गुरुवार, 12 अगस्त 2010

डूबते जहाज से मुंबई के पर्यावरण को गंभीर खतरा


मुंबई के समुद्री तट के पास जवाहरलाल नेहरु पोर्ट ट्रस्ट (जेएनपीटी) से करीब 5 (नॉटिकल) समुद्री मील की दूरी पर अरब सागर में 7 अगस्त शनिवार की सुबह 9.30 बजे पनामा के दो मालवाहक जहाज एमएससी चित्रा और एमवी खलिजिया की जोरदार टक्कर हुई इस हादसे में जहाज में सवार 33 क्रू मेंबरों को बचा लिया गया किन्तु इस टक्कर से एमएससी चित्रा के ईंधन टैंक में दरार आ जाने से जहाज (एमएससी चित्रा) डूब रहा है. और शनिवार से मुंबई के तटवर्तीय समुद्री क्षेत्र में तेल का रिसाव शुरू हो गया था बताया जा रहा है कि चित्रा के ईंधन टैंक से लगभग लगभग 500 से 800 टन तेल का रिसाव हो चूका है. चित्रा में कुल 2662 टन इंधन 283 टन डीजल और 88 टन लुब्रिकेटिंग तेल मौजूद था. भारी मात्रा में हुए तेल रिसाव से मुंबई के तटीय अरब सागर में 102 मील से अधिक के दायरे फ़ैल रहे तेल के कारण स्थानीय पर्यावरणीय परिस्थितिकी तंत्र और मैंग्रोव को बड़ा खतरा पैदा हो गया है. इस घटना से भारी मात्रा में मछलियों के मारे जाने की आशंका सहित समुद्री जीवन के भोजन के स्रोत स्थाई तौर पर नष्ट हो जायेंगे और भोजन नहीं मिलने से कई समुद्री प्रजातियाँ लुप्त हो जायेंगी.

राहत और बचाव के लिए कोस्टगार्ड के तरफ से "ऑपरेशन चित्रा" अभियान चलाया हुआ है जिसमें संकल्प, अमृत कौर, सुभद्रा कुमारी चौहान, कमला देवी, और सी-145 जहाजों को तैनात किया गया है तथा कोस्टगार्ड डोर्नियर हेलीकाप्टरों से प्रदूषण निरोधक अभियान चलाया जा रहा है. राहत और बचाव कार्यों में ओएनजीसी और जेएनपीटी की मदद ली जा रही है. मुंबई के येलोगेट पुलिस थाने में दोनों मालवाहक जहाजों के कैप्टन और चालक दल के सदस्यों के खिलाफ आईपीसी की धारा 280 (लापरवाही से जहाज चलाने), धारा 336 (दूसरों की जान जोखिम में डालने) और धारा 427 (शरारत के जरिए क्षति पहुंचाने) तथा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है. इतना ही नहीं इनके विरुद्ध पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की धारा 7-8 और 9 के तहत मुकद्दमा दर्ज किया गया है.

एमएससी चित्रा पर 1219 कंटेनर लदे हुए थे. इसमें से 31 कंटेनर में घातक रसायन थे. पिछले तीन दिनों में करीब 400 कंटेनर समुद्र में डूब गए हैं. हालांकि जहरीले रसायन वाले कितने कंटेनर डूबे हैं इसका अभी खुलासा नहीं हुआ है. लेकिन ये कंटेनर सबसे नीचे रखे थे इसलिए इनके पानी में डूबने की आशंका कम है. दुर्घटना के बाद पूरे इलाके में मैंग्रोव को भारी खतरा है साथ ही मानसून का यह वही समय है जब मछलियाँ ब्रीडिंग के लिए किनारे पर मैंग्रोव वनों तक आती है. ज्ञात हो कि भारत में मैंग्रोव कुल 3,60,000.हेक्टेयर में फैला हुआ है जोकि विश्व के कुल ज्वारीय वन का 3 % है मुंबई शहर, मुंबई उपनगर, ठाणे, रायगड़ और रत्नागिरी स्थित तटीय इलाकों में मैंग्रोव बहुतायत में पाया जाता है इसी मैंग्रोव या ज्वारीय वन से जैवविविधता और तटीय परिस्थितिकी तंत्र सुरक्षित रहता है.


