बुधवार, 7 सितंबर 2011

सोती सरकारें मरते लोग

आज सुबह १० बजकर १५ मिनट पर दिल्ली हाईकोर्ट के गेट नं ५, पर जोरदार बम धमाका हुआ है । बताया जा रहा है कि इस् बम धमाके में कम से कम ११ लोगों की मौत हो गयी है और लगभग ७६ से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हैं। आज बुधवार का दिन था। आज का दिन दिल्ली हाईकोर्ट के पीआईएल (पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन) का दिन होता है यह बम धमाका दिल्ली हाईकोर्ट के गेट नं ४ और ५, के बीच जहाँ लिटीगेंस/ विजिटर्स का पास बनाया जाता है लिटीगेंस /विजिटर्स का पास बनाने के लिए लोगों की लंबी कतार लगी हुई थी। सुबह कोर्ट खुलने का समय होने के कारण दिल्ली हाईकोर्ट के गेट नं ५, के आस-पास वकीलों और उनके मुवक्किलों की भारी भीड़ जमा थी। चश्मदीदों के अनुसार यह बम ब्रीफकेस में रखकर लाया गया था और इसे ठीक उस वक्त ब्लास्ट कराया गया जब दिल्ली हाईकोर्ट के गेट नं ५ पर भारी भेद जमा थी। भारत सरकार के गृह सचिव के मुताबिक इस् धमाके में आईईडी और टाइमर का इस्तेमाल किया गया हो सकता है। धमाके में अमोनियम नाईट्रेट का भी इस्तेमाल किये जाने की खबर है। इस् बीच खबर आयी है कि हरकतुल इस्लामी जेहाद के नाम का मेल मीडिया को भेजकर एक आतंकी गुट नें इस आतंकी कार्रवाई की जिम्मेदारी ली है। गृह मंत्रालय के अनुसार इस मामले के जाँच की जिम्मेदारी नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी (एन.आई.ए) के हवाले कर दी गयी है।

केन्द्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम नें संसद में दिए गये अपने बयान में यह क़ुबूल कर लिया है कि यह एक आतंकवादी हमला है। उन्होंने मृतकों के परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त करने की रस्म अदायगी भी की साथ ही धमाके की जगह का ८ मिनट ( इतने कम समय में पी चिदंबरम नें घटनास्थल का दौरा कर क्या हासिल करना चाहते थे ए वे ही जानें) का दौरा कर यह जताने की भरपूर कोशिश की है कि सरकार इस आतंकी कार्रवाई में मारे गये लोगों और घायलों के प्रति संवेदनशील है। दिल्ली की मुखिया शीला दीक्षित भी १.१५ बजे घायलों का हाल-चाल जानने डॉ राम मनोहर लोहिया अस्पताल पहुंची। जाहिर है कि इस धमाके से संबंधित और इस तरह के मामलों को रोकने के लिए जिम्मेदार दोनों नेताओं नें लगभग अपनी-अपनी औपचारिकतायें पुरी कर ली हैं संभव है कि इन दौरों के पश्चात् मृतकों के परिजनों और घायलों के लिए मुआवजे भी घोषित कर दिए जाय। शीला दीक्षित की आगवानी के लिए डॉ राम मनोहर लोहिया अस्पताल का अमला हाँथ बांधे खड़ा नजर आया किन्तु आश्चर्य यह होता है कि घायलों और मृतकों के परिजन पागलों की तरह अपनें लोगों को ढूढ़ रहे थे किन्तु उन्हें जानकारी देने वाला किसी भी अस्पताल में कोई नहीं था।

