शनिवार, 27 सितंबर 2008

भारत को डर के कारोबारियों बचाओं

देश जल रहा है , नेता वोट के खातिर देश को गिरवी रखने को आतुर है, देश का आम आदमी सहमा हुआ है पूरे देश में वोट के खातिर दंगे कराए जा रहे है, अराजकता फैलाई जा रही है । इन सब का लाभ उठाते हुए आतंकवादियों द्वारा किए जा रहे देश के चुनिन्दा शहरों में धमाके आम भारतीयों में दहशत का माहौल पैदा कर रहे है ।
उडीसा, मध्यप्रदेश और कर्नाटक में चर्च एवं ईसाई समुदाय पर हमले कराए जा रहे है, नक्सलवादियों द्वारा अपहरण, हत्याए और पुलिस थानों को लूटना आम बात हो गयी है इन सब पर काबू पाना अब पुलिस के बस में नहीं रह गया है क्योंकि भारतीय पुलिस को नेताओं नें कानून व्यवस्था बनाये रखने के कार्य से अलग कर अपनी वोट की राजनीति के एजंडे को आगे बढाने के काम में लगा रखा है । पुलिस की हताशा दिल्ली में हुए बम विस्फोट के बाद दिल्ली पुलिस पुलिस आयुक्त के तरफ़ से आया बयान स्वयं ही बयां करता है ।
एक जुमला है कि "जब रोम जल रहा था तो नीरों वंशी बजा रहा था " यह जुमला हमारे गृहमंत्री माननीय शिवराज पाटील काफी सटीक बैठता है कि जब १३ सितम्बर को दिल्ली में धमाके हो रहे थे उस समय देश के गृहमंत्री दो-दो घंटे के अन्तराल में कपडे बदल कर आकर्षक दिखने की कोशिश कर रहे थे ।
काफी समय से उडीसा, मध्यप्रदेश और कर्नाटक के ईसाई समुदाय को प्रताडित किया जा रहा है उनपर आरोप लगाया जा रहा है कि वे हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन करा रहे है इसे रोकने के लिए जनता उत्तेजित होकर कार्रवाई कर रही है अब सवाल यह है कि कुछ तथाकथित संगठन सरकारों का मुह चिढ़ाते हुए कानून को अपने हाँथ में ले लेते है और सत्ताधारी नेता इसे आम जनता की "स्वाभाविक प्रतिक्रिया" बताने से नहीं चूकते । कानून के राज का तकाजा तो यह था कि इन आरोपों की जाँच होती और यदि अपराध प्रमाणित होता तो अपराधी को सजा दी जाती किंतु ऐसा न करके सरकारें "स्वीकृत हिंसा" को बढावा दे रहीं है अराजक तत्वों की भीड़ कानून को लहुलुहान कर रहा है पुलिस प्रशासन और सरकारें मूकदर्शक बनी तमाशा देख रही है ।
राज ठाकरे द्वारा समय-समय पर कानून को धत्ता बताया जा रहा है इससे क्षुब्ध होकर मुंबई के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ( के.एल. प्रसाद) द्वारा राज ठाकरे और उनकी सेना को घुडकने पर अब तक दो भागों में बंट चुकी ठाकरे परिवार की सेनाएं तत्काल अपने-अपने अंदाज में पुलिस अधिकारी को ललकारा । उक्त अधिकारी का दोष केवल यह था कि वह राज ठाकरे की सेना को कानून हाँथ में न लेने की चेतावनी दी थी पुलिस अधिकारी द्वारा दी गयी चेतावनी कही से भी ग़लत नहीं थी किंतु इसे देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि जब ठाकरे परिवार की दोनों सेनाओं द्वारा पुलिस अधिकारी को ललकारा जा रहा था तो महाराष्ट्र सरकार उस पुलिस अधिकारी के पीछे नहीं खडी दिखी । इस विषय पर हाल ही में मुंबई उच्च न्यायालय नें तल्ख़ टिप्पणी करते हुए राज ठाकरे के इन कृत्यों को आतंकी की संज्ञा दी तथा मूकदर्शक बने रहने के कारण महाराष्ट्र सरकार को भी आड़े हांथों लिया ।
दिल्ली के धमाकों के आरोपियों को पकड़ने के लिए दिल्ली के जामिया नगर में पुलिस और आतंकियों में मुठभेड़ हुई पुलिस के अनुसार दो आतंकवादी मुठभेड़ में मारे गये इस मुठभेड़ में एक पुलिस अधिकारी की भी मौत हो गयी तथा कुछ आतंकवादी पकडे गये जिसमें दो जामिया मिलिया विश्वविद्यालय के छात्र बताये जा रहे है । जामिया मिलिया विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर नें उन आतंकवादियों को कानूनी मदद देने का एलान कर दिया है मानव संसाधन मंत्री श्री अर्जुन सिंह उक्त वाईस चांसलर का समर्थन कर रहे है कानूनी सहायता देना कोई गुनाह नहीं है । देश के किसी भी नागरिक को कानूनी सहायता प्रापर फोरम द्वारा दिया जाना चाहिए इसके लिए देश के प्रत्येक न्यायालयों में कानूनी सहायता विभाग है । अगर वे कानूनी सहायता के पात्र है तो उन्हें सहायता दी जाय । किंतु जामिया मिलिया विश्वविद्यालय द्वारा आतंकियों को कानूनी सहायता दी जाती है तो यह एक गलत परंपरा की शुरूवात होगी और समाज टूटेगा, देश की एकता और अखंडता के लिहाज से खतरनाक होगा, ऐसा करने से आतंक फैलाने वालों का हौसला बढेगा ।
आशय यह है कि आज की सरकारों में इच्छाशक्ती का जबरदस्त अभाव है इस लिए देश की आम जनता डरी हुई है, देश के शहरी इलाकों में आतंकवादीयों का डर है, ग्रामीण क्षेत्रों में नक्सलवादियों का डर है, उद्योगपतियों को अंडरवल्ड का डर है, बेगुनाहों को पुलिस द्वारा झूंठे केश में फसाये जाने का डर है, यथास्थितिवादी इन सभी प्रकार के डर के बीच अपने हितों को साधने में जुटे हुए है उन्हें यथास्थिति बदल जाने का डर है, इन सभी प्रकार के डर के कारोबारी हमारे देश के नेता है और इन नेताओं को अपने वोट बैंक और दलाली के पैसे से मतलब है देश की आम जनता से इन्हे कुछ लेना-देना नहीं है ।
आख़िर देश का सबसे ताक़तवर तबका जिसे आम आदमी कहा जाता है और उसे निरीह बताया जाता है कब जागेगा ? यह तो पता नहीं किंतु अगर यह आम आदमी का तबका जाग गया तो यथास्थितिवादियों, वोट के सौदागरों तथा डर के कारोबारियों की खैर नहीं और ऐसा होगा जरूर ! करना केवल इतना है कि अपने-अपने अहंकार को भूल कर एक जुट हो जाय और इन सभी का सामना करे तभी हमारा देश भारत बच सकेगा ।