एमएससी चित्रा के डूबने से समुद्रीय जल में घुलने वाले तेल, रसायन, कीटनाशक तटीय मैंग्रोव वनों और उसमें रहने वाले जीवों के लिए बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है. तटीय जीवों के संबंध में कहा जाता है कि प्राय: जीव ज्वारीय विस्तार एवं ज्वारीय आयाम से संबंधित होते है. मैंग्रोव वनों में पाए जाने वाले वन्य जीवन अद्भुत विविधता लिए होता है. मैंग्रोव वनों में पाए जाने वाले जीवों में मुख्यत: अकशेरुकी जीव तथा कीट आते है. पोरीफेरा, स्नाईडेरिया, आर्थोपोडा वर्गों के जीव जड़ों के आस-पास पाए जाते है. मैंग्रोव क्षेत्रों अति महत्वपूर्ण जीवों की सैकड़ों-सैकड़ों प्रजातियाँ पायी जाती है जैसे केकड़ो की लगभग 275 प्रजातियाँ. समुद्री मछलियों की अनेक प्रजातियाँ केवल मैंग्रोव क्षेत्रों तक ही सीमित और निर्भर रहती हैं.मैंग्रोव क्षेत्रों में छोटी मछलियों के जीवन के लिए अति आवश्यक भोजन तथा आश्रय प्राप्त होते है. मूंगे की चट्टानों (कोरल रीफ) में पाए जाने वाले तमाम जीवों के जीवन चक्र में मैंग्रोव क्षेत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. तटीय क्षेत्रों पर पायी जाने वाली मछलियों की संख्या पर मैंग्रोव वनों का प्रभाव अत्यंत महत्वपूर्ण है.

मैंग्रोव की जड़े मछलियों के लार्वा तथा छोटे बच्चों के लिए सुरक्षित आश्रय प्रदान करती हैं. मछलियों एवं अन्य अति महत्वपूर्ण समुद्री जीवों की कई ऐसी प्रजातियाँ हैं जिनका वयस्क जीवन तो सामान्यत: गहरे समुद्र तथा अन्य स्थानों पर गुजरता है किन्तु उनके बच्चे मैंग्रोव वनों में ही बड़े होते हैं. मैंग्रोव क्षेत्रों की स्वस्थ बहुतायत का मछलियों की संख्या से सीधा अनुपात देखने को मिलता है. मैंग्रोव क्षेत्रों में पायी जाने वाली मछलियों का इस वातावरण के तापमान तथा भौतिक और रासायनिक परिवर्तनों के साथ अनुकूलन अति आवश्यक है. कुछ अति महत्वपूर्ण समुद्रीय प्रजातियों ने स्वयं को मैंग्रोव वनों के वातावरण के इतना अनुकूल बना लिया है कि मैंग्रोव वनों के बिना उन प्रजातियों की कल्पना ही नहीं की जा सकती विस्तृत क्षेत्र में पायी जाने वाली द्विलिंगी किलीफिश ( रिवुलस मारमोरेटस) इसका अच्छा उदाहरण है. डूबते एमएससी चित्रा से हुए तेल और जहरीले रसायनों के रिसाव से मुंबई और आस-पास के मैंग्रोव वनों के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा पैदा हो गया है. यह खतरा जितना बड़ा मैंग्रोव वनों के लिए है उतना ही बड़ा उन सभी प्रजातियों के लिए है जो मुंबई और आस-पास के मैंग्रोव वनों के पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं.और जितना बड़ा खतरा मैंग्रोव वनों के पारिस्थितिकी तंत्र और जैवविविधता को है, मानवीय जीवन के लिए उतना ही बड़ा खतरा है.

