शनिवार, 26 नवंबर 2011

मनमोहन सरकार का जनविरोधी फैसला

भारत में पिछले दो सालों से जब लगातार खाद्य पदार्थों के दाम बढाये जा रहे थे तब भी शायद कुछ लोगों को मालूम था कि रणनीतिक रूप से नए-नए कीर्तिमान स्थापित करती इस कृत्रिम महंगाई के पीछे कौन है. देश के आम जन के सामने इसका खुलासा २४/११/२०११ गुरुवार रात ९. बजे उस समय हो गया जब खबर आयी कि सरकार में बैठे लोगों नें एक खतरनाक और जन विरोधी फैसला ले लिया है. गुरुवार को भारत के खुदरा बाजार में एफडीआई को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई. कैबिनेट के इस फैसले नें खुदरा बाजार में विदेशी कंपनियों को मल्टी ब्रांड रिटेल में ५१ % की हिस्सेदारी और सिंगल ब्रांड रिटेल में १००% हिस्सेदारी के लिए छूट दे दी. इसी के साथ वर्षों से भारत के इस सघन खुदरा बाजार पर गिद्ध दृष्टी गडाए वालमार्ट (अमेरिका) केयरफोर (फ्रांस), टेस्को (ब्रिटेन) व मेट्रो (जर्मनी) जैसी विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए भारत में अपने मेगा रिटेल स्टोर श्रृंखला खोलने के रास्ते खुल गए.

वैसे तो मनमोहन सरकार नें वर्ष २००६ में ही एक ‘प्रेसनोट’ जारी कर निम्नलिखित शर्तों के साथ ‘सिंगल ब्रांड’ उत्पादों के खुदरा बाजार में ५१% तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की इजाजत दे दी थी जिसमें कहा गया था कि (१) बिक्रय उत्पाद केवल सिंगल ब्राण्ड होना चाहिए, (२) उत्पादों को अन्तर्राष्ट्रीय पैमाने पर उसी ब्राण्ड के तहत बेचा जाना चाहिए, (३) सिंगल ब्राण्ड उत्पाद रिटेलिंग में केवल वे ही उत्पाद शामिल होंगे, जिन्हें निर्माण के दौरान ही ब्राण्डेड किये जाते हैं. और अब कैबिनेट द्वारा एफडीआई को दी गई मंजूरी के नोट में खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के लिए निम्नलिखित शर्तों को शामिल किया है वे हैं (१) विदेशी कंपनियों के निवेश का ५० फीसदी आधारभूत सरंचना जैसे कोल्ड स्टोरेज, स्टोर जैसे इंतजामों पर खर्च करना होगा. (२) ३० फीसदी खरीददारी छोटे और मझौले आकार के उद्योगों से होगी. (३) १० लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में ही ऐसे स्टोर खोले जाएंगे.(४) ब्रांडेड और गैर ब्रांड की चीजों की भी बिक्री करनी होगी.(५) एक प्रोजेक्ट में कम से कम ५०० करोड़ रुपये का निवेश करना होगा.

सरकार के इस फैसले के साथ एक सवाल उभरता है कि उन करोड़ों खुदरा व्यापारियों का क्या होगा जो अपनी छोटी-छोटी पूंजी के साथ किराना का व्यवसाय कर अपनी आजीविका चला रहें है. एफडीआई के माध्यम से इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों का भारतीय बाजारों में प्रवेश कराकर चाहे भारत सरकार जितने भी सब्जबाग दिखाये, खुदरा व्यापार में भीमकाय बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रवेश से हमारे देश के आतंरिक व्यापार, बल्कि संपूर्ण अर्थव्यवस्था के ताने-बाने को गंभीर खतरा पैदा हो जायेगा. बताते है कि भारतीय बाजार में मोनसेंटो नें पिछले ५ वर्षों में किसानों के उपयोग के लिए कीटनाशक और सीड्स बेच कर ५०० गुना मुनाफा कमाया है और वही पिछले ५ वर्षों में देश में ५५ हजार किसानों नें आत्महत्या की. मनमोहन सरकार द्वारा इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए भारतीय खुदरा बाजार के दरवाजे खोलने के उतावलेपन के बरक्स देखा जाय तो किसानों और कृषि के लिए हमारी सरकार की नीति क्या है ? देश में किसानों से उनकी जमीनें छिनी जा रही है आंकड़े बताते है कि एसीजेड और विकास के नाम पर किसानों से अब तक १०% उपजाऊ जमीन छीन ली गई है ऊपर से तुर्रा यह कि इससे किसानों को फायदा होगा. किसानों और कृषि नीति पर सरकार की अनदेखी किसी से छिपी नहीं है. किसानों द्वारा लगातार की जा रही आत्महत्या इसका ज्वलंत उदाहरण है.