ज्ञात हो कि इसी वर्ष २५ मई को दिल्ली हाईकोर्ट की पार्किंग में आतंकियों द्वारा बम धमाका किया गया था किन्तु उस धमाके में न किसी की मौत हुई थी और न ही कोई हताहत हुआ था। दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर गेट नं ५ पर आज किये गये बम धमाके उन आतंकियों के मनोबल और हमारी सुरक्षा एजेंसियों के नकारेपन का पता चलता है। बताया जाता है कि दिल्ली पुलिस के आलावा दिल्ली हाईकोर्ट की सुरक्षा का जिम्मा सीआईएसएफ के हवाले है। सवाल यह पैदा होता है कि ये सभी सुरक्षा एजेंसियों ने २५ मई को दिल्ली हाईकोर्ट परिसर में हुए बम धमाके के बाद सुरक्षा के लिहाज से क्या कदम उठाया । क्या उस जगह पर जहाँ २५ मई को बम धमाका हुआ था वहां सीसीटीवी कैमरे नहीं लगाये जा सकते थे ? अगर पिछले धमाके से सबक लेते हुए उस स्थान पर सीसीटीवी कैमरे लगा दिए गये होते तो आज के धमाके की जांच में कुछ न कुछ मदद जरूर मिलती, कुछ न कुछ सुराग सीसीटीवी कैमरे के माध्यम से जरूर मिलते। आम तौर पर कहा जाता है कि आतंकी उस जगह को दुबारा निशाना नहीं बनाते जिस जगह को वे एक बार निशाना बना चुके होते है किन्तु आज के बम धमाके के मामले में आतंकियों द्वारा इस् सोच को पलट दिया गया दीखता है।

देश में जहाँ जहाँ आतंकियों द्वारा बम धमाके किये गये है वहां के सुरक्षा के बारे में अगर एक नजर डालें तो हमें पता चलता है कि सुरक्षा एजेंसियों द्वारा भारी लापरवाही की जा रही है। सवाल यह उठता है कि किसी भी आतंकवादी कार्रवाई के पश्चात प्रेकॉशन के लिए कौन कौन से स्टेप उठाये गये। क्या मुखबिरी के नेटवर्क को मजबूत किया गया ? क्या तकनीक के इस्तेमाल के लिए जरूरी कदम उठाये गये ? अथवा क्या इसे नियती मानकर देश की सुरक्षा एजेंसियों की मजबूरी को मान्यता दे दी जाय ? बांग्लादेश के दौरे पर गये देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का भी बयान आ चुका है उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के पास हुए इस आतंकी कार्रवाई को 'कायरता पूर्ण कार्रवाई' बताया है। उन्होंने कहा है कि "हम इस आतंकवाद के आगे झुकेंगे नहीं, ये एक लंबी लड़ाई है जिसमे सभी राजनैतिक दलों और नागरिकों को मिलकर लड़ना होगा" प्रधानमंत्री जी देश का आम आदमी आपसे पूछ रहा है कि आतंकियों के विरुद्ध इस लड़ाई को लड़ने के लिए आपकी क्या तैयारी है ? इसका जवाब है आपके पास ? क्या इस लड़ाई में आप लगातार आम आदमी को झोकते रहेंगे आखिर इन आतंकवादी कार्रवाई को रोकनें में आप अक्षम क्यों हैं ? इन आतंकी कार्रवाईयों में आम जनता मरने को अभिशप्त क्यों है।

वकील के लबादे में और वकील की हैसियत से दिल्ली हाईकोर्ट में घटनास्थल पर पहुंचे कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी नें मीडिया से पहले ही अपनी असहमती दर्ज करा दी उन्होंने कहा कि वे मीडिया से असहमत हैं । (ध्यान रहे कि उस समय मीडिया के लोग ऐसे धमाकों को न रोक पाने के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे थे ) अब अभिषेक मनु सिंघवी से यह कौन पूछे की इस् भारी चूक की जिम्मेदार सरकार और संबंधित एजेंसियां नहीं हैं तो और कौन है? शीला दीक्षित नें मृतकों और घायलों के परिजनों के प्रति सहानुभूति जताती नजर आयी। लेकिन शीलाजी आपकी सहानुभूति का आम आदमी क्या करे, उसे ओढ़े या बिछाए, क्या आपके सहानुभूति से उन लोगों के परिजनों के जीवन हानि या वे जिन्होंने धमाके में अपनें हाँथ-पाँव खो दिए है उनके नुकसान की भरपाई हो पायेगी, आपनें तो चूक की जिम्मेदारी इन्क्वायरी के गड्ढे में डाल दिया। अब शायद is चूक की गाज किसी छोटे-मोटे अधिकारी पर गीरेगी और उसे नाप दिया जायेगा। और जैसा कि लगभग सभी आतंकी कार्रवाई के बाद एक सवाल उठ खड़ा होता है कि क्या इस् आतंकी कार्रवाई के बाद हमारी सरकार और संबंधित एजेंसियां सबक ले लेंगी? क्या आइन्दा इस तरह की घटनाओं को रोकने का तरीका निकाल लिया जायेगा ? या इस घटना के बाद भी सरकारें और संबंधित एजेंसियां सोती रहेंगी और देश का आम आदमी इन आतंकी कार्रवाईयों का शिकार होकर लगातार मरता रहेगा। और इस तरह के धमाकों को रोकने के लिए (गलत) नीतियां बनाने के जिम्मेदार लोग सत्ता के गलियारे में उसी पुराने ठसक के साथ सत्ता की मलाई खाने में मशगूल हो जायेंगे या देश की आम जनता इन्हें इनकी जिम्मेदारियों का एहसास करायेगी।