जब हम मैंग्रोव के उपयोगिता को समझेंगे तब हमें पता चलेगा कि मुंबई और उसके आस-पास डूबते हुए जहाज से रिसने वाला तेल और जहरीला रसायन कितना विनाशक है. वस्तुत: मैंग्रोव वन विभिन्न प्रकार के समुद्री जीवों और वनस्पतियों के लिए अद्वितीय पारिस्थितिक पर्यावरण उपलब्ध कराते हैं. बहुत से जीव मैंग्रोव का विविध प्रकार से उपयोग करते हैं. मैंग्रोव के पौधों के पत्तों की टहनियां टूटी शाखाएं, बीज तथा फल विभिन्न प्रकार के जीवों के लिए भोजन उपलब्ध कराते हैं. ये क्षेत्र मूंगे की चट्टानों में तथा उसके आस-पास रहने वाले जीवों के छोटे बच्चों के लिए आदर्श शरणस्थल उपलब्ध कराते हैं. मैंग्रोव पौधों की आपस में गुथी हुई जलमग्न जड़ें अनेक प्रकार की मछलियों झींगे, पपड़ी वाले जीवों तथा कछुओं के लिए परभक्षियों से सुरक्षित आश्रय तथा प्रजनन ( ब्रीडिंग) स्थल का कार्य करती हैं. मैंग्रोव वन ज्वारीय दलदली क्षेत्रों के पोषक तत्त्व जैसे नाइट्रोजन फास्फोरस भारी धातुओं तथा सूक्ष्म तत्वों जो स्थलीय क्षेत्रों से नदियों द्वारा बहाकर लाये जाते है, के भण्डारण स्थल के रूप में कार्य करते है. सड़ती-गलती वनस्पतियों तथा अन्य जीव-जंतुओं से निकलने वाले तत्वों जैसे कार्बन, फास्फोरस तथा अन्य तत्वों के पुन: चक्रों में मैंग्रोव वनों का अद्वितीय योगदान होता है ये ज्वार भाटे के समय तटीय मिट्टी के कटाव को रोकते हैं ज्वार भाटे द्वारा मैंग्रोव वनों से पोषक तत्व समुद्र में ले जाये जाते है जहाँ समुद्री प्राणियों द्वारा इनका उपयोग होता है.

मैंग्रोव के वृक्षों से गिरने वाले पत्तियों, शाखाओं आदि का जीवाणुओं द्वारा अपघटन होता है इन प्रक्रिया में पोषक तत्व निकलते हैं जो आस-पास के पानी को उपजाऊ बनाते हैं अपघटित कार्बनिक पदार्थ तथा जीवाणु जैवद्रव्यमान ( बायोमास) को संयुक्त रूप से अपरद परिवर्तित करते हैं यह मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र में पैदा होने वाला यह एक मुख्य उत्पाद है. इसमें प्रोटीन का स्तर अधिक होता है और यहाँ जीव-जंतुओं के एक बड़ी संख्या के लिए भोजन प्रदान करता है जो पानी में से इस अपरद को छान कर अलग कर लेते हैं इस अपरद को खाने वाली छोटी मछलियों का शिकार बड़ी मछलियों द्वारा किया जाता है. मैंग्रोव वनों द्वारा उत्पन्न पोषक तत्व अन्य कोमल पारिस्थितिक तंत्रों जैसे प्रवाल भित्तियों, समुद्री शैवालों तथा समुद्री घास आदि को पोषण उपलब्ध कराते हैं. वर्षाऋतु के दौरान अधिक शुद्ध जल और अधिक करकट पात के परिणाम स्वरूप पोषक तत्वों की आपूर्ती बढ़ जाती है करकट पात के अपघटन से अपरद बनता है. अपरद पर सूक्ष्म जीवों की क्रिया से छोटे झींगों और मछलियों के पोषक तत्व बढ़ जाते हैं मैंग्रोव के पेड से गिरने वाली पत्तियों में जीवाणुओं के गतिविधियों के कारण अनेक जीवन के लिए भोजन की तथा प्राकृतिक आवास की व्यवस्था होती है. मैंग्रोव के इन प्राकृतिक आवासों में संसार की सबसे महत्वपूर्ण सामुद्रिक जैविक नर्सरी विद्यमान है. मुंबई और आस-पास के तटीय क्षेत्र भी मैंग्रोव के इसी स्वस्थ पारिस्थितिकी के हिस्सा हैं जो इस समय इस औद्योगिक हादसे यानि समुद्री मालवाहक जहाज एमएससी चित्रा से रिसने वाले तेल और जहाज से समुद्र में गिरे कंटेनरों जिसमें खतरनाक कीटनाशक रसायन से होने वाले रिसाव से गंभीर खतरे में पड़ गए हैं. समुद्र की सतह पर फैले इस जहरीले तेल और रसायन की अगर तत्काल और युद्ध स्तर पर सफाई नहीं की गई तो इस हादसे के कारण मुंबई का तटीय समुद्री इको सिस्टम भयानक पर्यावरणीय विनाश का गवाह बनेगा.

