मंगलवार, 14 सितंबर 2010

उसके घर का न्याय हो रहा... देखो तो

उसके घर का
न्याय हो रहा
देखो तो

प्रहसन का
पर्याय हो रहा
देखो तो

उसका घर,
जो कण-कण में है
उसका घर

उसका घर,
जो जल में भी है
थल में भी है

है उस
नील गगन में भी
उसका घर

उसका घर,
तुम क्या बनवाओगे
जो तुम्हे बनाया

गुरुवार, 12 अगस्त 2010

डूबते जहाज से मुंबई के पर्यावरण को गंभीर खतरा


मुंबई के समुद्री तट के पास जवाहरलाल नेहरु पोर्ट ट्रस्ट (जेएनपीटी) से करीब 5 (नॉटिकल) समुद्री मील की दूरी पर अरब सागर में 7 अगस्त शनिवार की सुबह 9.30 बजे पनामा के दो मालवाहक जहाज एमएससी चित्रा और एमवी खलिजिया की जोरदार टक्कर हुई इस हादसे में जहाज में सवार 33 क्रू मेंबरों को बचा लिया गया किन्तु इस टक्कर से एमएससी चित्रा के ईंधन टैंक में दरार आ जाने से जहाज (एमएससी चित्रा) डूब रहा है. और शनिवार से मुंबई के तटवर्तीय समुद्री क्षेत्र में तेल का रिसाव शुरू हो गया था बताया जा रहा है कि चित्रा के ईंधन टैंक से लगभग लगभग 500 से 800 टन तेल का रिसाव हो चूका है. चित्रा में कुल 2662 टन इंधन 283 टन डीजल और 88 टन लुब्रिकेटिंग तेल मौजूद था. भारी मात्रा में हुए तेल रिसाव से मुंबई के तटीय अरब सागर में 102 मील से अधिक के दायरे फ़ैल रहे तेल के कारण स्थानीय पर्यावरणीय परिस्थितिकी तंत्र और मैंग्रोव को बड़ा खतरा पैदा हो गया है. इस घटना से भारी मात्रा में मछलियों के मारे जाने की आशंका सहित समुद्री जीवन के भोजन के स्रोत स्थाई तौर पर नष्ट हो जायेंगे और भोजन नहीं मिलने से कई समुद्री प्रजातियाँ लुप्त हो जायेंगी.

राहत और बचाव के लिए कोस्टगार्ड के तरफ से "ऑपरेशन चित्रा" अभियान चलाया हुआ है जिसमें संकल्प, अमृत कौर, सुभद्रा कुमारी चौहान, कमला देवी, और सी-145 जहाजों को तैनात किया गया है तथा कोस्टगार्ड डोर्नियर हेलीकाप्टरों से प्रदूषण निरोधक अभियान चलाया जा रहा है. राहत और बचाव कार्यों में ओएनजीसी और जेएनपीटी की मदद ली जा रही है. मुंबई के येलोगेट पुलिस थाने में दोनों मालवाहक जहाजों के कैप्टन और चालक दल के सदस्यों के खिलाफ आईपीसी की धारा 280 (लापरवाही से जहाज चलाने), धारा 336 (दूसरों की जान जोखिम में डालने) और धारा 427 (शरारत के जरिए क्षति पहुंचाने) तथा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है. इतना ही नहीं इनके विरुद्ध पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की धारा 7-8 और 9 के तहत मुकद्दमा दर्ज किया गया है.

एमएससी चित्रा पर 1219 कंटेनर लदे हुए थे. इसमें से 31 कंटेनर में घातक रसायन थे. पिछले तीन दिनों में करीब 400 कंटेनर समुद्र में डूब गए हैं. हालांकि जहरीले रसायन वाले कितने कंटेनर डूबे हैं इसका अभी खुलासा नहीं हुआ है. लेकिन ये कंटेनर सबसे नीचे रखे थे इसलिए इनके पानी में डूबने की आशंका कम है. दुर्घटना के बाद पूरे इलाके में मैंग्रोव को भारी खतरा है साथ ही मानसून का यह वही समय है जब मछलियाँ ब्रीडिंग के लिए किनारे पर मैंग्रोव वनों तक आती है. ज्ञात हो कि भारत में मैंग्रोव कुल 3,60,000.हेक्टेयर में फैला हुआ है जोकि विश्व के कुल ज्वारीय वन का 3 % है मुंबई शहर, मुंबई उपनगर, ठाणे, रायगड़ और रत्नागिरी स्थित तटीय इलाकों में मैंग्रोव बहुतायत में पाया जाता है इसी मैंग्रोव या ज्वारीय वन से जैवविविधता और तटीय परिस्थितिकी तंत्र सुरक्षित रहता है.


एमएससी चित्रा के डूबने से समुद्रीय जल में घुलने वाले तेल, रसायन, कीटनाशक तटीय मैंग्रोव वनों और उसमें रहने वाले जीवों के लिए बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है. तटीय जीवों के संबंध में कहा जाता है कि प्राय: जीव ज्वारीय विस्तार एवं ज्वारीय आयाम से संबंधित होते है. मैंग्रोव वनों में पाए जाने वाले वन्य जीवन अद्भुत विविधता लिए होता है. मैंग्रोव वनों में पाए जाने वाले जीवों में मुख्यत: अकशेरुकी जीव तथा कीट आते है. पोरीफेरा, स्नाईडेरिया, आर्थोपोडा वर्गों के जीव जड़ों के आस-पास पाए जाते है. मैंग्रोव क्षेत्रों अति महत्वपूर्ण जीवों की सैकड़ों-सैकड़ों प्रजातियाँ पायी जाती है जैसे केकड़ो की लगभग 275 प्रजातियाँ. समुद्री मछलियों की अनेक प्रजातियाँ केवल मैंग्रोव क्षेत्रों तक ही सीमित और निर्भर रहती हैं.मैंग्रोव क्षेत्रों में छोटी मछलियों के जीवन के लिए अति आवश्यक भोजन तथा आश्रय प्राप्त होते है. मूंगे की चट्टानों (कोरल रीफ) में पाए जाने वाले तमाम जीवों के जीवन चक्र में मैंग्रोव क्षेत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. तटीय क्षेत्रों पर पायी जाने वाली मछलियों की संख्या पर मैंग्रोव वनों का प्रभाव अत्यंत महत्वपूर्ण है.