यहाँ करीब डेढ़ दशक पहले की पंजाब की उस घटना की चर्चा जरूरी है जब पंजाब सरकार ने एक विदेशी कंपनी से समझौते के बाद राज्य के किसानों को टमाटर बोने के लिए प्रोत्साहित किया था. उस समय कंपनी ने वादा किया था कि वह किसानों से उचित मूल्य पर टमाटर खऱीदेगी और अपनी प्रोसेसिंग यूनिट में उससे केचप और दूसरी चीजें तैयार करेगी, लेकिन जब टमाटर का रिकार्ड उत्पादन होने लगा तो कंपनी तीस पैसे प्रति किलो की दर से टमाटर मांगने लगी. जिससे क्रुद्ध होकर किसानों ने कंपनी को टमाटर बेचने की बजाय सड़कों पर ही फैला दिए थे यानी किसानों को वाजिब हक कहां मिल पाया था. किसानों और उपभोक्ताओं को फायदा होने का तर्क देने वाले भूल जाते हैं कि देश में जिन करोड़ों लोगों की जीविका गली-मुहल्ले में रेहड़ी-पटरी लगाकर सब्जी-भाजी बेचकर चलती है या गली के मुहाने की दुकान के सहारे रोजी-रोटी चल रही है, रिटेल चेन बढ़ने के बाद उन ४.५ से ५ करोड लोगों का क्या होगा.

मनमोहन जी आपके इमानदारी और काबिलियत पर मुग्ध होकर आपको इस देश नें बहुत कुछ दिया है आपसे लिया कुछ नहीं. आप पर भरोसा कर इस देश नें आपको रिजर्व बैंक का गवर्नर बनाया, विदेशी संस्थानों में आपको सम्मानित पदों पर बिठाया, आपके अर्थशास्त्रिय ज्ञान पर भरोसा करते हुए वित्त मंत्रालय की बागडोर दी, और अंततः इस देश के सर्वोच्च पद पर आपको पदासीन किया किन्तु आपने इस देश को क्या दिया. आपने इस देश को पूंजीवाद के अंधे कुंए में धकेलने की कोशिश की, आपने अपने कैबिनेट के लुटेरे सहयोगियों को भ्रष्टाचार के बड़े बड़े कीर्तिमान कायम करने की खुली छूट दी, आपने महंगाई को चरम पर पहुंचाया, आप लगातार देश के आम आदमी और गरीबों की उपेक्षा करते हुए धन पिपासुओं और पूंजीपतियों के हक में तमाम फैसले लेते रहे.

लेकिन अब खुदरा बाजार में एफडीआई को कैबिनेट की मंजूरी दिलवाने और उसे लागू करने के आपके फैसले के कारण इस देश की ३३% आबादी जिसका जीवन यापन इसी खुदरा कारोबार के भरोसे है, बुरी तरह प्रभावित होगी क्योकि इस खुदरा कारोबार में ४.५ से ५ करोड लोग प्रत्यक्ष रूप से, १० करोड लोग अप्रत्यक्ष रूप से शामिल है और इसी खुदरा कारोबार के वजह से ४० करोड लोगों का जीवन यापन हो रहा है. इन सभी से इनका रोजगार बहुराष्ट्रीय कंपनियां एक झटके में छीन लेंगी और ये बेरोजगारी के शिकार होकर भुखमरी के कगार पर पहुंच जायेंगे. इसलिए मनमोहन सिंह जी आपको समझना चाहिए कि यह युद्ध-अपराध से भी बड़ा अपराध है. आपके इस जनविरोधी फैसले को यह देश कभी माफ नहीं करेगा और जब कभी इतिहास में आपको याद किया जायेगा तो “पूंजीवाद के दलाल” के रूप में ही याद किया जायेगा देश के एक सम्मानित नेता के रूप में नहीं. मनमोहन सिंह अगर देश के प्रधानमंत्री के रूप में आम आदमी के भले के लिए नहीं सोच सकते तो कम से कम राजनीतिक रूप से कांग्रेस के भले के लिेए तो सोचें ही क्योंकि इसका सबसे अधिक राजनीतिक नुकसान कांग्रेस को होगा.