मुंबई के निकट दो समुद्री मालवाहक जहाजों की टक्कर मामूली घटना नहीं है. इस हादसे से यह तो बखूबी समझ में आता है कि मुंबई के तटीय समुद्र में सामान्य यातायात के नियमों के पालन की अनदेखी हो रही है. सवाल हार्बर ट्रैफिक मैनेजमेंट का है. क्यों हार्बर ट्रैफिक मैनेजमेंट इतना कमजोर है कि दो मालवाहक जहाज आपस में टकरा जा रहे हैं और सवाल सुरक्षा का भी, ऐसा तब हो रहा है जब भारतीय गुप्तचर एजेंसियों ने मुंबई पर समुद्री रास्तों से आतंकी हमले की आशंका जाहिर की हो और महाराष्ट्र सरकार अपनी तैयारियों को पूरा करने का दम भरती हो. आखिर इसे किस परिपेक्ष्य में देखा जाय. इससे भी बड़ा सवाल यह है कि इस तरह के दुर्घटनाओं से निपटने के लिए जरूरी संसाधनों और प्रभावी टेक्नोलाजी के मद्देनजर हम कहाँ खड़े हैं ? इस औद्योगिक दुर्घटना के कारण मुंबई के तटीय समुद्री पर्यावरण के इस गंभीर संकट की घड़ी में विदेशी तकनीक और मदद का मोहताज होना पड़ रहा है. दुर्घटनाग्रस्त जहाज से हो रहे तेल रिसाव पर काबू पाने के लिए विदेशी विशेषज्ञों को बुलाया गया जिसमें नीदरलैंड की कंपनी एलएमआईटी साल्वेज और सिंगापूर की एक कंपनी के विशेषज्ञों के दल का समावेश है. इस हादसे के राहत और बचाव कार्यों के लिए विदेशी विशेषज्ञों को बुलाने की मजबूरी हमारे देश के आपदा प्रबंधन की पोल खोलती है.
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राजेश सिंह
लेखक- नागरिक विकल्प के संपादक हैं
मो-919833004571
rajesh.aihrco@gmail.com

तेल के नाम पर खतरनाक खेल


हम सभी को समझना होगा कि भारत में एक लीटर पेट्रोल की कींमत 53 रूपये है ऐसा क्यों? और सरकार लगातार पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बढ़ोत्तरी करती जा रही है. आखिर तेल के नाम पर अपने देश के हुक्मरान कौन सा खतरनाक खेल खेल रहे हैं?