मैंग्रोव की जड़े मछलियों के लार्वा तथा छोटे बच्चों के लिए सुरक्षित आश्रय प्रदान करती हैं. मछलियों एवं अन्य अति महत्वपूर्ण समुद्री जीवों की कई ऐसी प्रजातियाँ हैं जिनका वयस्क जीवन तो सामान्यत: गहरे समुद्र तथा अन्य स्थानों पर गुजरता है किन्तु उनके बच्चे मैंग्रोव वनों में ही बड़े होते हैं. मैंग्रोव क्षेत्रों की स्वस्थ बहुतायत का मछलियों की संख्या से सीधा अनुपात देखने को मिलता है. मैंग्रोव क्षेत्रों में पायी जाने वाली मछलियों का इस वातावरण के तापमान तथा भौतिक और रासायनिक परिवर्तनों के साथ अनुकूलन अति आवश्यक है. कुछ अति महत्वपूर्ण समुद्रीय प्रजातियों ने स्वयं को मैंग्रोव वनों के वातावरण के इतना अनुकूल बना लिया है कि मैंग्रोव वनों के बिना उन प्रजातियों की कल्पना ही नहीं की जा सकती विस्तृत क्षेत्र में पायी जाने वाली द्विलिंगी किलीफिश ( रिवुलस मारमोरेटस) इसका अच्छा उदाहरण है. डूबते एमएससी चित्रा से हुए तेल और जहरीले रसायनों के रिसाव से मुंबई और आस-पास के मैंग्रोव वनों के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा पैदा हो गया है. यह खतरा जितना बड़ा मैंग्रोव वनों के लिए है उतना ही बड़ा उन सभी प्रजातियों के लिए है जो मुंबई और आस-पास के मैंग्रोव वनों के पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं.और जितना बड़ा खतरा मैंग्रोव वनों के पारिस्थितिकी तंत्र और जैवविविधता को है, मानवीय जीवन के लिए उतना ही बड़ा खतरा है.

जब हम मैंग्रोव के उपयोगिता को समझेंगे तब हमें पता चलेगा कि मुंबई और उसके आस-पास डूबते हुए जहाज से रिसने वाला तेल और जहरीला रसायन कितना विनाशक है. वस्तुत: मैंग्रोव वन विभिन्न प्रकार के समुद्री जीवों और वनस्पतियों के लिए अद्वितीय पारिस्थितिक पर्यावरण उपलब्ध कराते हैं. बहुत से जीव मैंग्रोव का विविध प्रकार से उपयोग करते हैं. मैंग्रोव के पौधों के पत्तों की टहनियां टूटी शाखाएं, बीज तथा फल विभिन्न प्रकार के जीवों के लिए भोजन उपलब्ध कराते हैं. ये क्षेत्र मूंगे की चट्टानों में तथा उसके आस-पास रहने वाले जीवों के छोटे बच्चों के लिए आदर्श शरणस्थल उपलब्ध कराते हैं. मैंग्रोव पौधों की आपस में गुथी हुई जलमग्न जड़ें अनेक प्रकार की मछलियों झींगे, पपड़ी वाले जीवों तथा कछुओं के लिए परभक्षियों से सुरक्षित आश्रय तथा प्रजनन ( ब्रीडिंग) स्थल का कार्य करती हैं. मैंग्रोव वन ज्वारीय दलदली क्षेत्रों के पोषक तत्त्व जैसे नाइट्रोजन फास्फोरस भारी धातुओं तथा सूक्ष्म तत्वों जो स्थलीय क्षेत्रों से नदियों द्वारा बहाकर लाये जाते है, के भण्डारण स्थल के रूप में कार्य करते है. सड़ती-गलती वनस्पतियों तथा अन्य जीव-जंतुओं से निकलने वाले तत्वों जैसे कार्बन, फास्फोरस तथा अन्य तत्वों के पुन: चक्रों में मैंग्रोव वनों का अद्वितीय योगदान होता है ये ज्वार भाटे के समय तटीय मिट्टी के कटाव को रोकते हैं ज्वार भाटे द्वारा मैंग्रोव वनों से पोषक तत्व समुद्र में ले जाये जाते है जहाँ समुद्री प्राणियों द्वारा इनका उपयोग होता है.

मैंग्रोव के वृक्षों से गिरने वाले पत्तियों, शाखाओं आदि का जीवाणुओं द्वारा अपघटन होता है इन प्रक्रिया में पोषक तत्व निकलते हैं जो आस-पास के पानी को उपजाऊ बनाते हैं अपघटित कार्बनिक पदार्थ तथा जीवाणु जैवद्रव्यमान ( बायोमास) को संयुक्त रूप से अपरद परिवर्तित करते हैं यह मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र में पैदा होने वाला यह एक मुख्य उत्पाद है. इसमें प्रोटीन का स्तर अधिक होता है और यहाँ जीव-जंतुओं के एक बड़ी संख्या के लिए भोजन प्रदान करता है जो पानी में से इस अपरद को छान कर अलग कर लेते हैं इस अपरद को खाने वाली छोटी मछलियों का शिकार बड़ी मछलियों द्वारा किया जाता है. मैंग्रोव वनों द्वारा उत्पन्न पोषक तत्व अन्य कोमल पारिस्थितिक तंत्रों जैसे प्रवाल भित्तियों, समुद्री शैवालों तथा समुद्री घास आदि को पोषण उपलब्ध कराते हैं. वर्षाऋतु के दौरान अधिक शुद्ध जल और अधिक करकट पात के परिणाम स्वरूप पोषक तत्वों की आपूर्ती बढ़ जाती है करकट पात के अपघटन से अपरद बनता है. अपरद पर सूक्ष्म जीवों की क्रिया से छोटे झींगों और मछलियों के पोषक तत्व बढ़ जाते हैं मैंग्रोव के पेड से गिरने वाली पत्तियों में जीवाणुओं के गतिविधियों के कारण अनेक जीवन के लिए भोजन की तथा प्राकृतिक आवास की व्यवस्था होती है. मैंग्रोव के इन प्राकृतिक आवासों में संसार की सबसे महत्वपूर्ण सामुद्रिक जैविक नर्सरी विद्यमान है. मुंबई और आस-पास के तटीय क्षेत्र भी मैंग्रोव के इसी स्वस्थ पारिस्थितिकी के हिस्सा हैं जो इस समय इस औद्योगिक हादसे यानि समुद्री मालवाहक जहाज एमएससी चित्रा से रिसने वाले तेल और जहाज से समुद्र में गिरे कंटेनरों जिसमें खतरनाक कीटनाशक रसायन से होने वाले रिसाव से गंभीर खतरे में पड़ गए हैं. समुद्र की सतह पर फैले इस जहरीले तेल और रसायन की अगर तत्काल और युद्ध स्तर पर सफाई नहीं की गई तो इस हादसे के कारण मुंबई का तटीय समुद्री इको सिस्टम भयानक पर्यावरणीय विनाश का गवाह बनेगा.