रविवार, 4 सितंबर 2011

कुपोषण के काल के गाल में नौनिहाल

भिवंडी, शाहपुर, वाडा, मोखाड़ा, पालघर, दहाणू, व तलासरी के इलाके देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से १०० किलोमीटर के दायरे में पड़ते है। लेकिन १०० किलोमीटर दूर मुंबई अगर अपने ऐशो आराम के लिए जानी जाती है तो मुंबई से सटे ये इलाके इन दिनों किसी और कारण से चर्चा में है। यह कारण है अबोध बच्चों की कुपोषण से मौत। भारी संख्या में बसे आदिवासी और उनके बच्चे भूख और कुपोषण के चलते कीड़े-मकोड़ों की तरह मरने को अभिशप्त है। बीते महीने अगस्त के आख़िरी सप्ताह में खबर आयी कि इन उपरोक्त इलाकों में कम से कम १५० आदिवासी बच्चों की कुपोषण से मौत हो गई तथा हजारों की संख्या में बच्चे आब भी कुपोषण के कारण मौत के कगार पर हैं।

यह खबर भी तब आ रही है जब देश भर में १ से ७ सितंबर के बीच राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया जा रहा हैराष्ट्रीय पोषण सप्ताह के बीच कुपोषण से मौत की ख़बरें स्तब्ध कर देने वाली है। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार अप्रैल से जून २०११ तक कुपोषण से ठाणे जिले में कुल १५८ मृत्यु दर्ज की गई। इसमें ११९ बच्चों की उम्र केवल १ वर्ष है तथा बाकी बच्चों की उम्र ६ वर्ष तक है। आंकड़ों के अनुसार अप्रैल में ५५, मई में ४९, और जून में ५४ बच्चों की मृत्यु कुपोषण से हुई इस वर्ष के आंकड़ों के अनुसार भिवंडी में ३, वसई में १, मुरबाड में ३, शाहपुर में १४, वाडा में ६, दहाणू में ७, मोखाड़ा में ५, जव्हार में ६, और विक्रमगढ़ में १, बच्चे की मौत कुपोषण के कारण हुई।

इन कुपोषण से लगातार हो रही मौतों के संबंध में अगर ठाणे जिले के स्वास्थ्य विभाग के दावे को माने तो कुपोषण से हो रही इन मौतों में ३०% की कमी आयी है प्राप्त आंकड़ों के अनुसार मोखाड़ा तालुका में ही कुल ९४३७ बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। बताया जाता है कि मोखाड़ा तालुका में सामान्य कुपोषित बच्चों की संख्या ५९९०, तथा मध्यम कुपोषित बच्चों की संख्या ३१६५ और तीव्र कुपोषित बच्चों की संख्या २८२ सहित कुल ९४३७ बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं। उन २८२ कुपोषित बच्चों की हालत दिनों-दिन बद-से बदतर होती जा रही है और जिले का स्वास्थ्य विभाग आंकड़े इकट्ठे करने और उसकी तुलना पिछले वर्ष कुपोषण से हुई मौतों से करने में मशगुल है। जबकि स्वास्थ्य विभाग को यह मालूम रहता है कि कुपोषण का गंभीर खतरा सबसे अधिक बच्चों के गर्भ में आने से लेकर ३३ महीने तक रहता है। और कुपोषणग्रस्त इलाकों में कम से कम ६ वर्ष तक नजर रखना आवश्यक होता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि फुला हुआ पेट, थका हुआ चेहरा और बेहद पतले हांथ-पैर बच्चों में कुपोषण के आम लक्षण हैं।