5 जुलाई को विपक्षी दलों नें भारत बंद का आयोजन किया, मुख्य मुद्दा था सरकार द्वारा पेट्रोलियम पदार्थों के बेतहासा दाम बढ़ाया जाना. विपक्षी दलों नें इस भारत बंद को बेहद सफल बताया तो कार्पोरेट संस्था एसोचेम नें इस बंद के कारण 10 000 करोड़ रूपये के अनुमानित नुकसान होने की बात कही, वही पेट्रोलियम मंत्रालय जो कि मूल्य वृद्धी के पहले सार्वजनिक पेट्रोलयम कंपनियों के घाटे का रोना रोती है, उन्होंने करोड़ों रूपये का मीडिया को विज्ञापन देकर आम जनता को यह बताने की कोशिश की कि पेट्रोलियम पदार्थों के कीमतों का बढ़ाया जाना गलत नहीं है. इन सबके मद्देनजर आम जनता अवाक् होकर यह ड्रामा देखती रही. उसे पता है कि अब महंगाई कम होने वाली नहीं है. आश्चर्य तो यह है कि देश का प्रबुद्ध वर्ग इस पेट्रोलियम मूल्य वृद्धी घोटाले पर अवाक् है या नहीं यह तो नहीं पता लेकिन चुप जरूर है. संभव है कि आगे चलकर पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृद्धि " पेट्रोलियम पदार्थ मूल्य वृद्धी घोटाला" के नाम से जाना जाये यह मूल्य वृद्धी हमें "पन्ना-मुक्ता-तेलक्षेत्र'' घोटाले की याद दिला रहा है जिसमें सरकार नें लगभग पूरा का पूरा तेल क्षेत्र मुफ्त में निजी कंपनियों को दे दिया. पन्ना-मुक्ता-तेलक्षेत्र का पता लगाने हेतु सारी मेहनत ओएनजीसी नें की थी किन्तु सरकार नें अपनी ही कंपनी को निकम्मा साबित करते हुए रिलायंस को काबिल बताया.

पिछले दिनों रिलायंस नें पूरे देश में 1432 और एस्सार नें 1100 पेट्रोल पम्प खोले थे किन्तु भारत सरकार की तरफ से लगातार पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में इजाफे के कारण उक्त निजी कंपनियां सार्वजनिक क्षेत्र की तीनों कंपनी इंडियन ऑयल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम लिमिटेड और भारत पेट्रोलियम लिमिटेड को सरकार के तरफ से सरकारी अनुदान मिल रहा था. वर्ष 2007-08 में इसी वजह से रिलायंस को 800 करोड़ रूपये का घाटा उठाना पड़ा. और रिलायंस को पेट्रोल पम्प बंद करने का निर्णय लेना पड़ा किन्तु रिलायंस पेट्रोल पम्प का डीलरशीप लेने वाले व्यापारी लगातार रिलायंस पेट्रोलियम के प्रबंधन पर "रिलायंस पेट्रोल पम्प डीलर्स एसोसियेशन" के बैनर तले दबाव डालते रहे कि या तो कंपनी फिर से पेट्रोल पम्पों को शुरू करने का तरीका ढूढे अथवा पेट्रोल पम्प डीलर द्वारा रिलायंस के पेट्रोल पम्पों में किये गए निवेश को वापस करे. इधर डीलर मालिकों और संचालकों (डीओडीओ) नें मिलकर एक प्रस्ताव पारित किया था कि भूमि के पट्टे को रद्द कर पेट्रोल पम्पों में लगे उपकरणों को बाजार के कीमत पर कंपनी खरीदे अथवा पेट्रोल पम्प फिर से शुरू कराए. सूत्रों के अनुसार रिलायंस समूह के अध्यक्ष परिमल नाथवानी नें "रिलायंस पेट्रोल पम्प डीलर्स एसोसियेशन" से इस समस्या के समाधान के लिए कुछ समय ( 6 माह ) माँगा था. अगर रिलायंस के पेट्रोल पम्प को सुरू करने जैसे समाधान पर विचार करें तो वह केवल और केवल सरकार द्वारा पेट्रोलियम पदार्थों पर से सब्सिडी हटवाने के शिवाय और कुछ था ही नहीं. रिलायंस नें एक वर्ष में करीब 40 लाख टन डीजल बेंचकर बाजार के 15 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा बना लिया था किन्तु कंपनी को कच्चे तेल के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उछाल के बीच सरकार नियंत्रित मूल्य पर डीजल, पेट्रोल बेंचना घाटे का सौदा हो गया था. अत: रिलायंस के पेट्रोल पम्प फिर से शुरू करने हेतु पेट्रोलियम पदार्थों से सब्सिडी हटाकर बाजार के नियंत्रण पर छोडना जरूरी था.