मुंबई के निकट दो समुद्री मालवाहक जहाजों की टक्कर मामूली घटना नहीं है. इस हादसे से यह तो बखूबी समझ में आता है कि मुंबई के तटीय समुद्र में सामान्य यातायात के नियमों के पालन की अनदेखी हो रही है. सवाल हार्बर ट्रैफिक मैनेजमेंट का है. क्यों हार्बर ट्रैफिक मैनेजमेंट इतना कमजोर है कि दो मालवाहक जहाज आपस में टकरा जा रहे हैं और सवाल सुरक्षा का भी, ऐसा तब हो रहा है जब भारतीय गुप्तचर एजेंसियों ने मुंबई पर समुद्री रास्तों से आतंकी हमले की आशंका जाहिर की हो और महाराष्ट्र सरकार अपनी तैयारियों को पूरा करने का दम भरती हो. आखिर इसे किस परिपेक्ष्य में देखा जाय. इससे भी बड़ा सवाल यह है कि इस तरह के दुर्घटनाओं से निपटने के लिए जरूरी संसाधनों और प्रभावी टेक्नोलाजी के मद्देनजर हम कहाँ खड़े हैं ? इस औद्योगिक दुर्घटना के कारण मुंबई के तटीय समुद्री पर्यावरण के इस गंभीर संकट की घड़ी में विदेशी तकनीक और मदद का मोहताज होना पड़ रहा है. दुर्घटनाग्रस्त जहाज से हो रहे तेल रिसाव पर काबू पाने के लिए विदेशी विशेषज्ञों को बुलाया गया जिसमें नीदरलैंड की कंपनी एलएमआईटी साल्वेज और सिंगापूर की एक कंपनी के विशेषज्ञों के दल का समावेश है. इस हादसे के राहत और बचाव कार्यों के लिए विदेशी विशेषज्ञों को बुलाने की मजबूरी हमारे देश के आपदा प्रबंधन की पोल खोलती है.
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राजेश सिंह
लेखक- नागरिक विकल्प के संपादक हैं
मो-919833004571
rajesh.aihrco@gmail.com

तेल के नाम पर खतरनाक खेल


हम सभी को समझना होगा कि भारत में एक लीटर पेट्रोल की कींमत 53 रूपये है ऐसा क्यों? और सरकार लगातार पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बढ़ोत्तरी करती जा रही है. आखिर तेल के नाम पर अपने देश के हुक्मरान कौन सा खतरनाक खेल खेल रहे हैं?

5 जुलाई को विपक्षी दलों नें भारत बंद का आयोजन किया, मुख्य मुद्दा था सरकार द्वारा पेट्रोलियम पदार्थों के बेतहासा दाम बढ़ाया जाना. विपक्षी दलों नें इस भारत बंद को बेहद सफल बताया तो कार्पोरेट संस्था एसोचेम नें इस बंद के कारण 10 000 करोड़ रूपये के अनुमानित नुकसान होने की बात कही, वही पेट्रोलियम मंत्रालय जो कि मूल्य वृद्धी के पहले सार्वजनिक पेट्रोलयम कंपनियों के घाटे का रोना रोती है, उन्होंने करोड़ों रूपये का मीडिया को विज्ञापन देकर आम जनता को यह बताने की कोशिश की कि पेट्रोलियम पदार्थों के कीमतों का बढ़ाया जाना गलत नहीं है. इन सबके मद्देनजर आम जनता अवाक् होकर यह ड्रामा देखती रही. उसे पता है कि अब महंगाई कम होने वाली नहीं है. आश्चर्य तो यह है कि देश का प्रबुद्ध वर्ग इस पेट्रोलियम मूल्य वृद्धी घोटाले पर अवाक् है या नहीं यह तो नहीं पता लेकिन चुप जरूर है. संभव है कि आगे चलकर पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृद्धि " पेट्रोलियम पदार्थ मूल्य वृद्धी घोटाला" के नाम से जाना जाये यह मूल्य वृद्धी हमें "पन्ना-मुक्ता-तेलक्षेत्र'' घोटाले की याद दिला रहा है जिसमें सरकार नें लगभग पूरा का पूरा तेल क्षेत्र मुफ्त में निजी कंपनियों को दे दिया. पन्ना-मुक्ता-तेलक्षेत्र का पता लगाने हेतु सारी मेहनत ओएनजीसी नें की थी किन्तु सरकार नें अपनी ही कंपनी को निकम्मा साबित करते हुए रिलायंस को काबिल बताया.

पिछले दिनों रिलायंस नें पूरे देश में 1432 और एस्सार नें 1100 पेट्रोल पम्प खोले थे किन्तु भारत सरकार की तरफ से लगातार पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में इजाफे के कारण उक्त निजी कंपनियां सार्वजनिक क्षेत्र की तीनों कंपनी इंडियन ऑयल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम लिमिटेड और भारत पेट्रोलियम लिमिटेड को सरकार के तरफ से सरकारी अनुदान मिल रहा था. वर्ष 2007-08 में इसी वजह से रिलायंस को 800 करोड़ रूपये का घाटा उठाना पड़ा. और रिलायंस को पेट्रोल पम्प बंद करने का निर्णय लेना पड़ा किन्तु रिलायंस पेट्रोल पम्प का डीलरशीप लेने वाले व्यापारी लगातार रिलायंस पेट्रोलियम के प्रबंधन पर "रिलायंस पेट्रोल पम्प डीलर्स एसोसियेशन" के बैनर तले दबाव डालते रहे कि या तो कंपनी फिर से पेट्रोल पम्पों को शुरू करने का तरीका ढूढे अथवा पेट्रोल पम्प डीलर द्वारा रिलायंस के पेट्रोल पम्पों में किये गए निवेश को वापस करे. इधर डीलर मालिकों और संचालकों (डीओडीओ) नें मिलकर एक प्रस्ताव पारित किया था कि भूमि के पट्टे को रद्द कर पेट्रोल पम्पों में लगे उपकरणों को बाजार के कीमत पर कंपनी खरीदे अथवा पेट्रोल पम्प फिर से शुरू कराए. सूत्रों के अनुसार रिलायंस समूह के अध्यक्ष परिमल नाथवानी नें "रिलायंस पेट्रोल पम्प डीलर्स एसोसियेशन" से इस समस्या के समाधान के लिए कुछ समय ( 6 माह ) माँगा था. अगर रिलायंस के पेट्रोल पम्प को सुरू करने जैसे समाधान पर विचार करें तो वह केवल और केवल सरकार द्वारा पेट्रोलियम पदार्थों पर से सब्सिडी हटवाने के शिवाय और कुछ था ही नहीं. रिलायंस नें एक वर्ष में करीब 40 लाख टन डीजल बेंचकर बाजार के 15 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा बना लिया था किन्तु कंपनी को कच्चे तेल के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उछाल के बीच सरकार नियंत्रित मूल्य पर डीजल, पेट्रोल बेंचना घाटे का सौदा हो गया था. अत: रिलायंस के पेट्रोल पम्प फिर से शुरू करने हेतु पेट्रोलियम पदार्थों से सब्सिडी हटाकर बाजार के नियंत्रण पर छोडना जरूरी था.

