बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

तकनीकी चुनने की आजादी पर सरकारी हमला


भारत सरकार नें डिजिटाईजेशन के बहाने देश के आम आदमी के तकनीक चुनने की आजादी पर हमला करते हुए आज से टीवी प्रसारण को रोक देने की धमकी विभिन्न समाचार चैनलों और समाचार पत्रों के माध्यम से दी है वस्तुतः यह सरकार के द्वारा किया जा रहा मानव अधिकारों का गंभीर उलंघन और संविधान प्रदत्त मूलभूत अधिकारों पर हमला है. भले ही इसे कानूनी जामा पहनाया गया हो. तकनीकी चुनने की आजादी देश के नागरिक का संवैधानिक अधिकार है 


यह उसे तय करना है कि वह डिजिटल टीवी देखेगा या मौजूदा सादा टीवी. अगर देश के किसी महानगर का एक नागरिक इस डिजिटाईजेशन में शामिल नहीं होना चाहता तो यह सरकारी बलजबरी है. सरकार द्वारा आम जनता के ऊपर थोपी गई इस महंगाई के दौर में टीवी के सेटअप बाक्स लगाने के नाम पर 800 रूपये की जेबतरासी की जा रही है. आज टीवी पर धमकी भरे एड चल रहे है कि अगर आपने अपने टीवी में सेटअप बाक्स नहीं लगवाया तो आपकी टीवी आज रात से बंद हो जायेगी. ज्ञात हो कि इस संबंध में ट्राई के माध्यम से अप्रैल में ही नियम पास करा लिया गया था.

वस्तुतः यह जबरन डिजिटाईजेशन के पीछे सरकार और इलेक्ट्रानिक मिडिया का आम आदमी से इंटरटेनमेंट के नाम जबरन उगाही का षड्यंत्र भी है. सरकार और उन पूंजीपतियों द्वारा डिजिटलाईजेशन के बहाने सेटअप बाक्स लगाए जाने के बाद फ्री एयर टीवी चैनल को पे चैनल के दायरे में लाने की की योजना है जो टीवी चैनल उद्योग से जुड़े है. वैसे भी केबल नेटवर्क के माध्यम से जिन शहरी उपभोक्ताओं को 300 रूपये मासिक शुल्क पर कनक्शन उपलब्ध था उसे डिजिटलाईजेशन के नाम पर 500 रूपये मासिक शुल्क देना ही होगा. जानकार बताते है कि यह सब टीवी चैनल उद्योग से जुड़े उद्योगपतियों को दोहरा मुनाफा कमाने का अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से सरकार द्वारा इस जबरन डिजिटाईजेशन को अंजाम दिया जा रहा है. जिससे टीवी चैनल उद्योग से जुडी कंपनियां एडवर्टाइज के माध्यम से मुनाफा कमाने के साथ-साथ दर्शकों को अपने टीवी चैनल दिखाने की किंमत वसूल सकें.

मेरा मानना है कि तकनीकी विकास, और तकनीक के इस्तेमाल के लिए जागरूकता दोनों जरूरी है किन्तु निःशुल्क, अगर सरकार को शुल्क लगाना है तो उपभोक्ता को तकनीक चुनने के आजादी का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए साथ ही उसके द्वारा किसी तकनीकी के इस्तेमाल को अनिवार्य और कानूनी जामा पहनाकर उसके इस्तेमाल के लिए मजबूर करना सरासर गैरकानूनी है. यह डिजिटाईजेशन देश की जनता के लिए नहीं बल्कि टीवी चैनल चलाने वाली कंपनियों के मुनाफा कमाने केबल आपरेटरों को इस व्यवसाय से बाहर करने और देश के प्रत्येक टीवी उपभोक्ता के सिर पर इंटरटेनमेंट टेक्स का बोझ डालने की सोची-समझी रणनीति है. डिजिटाईजेशन के नाम पर 800 रूपये प्रति सेटअप बाक्स हिसाब से दिल्ली में पिछले शुक्रवार को केवल एक दिन में 82,000 सेटअप बाक्स लगाए गए इस जबरन डिजिटाईजेशन के सरकारी और टीवी चैनल मालिकों के संयुक्त कयावद में सेटअप बाक्स बनाने वाली कंपनियों के प्रतिदिन करोड़ों के वारे-न्यारे हो रहे है साथ ही टीवी चैनलों द्वारा एड के बहाने उपभोक्ताओं को धमकाया जा रहा है कि अगर आपने सेटअप बाक्स नहीं लगाया तो आज से आपके टीवी पर प्रसारण रोक दिया जाएगा.

हम मान लेते है कि सरकार को हमारे हितों की चिंता है सरकार चाहती है कि हम मौजूदा टीवी के बजाय डिजिटल टीवी के दर्शक बनें किन्तु और दूसरे मामलों में सरकार यह चिंता क्यों नहीं दिखाती उन चार महानगरों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में जितने तेजी से टीवी के डिजिटाईजेशन को अनिवार्य करने में लगी है उतनी तेजी शहरी गरीबी उन्मूलन में क्यों नहीं दिखाती, उतनी ही तेजी जवाहरलाल नेहरू अर्बन रिन्यूवल मिशन में चल रहे व्यापक भ्रष्टाचार को रोकने में क्यों नहीं दिखाती, सूचना और शिक्षा के अधिकार, स्वास्थ्य और चिकित्सा के अधिकार को लागू करनें में क्यों दिखाती, सड़क, बिजली और पानी के साथ उन चार महानगरों के बुनियादी सुविधाओं और बुनियादी ढांचे के विस्तार और उसे सुधारनें में क्यों नहीं दिखाती सरकार के टीवी के डिजिटाईजेशन को अनिवार्यता के मद्दे नजर ऐसा प्रतीत होता है कि देश के आम नागरिको की जेबतरासी के लिए बकायदा कानून बनाकर बारी-बारी से उद्योगपतियों के समक्ष परोसा जा रहा है. 

पहले जब यह कहा जाता था कि मौजूदा दौर में सरकार हमें और आपको देश के नागरिक से उपभोक्ता बनाने का प्रयास कर रही है तो यह महसूस होता था कि सरकार हमें उपभोक्ता बनाने के लिए लाख प्रयास करे किन्तु अंततः यह तो हमें ही तय करना है कि हम देश के नागरिक बने रहे या उपभोक्ता बन जाए. किन्तु अब स्थितियां इससे उलट है अब जोर-जबरदस्ती और क़ानून के माध्यम से हमें उपभोक्ता बनाया जा रहा है. अतः देश के सुधीजन को अब यह समझना होगा कि आज देश के नागरिकों के ऊपर इस जबरन डिजिटलाईजेशन थोप रही सरकार को अगर रोका नहीं गया तो कल फिर यही सरकार तकनीकी विकास, और तकनीक के इस्तेमाल के लिए जागरूकता के नाम पर जोर-जबरदस्ती और क़ानून के माध्यम से साधारण टीवी की जगह एलसीडी टीवी अनिवार्य करेगी, होम थियेटर अनिवार्य करेगी, एयरकंडीशन अनिवार्य करेगी और ऐसा न् करने पर टीवी प्रसारण रोकने और बिजली काटने की डेड लाइन देगी महंगाई, बेरोजगारी, अशिक्षा और मुफलिसी से त्रस्त देश का आम नागरिक आखिर कब तक इस सरकारी उत्पीडन बर्दास्त करेगा.

राजेश रा. सिंह