आपको याद दिला दें कि दिसंबर २०१० में एक खबर आयी थी कि देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले मुंबई शहर में १४ बच्चे भुखमरी और कुपोषण के कारण काल के गाल में समा गए थे। इस भूखमरी और कुपोषण से प्रशासन और सरकार बेखबर थी जब मीडिया के द्वारा खबरें निकलकर आयी तो पता चला कि मुंबई के गोवंडी इलाके में पांच साल और उससे कम उम्र के १४ बच्चे भूख और कुपोषण के शिकार हो गए। पता चला था कि गोवंडी के झोपड़पट्टी में ६५% बच्चे कुपोषण के शिकार थे। इस मामले का खुला तब हुआ जब मुंबई की टाटा इंस्टीट्युट ऑफ़ सोशल साईंस से जुडी एक स्वयंसेवी संस्था नें जब गोवंडी झोपड़पट्टी का सर्वे किया। कुल ६०० परिवारों का सर्वे करनें पर उन्हें पता चला कि इन ६०० परिवारों के बीच कुल १४ बच्चे कुपोषण के वजह से मौत के शिकार हुए और गोवंडी की झोपड़पट्टी में ६५ % कुपोषण के शिकार बच्चे कमजोरी के कारण नियुमोनिया, मेनेंजाईटीस, और डायरिया से जूझ रहे थे। अब अगर पिछले साल ही सही देश की आर्थिक राजधानी मुंबई का यह हाल था तो मुंबई से सटे ठाणे जिले के आदिवासी इलाके के १५८ बच्चों की भूख और कुपोषण से हुई मौत आश्चर्य तो नहीं किन्तु शासन और प्रशासन की लापरवाही पर गंभीर चिंता का सबब बनता है।

हमारे शासकों द्वारा बताया जा रहा है कि भारत तेजी से विश्व की एक बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित हो रहा है और इस विकास दर को ८.५ का बताया जा रहा है । देश के नीतिनिर्धारकों के लिए क्या यह शर्म की बात नहीं है कि इस तेजी से विकसित हो रहे देश में बच्चों की एक बड़ी आबादी कुपोषण के कारण तिल-तिल कर मरने को मजबूर है आंकड़े बताते हैं कि देश में प्रति वर्ष ६,००,००० बच्चों की मौत कुपोषण के कारण हो जाती है। वैश्विक संस्थाओं, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण और तमाम गैर सरकारी संगठनों के आंकड़ों पर नजर डालें तो देश में बाल कुपोषण की खतरनाक स्थिति का पता चलता है। देश में ४३% बच्चे कुपोषण के वजह से सामान्य से कम वजन के हैं। और ५ वर्ष से कम उम्र के करीब ७०,००,००० बच्चे गंभीर रूप से कुपोषण के शिकार हैं। वैश्विक भूख सूचकांक नें भी २०१० की अपनी रिपोर्ट में भारत में कुपोषण की स्थिति पर गंभीर चिंता जताई थी वैश्विक भूख सूचकांक की रिपोर्ट में शामिल १२२ विकासशील देशों की सूची में भारत ६४ वें स्थान पर था इस रिपोर्ट के अनुसार विश्व के सामान्य से कम वजन वाले बच्चों में से ४२ % बच्चे भारत में ही हैं।

सरकार और उसके नुमाइन्दों द्वारा आमतौर पर यह तर्क दिया जाता है कि कुपोषण की समस्या का मूल कारण आबादी है पर अगर हम अपनी तुलना चीन से करेंगे तो हमारी सरकार और उसके नुमाइन्दों का तर्क हमें खोखला और बेमानी लगने लगता है क्योंकि चीन की जनसंख्या हमारे देश से कहीं अधिक है। फिर भी वहां कुपोषण के शिकार बच्चे हमारे देश से छह गुणा कम है। सरकार नें बच्चों में कुपोषण को दूर करने के लिए कई योजनायें और जागरूकता कार्यक्रम भी चलायें हैं। छह वर्ष तक के बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए समेकित बाल विकास योजना शुरू कई गई। केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अधीन खाद्य एवं पोषण बोर्ड लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाने के लिए हर साल १ से ७ सितंबर तक राष्ट्रीय पोषण सप्ताह आयोजित करता है। इस् वर्ष भी इस् सप्ताह के दौरान देश भर में कार्यशालाओं, शिविर, प्रदर्शनी आदि का आयोजन कर लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाया जा रहा है। लेकिन लगातार कुपोषण से हो रही मौतों के आकड़ें ऐसे प्रयासों, कार्यक्रमों और नीतियों पर सवाल खड़े कर रहे हैं।