यह हम सभी को समझना होगा कि भारत में एक लीटर पेट्रोल की कींमत 53 रूपये है ऐसा क्यों? भारत में एक लीटर पेट्रोल की लगत 16।50 रूपये पड़ती है. एक लीटर पेट्रोल पर 11.80 रूपये केन्द्रीय कर, 9.75 रूपये एक्साईज ड्यूटी, 8 रूपये से लेकर 12 रूपये प्रति लीटर राज्य सरकारों का कर और 4 रूपये सेस वसूला जाता है. इन आंकड़ों को देखते हुए सरकार की दलील पर कैसे यकीन किया जा सकता है कि सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों को घाटा हो रहा है. रिकार्ड बताते है कि वर्ष 2008-09 में इन्डियन आयल कार्पोरेशन को 2950 करोड़ रूपये का शुद्ध मुनाफा हुआ, 31 मार्च 2010 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में आईओसी को शुद्ध मुनाफा 10998 करोड़ रूपये हुआ, एचपीसी और बीपीसी नें क्रमश: 544 और 834 करोड़ रूपये का शुद्ध मुनाफा कमाया वर्ष 2009-10 में पेट्रोलियम सेक्टर द्वारा कर,ड्यूटी,लाभांस इत्यादि के रूप में सरकारी खजाने में 90 000 करोड़ रूपये जमा हुए और वर्ष 2010-11 में सरकार को पेट्रोलियम सेक्टर से 1 20 000 करोड़ रूपये से ज्यादा आय होने का अनुमान है.

सरकार कहती है कि पेट्रोलियम पर जितना खर्च हो रहा है उतने की वसूली नहीं हो पा रही है सरकार यह भी कह रही है कि पेट्रोल,डीजल, रसोई गैस और मिट्टी के तेल को बड़ी मात्रा में सब्सिडाईज करना पड़ रहा है केन्द्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार सरकारी राशन की दुकानों से वितरित किये जाने वाले मिट्टी के तेल पर 2006-07, 2007-08 और 2008-09 में क्रमश: 970, 978 और 974 करोड़ रूपये की सब्सिडी दी गई बदले में इन्ही वर्षों में केन्द्र सरकार नें क्रमश: 17883, 19102 और 28225 करोड़ रूपये सरकारी राशन की दुकानों के जरिये वसूले. इसी तरह रसोई गैस पर केंद्र सरकार नें 2006-07, 2007-08 और 2008-09 में क्रमश: 1554, 1663 और 1714 करोड़ रूपये की सब्सिडी दी बदले में इन्ही वर्षों में केन्द्र सरकार नें क्रमश: 10701, 15523 और 17600 करोड़ रूपये वसूल किये यानि मिट्टी के तेल और रसोई गैस से कुल मिलाकर 2006-07, 2007-08 और 2008-09 में क्रमश: 2524, 2614 और 2688 करोड़ रूपये दिए और इन्ही वर्षों 2006-07, 2007-08 और 2008-09 में मूल्य वृद्धि करके क्रमश: 28584, 34625 और 45825 करोड़ रूपये वसूले. इसी तरह डीजल में 2006-07, 2007-08 और 2008-09 में क्रमश: 18776, 35166 और 52286 करोड़ रूपये और पेट्रोल में 2006-07, 2007-08 और 2008-09 में क्रमश: 2027, 7332 और 5181 करोड़ रूपये वसूले.

पेटोलियम पदार्थों को बाजार के नियंत्रण पर छोडऩे वाली यूपीए सरकार का विरोध करने का स्वांग रचने और भारत बंद में अग्रणी भूमिका निभाने का दावा करने वाली प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा अपने कार्यकाल में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को यूपीए सरकार की ही तरह बेतहासा बढ़ाया था। वर्ष 1998 में जब एनडीए के माध्यम से भाजपा सत्ता की बागडोर संभाली तो पेट्रोल 23 रूपये लीटर डीजल 10.25, रूपये रसोई गैस 136 रूपये और मिट्टी का तेल 2.50 रूपये था किन्तु वर्ष 2004 में पेट्रोल 34 रूपये, डीजल 21.74 रूपये, रसोई गैस 242 रूपये और मिट्टी का तेल 9 रूपये हो गया यानि पेट्रोल 50 फीसदी, डीजल 111 फीसदी, रसोई गैस 90 फीसदी और मिट्टी के तेल में 300 फीसदी बढोत्तरी की इस लिहाज से कांग्रेस 2004 में जब सत्ता संभाली तो पेट्रोल की कींमत 34 रूपये प्रति लीटर थी वह अब 53 रूपये, डीजल 21.74 रूपये थी अब 41 रूपये रसोई गैस 242 रूपये थे अब 345 रूपये, मिट्टी के तेल की कींमत 9 रूपये से अब 12 रूपये अर्थात पेट्रोल 50 फीसदी, डीजल 90 फीसदी, रसोई गैस 45 फीसदी और मिट्टी के तेल में 33 फीसदी की बढ़ोत्तरी की है.


