शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

मानव अधिकार विचारधारा की उत्पत्ति एवं विकास में भारतीय योगदान

मानव अधिकार विचारधारा के विकास का क्रम भारत में आज से लगभग ९००० वर्ष (७३२३ ईसा पूर्व) पहले शुरू हुआ माना जाता है भारत के राज्य अयोध्या, प्राचीन काल में इसे कौशल देश कहा जाता था, के राजा रामचंद्र नें रावण और अन्य आततायी राजाओं का संहार कर रामराज्य की स्थापना की एवं द्वारका जोकि भारत के पश्चिम में समुद्र के किनारे पर बसी है, हजारों वर्ष पूर्व श्री कॄष्ण ने इसे बसाया था कृष्ण मथुरा में उत्पन्न हुए, गोकुल में पले, पर उन्होने द्वारका में ही बैठकर सारे देश की बागडोर अपने हाथ में संभाली। कंस शिशुपाल और दुर्योधन जैसे आततायी अधर्मी राजाओं को नष्ट कर नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की एवं नागरिकों के अधिकार उन्हें दिलाया । भगवान महावीर ( ५९९ ईसा पूर्व से २२७ ईसा पूर्व ) एवं भगवान बुद्ध ५६३ ईसा पूर्व के कालखंड में अधिकारों के अवधारणा की रचना की जिसमें सत्य, अहिंसा और समता मुख्य थे ।
इसी तरह यूनान में ( ४६९ से ३९९ ईसा पूर्व ) विख्यात दार्शनिक सुकरात का नाम आता है । सुकरात नें अपने अनुयाइयों को आत्मानुसंधान के बारे में तथा सत्य न्याय एवं इमानदारी का अवलंबन करने के बारे में बताया । हालाँकि तत्कालीन यूनानी शासकों नें सुकरात के उपदेशों पर प्रतिबन्ध लगाने का प्रयास किया पर सफल न होने पर उन्होंने सुकरात को विषपान कर अपनी इहलीला समाप्त करने का आदेश दिया अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के इस प्रबल पैरोकार नें विषपान कर अपनी इहलीला तो समाप्त कर ली किन्तु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को आंच नहीं पहुचने दी इसके बाद सुकरात का शिष्य प्लेटो (४२८ ईसा पूर्व से ४२७ ईसा पूर्व ) प्लेटो का शिष्य अरस्तु (३८४ ईसा पूर्व से ३२२ ईसा पूर्व ) इन महान यूनानी दार्शनिकों नें तमाम मानवीय अधिकारों की व्याख्या की ।
इधर भारत में आगे चलकर सम्राट अशोक नें भगवान बुद्ध और भगवान महावीर के (धार्मिक) अवधारणाओं को लेकर उसे राजनीतिक रूप दिया और यह सब सम्राट अशोक नें कलिंग की लडाई के पश्चात् उसमे हुए नरसंहार से दुखी होकर मानव गरिमा को अच्छुण बनाये रखने के प्रयास के तहत किया । सम्राट अशोक का कार्यकाल ईसा पूर्व २७३ से २३२ तक बताया जाता है इसके पश्चात् मानवीय अधिकारों को केंद्रविन्दु मानकर विश्व में तमाम क्रांतियाँ हुई जिसमें १२१५ ईसवी में मैग्नाकार्टा, १७९१ अमेरिकी बिल ऑफ राइट्स, तथा मानव अधिकारों को व्यापक गरिमा फ्रांसीसी क्रांति (१७८९ ) के पश्चात प्राप्त हुई । अमेरिका में जाँ जैक के संविदा सिद्धांत से प्रेरित क्रांति के समय संविधान सभा नें यह घोषणा की थी कि अमेरिकी संविधान निर्मित होने पर सबसे पहले मानव अधिकारों का उल्लेख किया जाएगा यह घोषणा वास्तव में जार्ज वाशिंगटन के नेतृत्व में संयुक्त राज्य अमेरिका के स्वतंत्रता की घोषणा ( सन १७७८ ई०) के सिद्धांतों से प्रेरित थी ।
इसमें कोई दो राय नही कि भारत के आजादी की लडाई मानवीय अधिकारों के मूल्यों पर लड़ी गई । महात्मा गांधी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता के रूप में उभरे वे सत्याग्रह, अत्याचार के प्रतिकार एवं अहिंसा ( उन्होंने ये सभी अवधारणाए महावीर और बुद्ध के (धार्मिक) अवधारणाओं से उठाया ) और इसी का आजादी की लडाई में हथियार के रूप में इस्तेमाल किया तत्कालीन भारतीयों के दिलों-दिमाग पर छा गये सत्याग्रह, अत्याचार के प्रतिकार एवं अहिंसा रूपी हथियार इतनें कारगर साबित हुए कि आज भी समूची दुनिया महात्मा गांधी के इस प्रयोग का लोहा मानती है । देश के आजाद होनें के पश्चात सम्राट अशोक से प्रभावित हमारे तत्कालीन नेतागण भारतीय संविधान में भगवान बुद्ध और भगवान महावीर एवं सम्राट अशोक के अवधारणाओं को मौलिक अधिकारों के रूप में शामिल किया इतना ही नहीं हमारे देश के तत्कालीन नेतागण दो कदम और आगे जाकर अशोक चक्र को राष्ट्रीय चिन्ह एवं अशोक स्तम्भ को राष्ट्रीय मुद्रा चिन्ह के रूप में स्वीकृत किया ।
जानकारों के मुताबिक तमाम देशों के संविधान में भगवान बुद्ध और भगवान महावीर एवं सम्राट अशोक के अवधारणाओं एवं मूल्यों को शामिल किया गया है । इतना ही नहीं हर विषय पर पश्चिमी देशों की तरफ देखने वालों और तमाम मानव अधिकार कार्यकर्ताओं को शायद ही यह पता हो कि संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना २४ अक्टूबर १९४५ को हुई थी उसका मूल भगवान बुद्ध और भगवान महावीर एवं सम्राट अशोक की अवधारणाए एवं मूल्य ही है । जब हम मानवीय अधिकारों के अवधारणा के विकास का गहराई से अध्ययन करते है तब हमें मानव अधिकारों के विकास में प्राचीन भारत के राजा रामचंद्र, राजा कृष्ण, भगवान बुद्ध, भगवान महावीर एवं सम्राट अशोक से लेकर महात्मा गांधी के योगदान की अद्वितीय गाथा का पता चलता है किन्तु शायद इस बात से अनजान या जानते हुए कि पुरी दुनिया भारतीय महापुरुषों द्वारा निर्मित मानवीय अधिकारों के अवधारणाओं एवं मूल्यों को स्वीकार्य एवं अंगीकृत किया है । भारत सरकार नें संयुक्त राष्ट्रसंघ के दबाव में आकर मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम १९९३ तो संसद में किसी तरह पास कर दिया किन्तु सरकार मानव अधिकारों की गरिमा को अच्छुण बनाये रखने के प्रति कितनी उदासीन है, दिखाई देता है ।