियों पर सवाल खड़े कर रहे हैं।