यह लगभग सभी को पता है कि क्यों और किसके लिए इस तेल के खेल को खेला जा रहा है. यह मूल्यवृद्धि कांग्रेस की लोकप्रियता के कींमत पर की जा रही है इस मूल्य वृद्धि से मनमोहन का कुछ नहीं बिगड़ेगा क्योकि यह उनकी आखिरी पारी है किन्तु कांग्रेस और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को यह आत्ममंथन करने का समय है कि कांग्रेस की उर्बरा शक्ति कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और देश के आम नागरिकों के लिए है कांग्रेस की उर्बरा शक्ति मनमोहन और उनकी चौकड़ी के माध्यम से पूंजीपतियों के लिए देश के संसाधनों के अबाध लूट का रास्ता बनाने के लिए है. जब मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बनाये गए थे तो देश की आम जनता को यह बताया गया था कि हमें अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मिला है राष्ट्र आर्थिक संवृद्धि के नए-नए कीर्तिमान स्थापित करेगा. राष्ट्र का तो पता नहीं हाँ सरकार नें ताबडतोब महंगाई बढ़ाकर जरूर आम आदमी को बुरी तरह चूसने का कीर्तिमान स्थापित किया. राष्ट्र को आर्थिक संवृद्धि मिली या नहीं मिली किन्तु पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों की आर्थिक संवृद्धि में चार चाँद जरूर लग गए देश का एक चौथाई संसाधन 100 पूंजीपति के कब्जे में चला गया, इधर देश के 22 करोड़ लोग भूखे पेट सोने को अभिसप्त है 5 करोड बच्चों को पर्याप्त पोषक पदार्थ नहीं मिल रहा है अब तेल की कीमतें बढ़ी है तो जाहिर है कि (ट्रांसपोटेशन) खाद्यान ढुलाई भाड़ा बढ़ेगा तो खाद्यान की कीमतें अपने आप बढ़ेंगी 22 करोड भूखे पेट सोने वालों का आकड़ा बढकर 32 करोड़ हो जायेगा 5 करोड़ कुपोषित बच्चों का आकड़ा 10 करोड़ के आकडे को छू लेगा इस बीच मनमोहन जब भी बोलेंगे तो ओबामा समेत सभी अंतर्राष्ट्रीय नेता सुनेंगे जिन्हें मनमोहन की जनविरोधी नीतियों का फायदा पहुँच रहा है अगर कोई नहीं सुन पायेगा तो वो भारत का आम आदमी क्योंकि कुपोषण से उसके कान के पर्दे सूख चुके होंगे।
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यह लेख विस्फोट.कॉम पर १२ जुलाई को प्रकाशित हो चुका है

रविवार, 1 अगस्त 2010

चिट्ठाजगत को बचाओ !

सावधान ! चिट्ठा जगत पर आज-कल अश्लील सामग्री प्रकाशित हो रही है शर्म, शर्म, शर्म,....... ! कृपया चिट्ठा जगत को बचाओ

गुरुवार, 8 जुलाई 2010

पान बनाम लोहे के खान की जंग

दक्षिण कोरियाई और विश्व की अग्रणी स्टील निर्माता बहुराष्ट्रीय कंपनी पोस्को के उडीसा स्थित जगतसिंहपुर जिले के प्रस्तावित स्टील फैक्ट्री परियोजना का पारादीप के समीप के गांओं में पान की खेती करने वाले किसानों नें भारी विरोध करना शुरू कर दिया है. ज्ञात हो कि स्थानीय किसान पान की खेती कर मालदीव, पाकिस्तान, सउदी अरब, श्री लंका और बांग्लादेश जैसे देशों को निर्यात कर अपना जीवन यापन करते है. इलाके में पान की खेती के कारोबार के वजह से लगभग 6000 लोगों को रोजगार मिला हुआ है किसानों का कहना है कि उन्हें एक पान के पत्ते से एक रूपये की आय होती है किसान बताते है कि एक एकड़ जमीन पान के पत्ते के उपज से वार्षिक 1,00,000,00-/ रूपये की आय होती है. धिनिकिया ग्राम पंचायत के सरपंच सिसिर महापात्रा और अन्य पान की खेती करने वाले किसान कहते है- हम अपने उपजाऊ जमीन का एक इंच हिस्से का अधिग्रहण नहीं होने देंगे, हमारी कृषि अर्थव्यवस्था फल-फूल रही है और सतत है .' महापात्रा पोस्को प्रतिरोध संग्राम समिती के सदस्य भी है.

पोस्को परियोजना का विरोध कर रही महिला कार्यकर्ता मनोरमा खटुआ का कहना है कि धिनकिया के पान के पत्तों की अपनी अहमियत है मुंबई और कानपूर के लोगों में भी इसकी अच्छी खासी मांग है. प्रस्तावित परियोजना को दुसरी जगह ले जाये जाने की मांग करते हुए पोस्को प्रतिरोध संग्राम समिती नें उडीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को दिए ज्ञापन में कहा है कि "पान की खेती के कारण पूर्व में बलीपाल से इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज को बालेश्वर जिले के चांदीपुर ले जाया गया " इतना ही नहीं इस क्षेत्र के किसानों नें 1993...94 में आईओसीएल की प्रस्तावित रीफाइनरी को पारादीप स्थानांतरित करने को मजबूर कर दिया था.

आज से 5 वर्ष पहले उपरोक्त कंपनी पोस्को ने उडीसा सरकार के साथ 22 जून 2005 को उडीसा के जगतसिंहपुर जिले में स्टील फैक्ट्री लगाने के सहमति पत्र पर दस्तखत किया था. दक्षिण कोरिया की उक्त स्टील निर्माता कंपनी जगतसिंहपुर के अपने प्रस्तावित परियोजना में 51,000/- करोड़ के निवेश का लक्ष्य रखा था कंपनी को १.२ करोड़ टन स्टील सालाना उत्पादन के लिए ४००० एकड़ जमीन की जरूरत थी. उक्त सहमति पत्र ( एम्ओयू) की मियाद 5 वर्ष की थी जो कि 22 जून 2010 को ख़त्म हो गयी विभिन्न शर्तों वाली उक्त एम्ओयू में पांचवी शर्त या भी थी कि इस एम्ओयू की मियाद बढाई जा सकती है लेकिन इसके लिए पोस्को को इन ५ वर्षों में ढ़ांचा खड़ा करने के आलावा प्लांट स्थापना, मशीनों की फिक्सिंग, के अलावां पूजी विनियोग आवश्यक होगा अगर ऐसा नहीं किया गया तो एम्ओयू की मियाद कत्तई नहीं बढाई जायेगी.

शर्त के मुताबिक पोस्को नें प्लांट स्थापना, मशीनों की फिक्सिंग, और पूजी विनियोग तो दूर की बात है, एक इंच जमीन भी अपने नाम हस्तांतरित नहीं करवा सकी है. ऐसे में एम्ओयू रद्द हो जाना चाहिए. एमओयू की आठवीं शर्त यह थी कि नियत समय पर प्रकल्प का कार्य शुरू न होने की स्थिति में कंपनी को लोहा पत्थर खदान की लीज, कोयला की लीज व अन्य जो भी प्रोत्साहन सरकार देगी वो खुद-ब-खुद खत्म मानी जाएगी. इस स्थिती में पोस्को के पास सिवाय पुरानी हो चुकी एम्ओयू के अलावा कुछ भी नहीं बचा होना चाहिए। एमओयू की शर्त के अनुसार सरकार द्वारा दी गई तमाम सहूलियतें अपने आप एक्सपायर हो गई हैं.