यह हम सभी को समझना होगा कि भारत में एक लीटर पेट्रोल की कींमत 53 रूपये है ऐसा क्यों? भारत में एक लीटर पेट्रोल की लगत 16।50 रूपये पड़ती है. एक लीटर पेट्रोल पर 11.80 रूपये केन्द्रीय कर, 9.75 रूपये एक्साईज ड्यूटी, 8 रूपये से लेकर 12 रूपये प्रति लीटर राज्य सरकारों का कर और 4 रूपये सेस वसूला जाता है. इन आंकड़ों को देखते हुए सरकार की दलील पर कैसे यकीन किया जा सकता है कि सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों को घाटा हो रहा है. रिकार्ड बताते है कि वर्ष 2008-09 में इन्डियन आयल कार्पोरेशन को 2950 करोड़ रूपये का शुद्ध मुनाफा हुआ, 31 मार्च 2010 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में आईओसी को शुद्ध मुनाफा 10998 करोड़ रूपये हुआ, एचपीसी और बीपीसी नें क्रमश: 544 और 834 करोड़ रूपये का शुद्ध मुनाफा कमाया वर्ष 2009-10 में पेट्रोलियम सेक्टर द्वारा कर,ड्यूटी,लाभांस इत्यादि के रूप में सरकारी खजाने में 90 000 करोड़ रूपये जमा हुए और वर्ष 2010-11 में सरकार को पेट्रोलियम सेक्टर से 1 20 000 करोड़ रूपये से ज्यादा आय होने का अनुमान है.

सरकार कहती है कि पेट्रोलियम पर जितना खर्च हो रहा है उतने की वसूली नहीं हो पा रही है सरकार यह भी कह रही है कि पेट्रोल,डीजल, रसोई गैस और मिट्टी के तेल को बड़ी मात्रा में सब्सिडाईज करना पड़ रहा है केन्द्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार सरकारी राशन की दुकानों से वितरित किये जाने वाले मिट्टी के तेल पर 2006-07, 2007-08 और 2008-09 में क्रमश: 970, 978 और 974 करोड़ रूपये की सब्सिडी दी गई बदले में इन्ही वर्षों में केन्द्र सरकार नें क्रमश: 17883, 19102 और 28225 करोड़ रूपये सरकारी राशन की दुकानों के जरिये वसूले. इसी तरह रसोई गैस पर केंद्र सरकार नें 2006-07, 2007-08 और 2008-09 में क्रमश: 1554, 1663 और 1714 करोड़ रूपये की सब्सिडी दी बदले में इन्ही वर्षों में केन्द्र सरकार नें क्रमश: 10701, 15523 और 17600 करोड़ रूपये वसूल किये यानि मिट्टी के तेल और रसोई गैस से कुल मिलाकर 2006-07, 2007-08 और 2008-09 में क्रमश: 2524, 2614 और 2688 करोड़ रूपये दिए और इन्ही वर्षों 2006-07, 2007-08 और 2008-09 में मूल्य वृद्धि करके क्रमश: 28584, 34625 और 45825 करोड़ रूपये वसूले. इसी तरह डीजल में 2006-07, 2007-08 और 2008-09 में क्रमश: 18776, 35166 और 52286 करोड़ रूपये और पेट्रोल में 2006-07, 2007-08 और 2008-09 में क्रमश: 2027, 7332 और 5181 करोड़ रूपये वसूले.