पोस्को द्वारा जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे, पोस्को प्रतिरोध संग्राम समिती सहित अन्य जनसंगठनों का कहना है कि बहुराष्ट्रीय कंपनी के लिए जमीन अधिग्रहण करने पर आमादा नवीन पटनायक सरकार जनता के हितों के साथ समझौता कर रही है, परियोजना का विरोध करने वाले आदिवासियों के विरूद्ध बढ़ रही पुलिस की नृशंसता पर पटनायक सरकार की मौन सहमती है. विस्थापन विरोधी कार्यकर्ताओं का कहना है कि परियोजना के लिए किसानों से 4000 एकड़ कृषि योग्य जमीन छिन जाने से जिले की तीन पंचायतों नवगांव, धिनकिया, गडकुजंगा और एरसामां ब्लाक के 30,000 लोग विस्थापित होंगे. स्थानीय किसान किसी भी कीमत पर अपनी उपजाऊ जमीनों को अधिग्रहण न करने देने पर अड़े हुए है. उनका कहना है कि इस परियोजना के लिए हमारी उपजाऊ जमीन को अधिग्रहित करने को प्रतिबद्ध सरकार यह बखूबी जानती है कि यहाँ की आबादी की रोजी-रोटी खेती पर ही निर्भर है.

विस्थापन विरोधी कार्यकर्ताओं का कहना है कि पटनायक सरकार किसानों की जमीन को जबरन हड़प कर पोस्तो के हवाले करना चाहती है. सरकार अपने इस घिनौने खेल में स्थानीय अदालतों को भी शामिल कर लिया है परियोजना का विरोध करने वाले आन्दोलनकारियों का नेतृत्व करने वाले कार्यकर्ताओं के विरुद्ध झूठे आरोपों के तहत स्थानीय अदालतों द्वारा धडाधड वारंट जारी हो रहे है उन अदालती वारंटों के माध्यम से पुलिस द्वारा विस्थापन विरोधी कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न शुरू कर दिया गया है. उनके अनुसार परियोजना के नाम पर स्थानीय जनता से उनके रोजगार को छिन कर उनके जमीनों से उन्हें बेदखल करने के लिए भिन्न-भिन्न हथकंडों का प्रयोग किया जा रहा है यह गंभीर और चिंताजनक है. जनता के मतों से सत्ताशीन हुई सरकारें बहुराष्ट्रीय निगमों के साथ मिलकर जनता को ही लूटने और तबाह करने हेतु सरकारी संसाधनों का प्रयोग कर रही हैं. परियोजनाओं की आड़ में बहुराष्ट्रीय निगमों के साथ मिलकर इसी जन के शोषण का जो घिनौना खेल खेल रही है उसे देख कर बड़े-बड़े क्रूर माफिया भी शरमा जाय.

सरकार के सहयोग से जबरन जमीन हड़पने का सबसे विनाशकारी रास्ता कॉरपोरेट पूंजी अपना रही है. जबरन भूमि अधिग्रहण, कारपोरेट नेतृत्व, विकास का सबसे मारक हथियार बना हुआ है.ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता द्वारा निर्मित 1894 ई. का 'भूमि अधिग्रहण अधिनियम' को आजाद भारत के कर्ताधर्ताओं ने 1952, 1963 ओर 1984 में संशोधित कर और कठोर किया 2006 में इसमें पुनः संशोधन किया गया और साथ में पहली बार पुनर्वास और पुर्नस्थापन नीति भी बनी. किन्तु इस नीति को जमीन में उतारने को राज्य सरकारें इच्छुक नहीं दिखती. दूसरी ओर वही राजसत्ता 'जनहित' में कारॅपोरेट पूंजी के लिए उडीसा, छत्तीसगढ, झारखंड, मध्यप्रदेश, बंगाल में भूमि छीनने को आतुर है. मुआवजे की दर बिना किसानों, जमीन मालिको सें बात किये एकतरफा तय की जाती है. जबरन अधिग्रहण हेतु सशस्त्र पुलिस बल तक उतारा जा रहा है.

भारत में 1991 के वाद कॉरपोरेट घराने और पूजीपति विकास के नाम पर 'विकास का आतंकवाद' फैला रहे है निजीकरण और उदारीकरण के नाम पर हमारी सरकार नें 1992 के बाद लगातार औद्योगिक नीतियों को कॉरपोरेट हित में कमजोर किया 1992, 1996, 2001 और 2004 के बाद पूंजी निवेश को बढावा देने के लिए भूमि, राजस्व, खनन, श्रम आदि कानूनों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अनुकूल और जन-विरोधी बनाया गया। केन्द्र और राज्य सरकारों ने पूँजी निवेश बढाने के लिए कई तरह कर (टैक्स) रियायतों की घोषणा की, जैसे, भूमि के लिए बीमा किश्त भरने से मुक्ति, 100 के.वी. तक मुफ्त बिजली, पानी टैक्स पर 30 से 40 प्रतिशत तक की छूट, केन्द्रीय शुल्क के भुगतान पर छूट, आयतित कच्चे माल पर शुल्क की छूट, व्यापारिक करों में 50 प्रतिशत तक की छूट. इस प्रकार भारत सरकार और अन्य राज्य सरकारों नें इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भरपूर मुनाफा कूटने का मौका दिया हुआ है.

आखिर ये जनकल्याण की बात करते नहीं थकने वाले, जनता द्वारा चुने हुए जनसेवक सत्ता पर काबिज होते ही बहुराष्ट्रीय निगमों के साथ मिलकर उनके दलाल की तरह व्यवहार करते हुए जन के शोषण का खेल क्यों शुरू कर देतें है ? क्या इनका शोषण ही देश की जनता की नियती बन चुकी है ? क्या पोस्को की दलाली के सामने उन 30,000 लोगों का कोई मायने नहीं है जो इस परियोजना के बाद विस्थापन के शिकार होंगे ? आखिर क्यों उडीसा की पटनायक सरकार अपनी ही रियाया के विरुद्ध खलनायक भूमिका में उतर आयी है ? आखिर इन सवालों का जवाब किसके पास है ? इसका जवाब उन लाखों लाख आन्दोलनकारियों को कौन देगा जो पोस्को और अन्य बहुराष्ट्रीय निगमों के खूनी अपराध के शिकार है संवैधानिक रूप से जनता के प्रति उत्तरदायी सरकार, इन प्रश्नों का जवाब देनें से रही, क्योंकि जनता के हित में सरकारों का संचालन करने वाले ए लोग बहुराष्ट्रीय निगमों के गोद में जा बैठे हैं.

शुक्रवार, 25 जून 2010

आप मर गये हो ? माफ़ करना मुझे नहीं पता था !

आप जनता हों ? अच्छा ! इसीलिए आप इतना हल्ला मचा रहे है. इतना हल्ला मत मचाओं. क्या आपको पता नहीं कि सरकार यह सब आपके भले के लिए कर रही है आप कमोडिटी का व्यवसाय शुरू कीजिये, सट्टेबाजों के साथ मिलकर पेट्रोलियम पदार्थों के फ्यूचर ट्रेडिंग के बारे में सोचिये, मुनाफा कमाईये. अनायास महंगाई-महंगाई चिल्ला रहे हो. भाई बाजार का जमाना है बेचारी भोली-भाली हमारे देश की सरकार पेट्रोलियम को बाजार के हवाले कर दिया है. आपको नहीं पता क्या कि विश्व बैंक का दबाव है भाई राजकोषीय घाटा कम करने का. अगले 12 महीनों में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3 फीसदी पर आ जाएगा। क्या आपको नहीं पता कि भारत सरकार ने 3 जी व ब्रॉडबैंड की नीलामी से 1.10 लाख करोड़ जुटा लिए। और 40,000 करोड़ रुपए सरकारी कंपनियों के विनिवेश से आ जायेंगे उर्वरक और तेल मूल्यों पर नियंत्रण हटने से सरकार के ऊपर से सब्सिडी का भारी बोझ हट जाएगा। 2010 तक जीडीपी को 12 % तक ले जाना है. आपकी वजह से स्विश बैंक के खाते नें जंग थोड़ी लगानी है..... कुछ न कुछ तो डालना ही पड़ेगा. सरकार सत्ता और उसके बैभव को छोड़कर सभी चीजों से अपना नियंत्रण हटा रही है तो तेल से भी हटा रही है तो आपके ऊपर कौन सा पहाड़ गिर गया.......
आप डरो मत आप सरकार के सम्मानित उपभोक्ता है सरकार आपकी चीरचुप्पी की कायल है इसीलिए सरकार नें आपके ऊपर दरियादिली दिखाते हुए आपको नागरिक से उपभोक्ता बना दिया है आप ऐसा कभी मत सोचना कि सरकार आपके बारे में चिंतित नहीं है देखते नहीं सरकार आपको बीपीएल के रूप में देखने का सपना देख रही है.आपको पता नहीं क्या अगर सरकार ऐसा नहीं करेगी तो सरकार पिछड़ जायेगी उसकी बदनामी होगी. एनडीए से पीछे क्यों रहे एनडीए ने 1998 से 2004 के बीच पेट्रोल के दाम में पचास फीसदी से भी ज्यादा, डीजल के दाम में करीब 111 फीसदी, रसोई गैस में करीब नब्बे फीसदी और केरोसिन तेल के दाम में तीन सौ फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी की।जब 1998 में एनडीए ने सत्ता की बागडोर संभाली पेट्रोल करीब 23 रुपये लीटर था जो 2004 में 34 रुपये लीटर तक पहुंचा। डीजल 10.25 रुपये से बढ़कर 21.74 रुपये तक पहुचा इसी तरह रसोई गैस के दाम 136 से उछल कर 242 रुपये तक पहुंचे। सबसे ज्यादा बढ़ोतरी केरोसिन के तेल में ढाई रुपये से सीधे नौ रुपये हुई जो तीन सौ फीसदी से भी ज्यादा है ................
आपने नहीं सुना था क्या अमेरिकियों का चिंतायुक्त बयान कि भारतीय अच्छा खाना खाने लगे है उसी को तो रोक रहे है मनमोहन जी........... इसमें गलत क्या है......... आप इतना अच्छा क्यों खाते हैं ? आप अगर अपने आप पर कंट्रोल नहीं करेंगे तो सरकार तो करेगी ही क्योंकि आपने ही इसका दायित्व सरकार को दिया है. आपका पेट भरा है, आप स्वस्थ है ऐसा अनैतिक क्यों कर रहे है आप ? आप भूंखे रहिये, आप बीमार हो जाईये इसी में आपकी नैतिकता है ।
आपको पता नहीं है कि अमेरिका में मंदी है आखिर आप ही बताओं बिना आपके लूटे सरकार अमेरिका के बैभव वापस लाने में कैसे अपना योगदान दे पायेगी. अगर अमेरिका का बैभव वापस नहीं आएगा तो आप अमेरिका में बसने का सपना कैसे देखेगे ? आखिर यह सब आपके भले के लिए ही हो रहा है न.........
आप तो जानते है न कि मनमोहन विश्वबैंक में नौकरी कर चुके है विश्व बैंक की नीति ही है कि गरीबों का निवाला छीन कर अमीरों की थाली में सजाना. आप गरीब क्यों है आप अमीर क्यों नहीं बनते ? इतना अच्छा मौका आपको दुबारा नहीं मिलेगा यह आपकी खुशकिस्मती आपको अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मिला है.............. देखते नहीं आप तेल के लिए अमेरिका कितनों को तबाह कर दिया शुक्र है आप बचे हुए हो. लेकिन आप तो चुप हो आप क्यों कुछ बोलते नहीं....... महंगाई नें आपका तेल निकाल दिया है... ओ हो........ आप भारत की जनता हो आप मर गये हो माफ़ करना मुझे नहीं पता था नहीं तो मै इतनी उल्टियाँ नहीं करता.

गुरुवार, 24 जून 2010

कब रुकेगी इज्जत के खातिर मौत (ऑनर किलिंग) का सिलसिला

इज्जत के खातिर मौत (ऑनर किलिंग) का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है । यह सब सम्मान के नाम पर हो रहा है । सम्मान के नाम पर प्रति वर्ष सैकड़ों युवक और युवतियों को मौत के घाट उतारा जा रहा है । देश में हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान ऐसे राज्य है जहां से लगातार ऑनर किलिंग की घटनाएँ सामने आ रही हैं । बीते रविवार को दो प्रेमी जोड़े को ऑनर किलिंग के भेट चढ़ा दिया गया यह घटना दिल्ली में कुलदीप और मोनिका के साथ तथा हरियाणा में रिंकू और मोनिका के साथ घटी । दिल्ली के अशोक विहार में कुलदीप और मोनिका की जघन्य हत्या कर दी गयी वहीं हरियाणा के भिवानी में रिंकू और मोनिका की हत्या कर फाँसी पर लटका दिया गया ।
इसी बीच महिलाओं और बच्चों के हितों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन [एनजीओ] शक्ति वाहिनी द्वारा दायर की गयी जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय नें काफी सख्त रूख अपनाते हुए केंद्र सरकार और ८ राज्य सरकारों को नोटिस भेजा है । उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश आर।एम. लोढ़ा और न्यायाधीश ए. के. पटनायक नें केंद्र तथा हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, झारखण्ड, बिहार, हिमांचल प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों को जवाब-तलब किया है । गैर सरकारी संगठन शक्ती वाहिनी नें उक्त जनहित याचिका के माध्यम से आरोप लगाया था कि केंद्र और राज्य सरकारें इस तरह के अपराधों के रोकथाम के लिए कोई कदम नहीं उठा रही हैं । और न ही ऐसे प्रेमी जोड़ों को सुरक्षा देने के लिए कोई पॉलिसी या मैकेनिज्म तैयार कर रही हैं ।