पेटोलियम पदार्थों को बाजार के नियंत्रण पर छोडऩे वाली यूपीए सरकार का विरोध करने का स्वांग रचने और भारत बंद में अग्रणी भूमिका निभाने का दावा करने वाली प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा अपने कार्यकाल में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को यूपीए सरकार की ही तरह बेतहासा बढ़ाया था। वर्ष 1998 में जब एनडीए के माध्यम से भाजपा सत्ता की बागडोर संभाली तो पेट्रोल 23 रूपये लीटर डीजल 10.25, रूपये रसोई गैस 136 रूपये और मिट्टी का तेल 2.50 रूपये था किन्तु वर्ष 2004 में पेट्रोल 34 रूपये, डीजल 21.74 रूपये, रसोई गैस 242 रूपये और मिट्टी का तेल 9 रूपये हो गया यानि पेट्रोल 50 फीसदी, डीजल 111 फीसदी, रसोई गैस 90 फीसदी और मिट्टी के तेल में 300 फीसदी बढोत्तरी की इस लिहाज से कांग्रेस 2004 में जब सत्ता संभाली तो पेट्रोल की कींमत 34 रूपये प्रति लीटर थी वह अब 53 रूपये, डीजल 21.74 रूपये थी अब 41 रूपये रसोई गैस 242 रूपये थे अब 345 रूपये, मिट्टी के तेल की कींमत 9 रूपये से अब 12 रूपये अर्थात पेट्रोल 50 फीसदी, डीजल 90 फीसदी, रसोई गैस 45 फीसदी और मिट्टी के तेल में 33 फीसदी की बढ़ोत्तरी की है.


यह लगभग सभी को पता है कि क्यों और किसके लिए इस तेल के खेल को खेला जा रहा है. यह मूल्यवृद्धि कांग्रेस की लोकप्रियता के कींमत पर की जा रही है इस मूल्य वृद्धि से मनमोहन का कुछ नहीं बिगड़ेगा क्योकि यह उनकी आखिरी पारी है किन्तु कांग्रेस और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को यह आत्ममंथन करने का समय है कि कांग्रेस की उर्बरा शक्ति कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और देश के आम नागरिकों के लिए है कांग्रेस की उर्बरा शक्ति मनमोहन और उनकी चौकड़ी के माध्यम से पूंजीपतियों के लिए देश के संसाधनों के अबाध लूट का रास्ता बनाने के लिए है. जब मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बनाये गए थे तो देश की आम जनता को यह बताया गया था कि हमें अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मिला है राष्ट्र आर्थिक संवृद्धि के नए-नए कीर्तिमान स्थापित करेगा. राष्ट्र का तो पता नहीं हाँ सरकार नें ताबडतोब महंगाई बढ़ाकर जरूर आम आदमी को बुरी तरह चूसने का कीर्तिमान स्थापित किया. राष्ट्र को आर्थिक संवृद्धि मिली या नहीं मिली किन्तु पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों की आर्थिक संवृद्धि में चार चाँद जरूर लग गए देश का एक चौथाई संसाधन 100 पूंजीपति के कब्जे में चला गया, इधर देश के 22 करोड़ लोग भूखे पेट सोने को अभिसप्त है 5 करोड बच्चों को पर्याप्त पोषक पदार्थ नहीं मिल रहा है अब तेल की कीमतें बढ़ी है तो जाहिर है कि (ट्रांसपोटेशन) खाद्यान ढुलाई भाड़ा बढ़ेगा तो खाद्यान की कीमतें अपने आप बढ़ेंगी 22 करोड भूखे पेट सोने वालों का आकड़ा बढकर 32 करोड़ हो जायेगा 5 करोड़ कुपोषित बच्चों का आकड़ा 10 करोड़ के आकडे को छू लेगा इस बीच मनमोहन जब भी बोलेंगे तो ओबामा समेत सभी अंतर्राष्ट्रीय नेता सुनेंगे जिन्हें मनमोहन की जनविरोधी नीतियों का फायदा पहुँच रहा है अगर कोई नहीं सुन पायेगा तो वो भारत का आम आदमी क्योंकि कुपोषण से उसके कान के पर्दे सूख चुके होंगे।
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यह लेख विस्फोट.कॉम पर १२ जुलाई को प्रकाशित हो चुका है

रविवार, 1 अगस्त 2010

चिट्ठाजगत को बचाओ !

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