गैर सरकारी संगठन नें जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि राज्य सरकारें इस अपराध को चुप्पी साधे मूक दर्शक की तरह देख रही हैं । इनके खिलाफ कानून बनाये जाने के बारे में भी कोई कदम नहीं उठा रहीं है । याचिका के माध्यम से गैर सरकारी संगठन के वकील रविकांत ने मांग की है कि सरकारें इस बावत तैयार की गई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय योजना का खुलासा करें साथ ही सरकारें ऑनर किलिंग के रोकथाम और इसे बढ़ावा देनें वालों (खाप पंचायतों तथा अन्य) के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने हेतु प्रभावित राज्यों के प्रत्येक जिलों में एक स्पेशल सेल बनाएं जहां ऐसे नव विवाहित युवा जोड़े अपनी सुरक्षा के लिए गुहार कर सकें, तथा ऑनर किलिंग रोकनें में मदद मिल सके । इस याचिका में केंद्र सरकार की ओर से केंद्रीय गृह मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को पक्षकार बनाया गया है ।

इस मामले पर पत्रकारों से बात करते हुए केन्द्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोईली नें बताया है कि केंद्र सरकार अगले माह संसद के मानसून सत्र में ऑनर किलिंग मामले पर एक विधेयक लाने पर विचार कर रही है । वीरप्पा मोईली नें बताया है कि इस विधेयक का प्रारूप तैयार कर लिया गया है । इस विधेयक में कई धाराओं को संशोधित कर दोषियों को उचित और आवश्यक सजा देनें के प्रावधान को उल्लेखित किया गया है । उन्होंने कहा है कि इस विधेयक के लागू हो जाने पर ऑनर किलिंग को रोकने में काफी मदद मिलेगी । ऑनर किलिंग के लिए पूरी पंचायत को दोषी ठहराने संबंधी कानून का समावेश इस विधेयक में होना लगभग तय माना जा रहा है ।

ऑनर किलिंग केवल भारत की ही समस्या है ऐसा नहीं है, यह एक वैश्विक समस्या है । पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र संघ नें संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष नामक एक रिपोर्ट जारी की थी । उस रिपोर्ट में बताया गया था कि विश्व में 5000 से भी अधिक प्रेमी जोड़े ऑनर किलिंग के शिकार हो जाते है । कई पश्चिमी देशों में ऑनर किलिंग की घटनाएँ देखने को मिल रही हैं इसमें फ़्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन आदि देश शामिल हैं । यह बात दीगर है कि यहां दुसरे देशों से आने वाले समुदाय के लोग ही ऑनर किलिंग के शिकार होते है । भारत के आलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, इजिप्ट, लेबनान, टर्की, सीरिया, मोरक्को, इक्वाडोर, युगांडा, स्वीडन, यमन, तथा खाड़ी के देशों में ऑनर किलिंग जैसे अपराध प्रचलन में हैं ।

दरसल सगोत्रीय और अंतरजातीय विवाह ही इस ऑनर किलिंग समस्या की जड़ में है । उत्तर भारत में सामाजिक मान्यता है कि सगोत्रीय और अंतरजातीय विवाह नहीं होने चाहिए । यहां समान गोत्र में विवाह परंपरा के विरुद्ध माना जाता है तो अंतरजातीय विवाह अपराध। सवाल यह है कि अगर एक गोत्र के लड़कों को भाई-बहन माना जाय तो फिर अंतरजातीय विवाह से क्या समस्या है ? समाज को दोनों से ही समस्या है । अगर एक सगोत्रीय परिवार के युवा आपस में विवाह करते है तो पंचायतें उन युवाओं की हत्या का फतवा जारी कर देती है, साथ ही उन युवाओं के परिवारों से सजातीय समाज द्वारा रोटी-बेटी का संबंध तोड़ लेने की चेतावनी दी जाती है ।

वहीं अंतरजातीय विवाह करने वाले युवाओं के परिवारों को क्रूर सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है । इस स्थिती में सामाजिक बहिष्कार का दंश झेल रहा परिवार ( जिसमें परिवार के अन्य युवाओं की सजातीय विवाह रुक जाना भी शामिल है) इस स्थिती के लिए अपने ही बच्चे को दोषी मानने लगता है, और मौका मिलने पर ऑनर किलिंग जैसा जघन्य अपराध कर बैठता है । सगोत्रीय विवाह के बारे में कुछ लोगों का तर्क है कि हिन्दू धर्म के लोगों की पहचान गोत्र से होती है । इसका मतलब यह निकाला जाता है कि एक गोत्र के सभी लोग एक परिवार के होते है । वे इस मामले में विज्ञान का हवाला देते हुए कहते है कि एक गोत्र का मतलब जेनिटिक्स समानता । अगर एक ही परिवार या गोत्र में विवाह होता है तो उनके बच्चों में जेनिटिक्स विकृतियाँ उत्पन्न हो सकती है । यह तर्क सगोत्रीय विवाह के विरोधियों का है किन्तु इस तरह का कोई वैज्ञानिक शोधपत्र अभी तक तो सामने नहीं आया है ।

दरसल ऑनर किलिंग समस्या का एक बड़ा कारण राजनैतिक है । अपने वोट बैंक को मजबूत करने के खातिर राजनैतिक पार्टियों और राजनेताओं द्वारा देश में जातीयता को बढ़ावा दिया जा रहा है । सगोत्रीय विवाह के सवाल पर रोहतक में हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा खाप पंचायतों के साथ खड़े नजर आते है और खाप पंचायतों को गैर सरकारी संगठन साबित करते है । तो कही नवीन जिंदल हिन्दू विवाह कानून में संशोधन कर सगोत्रीय विवाह पर रोक लगाने जैसी खाप पंचायतों की मांग को पार्टी में उठाने का आश्वासन देते नजर आते है ।

इज्जत के खातिर मौत देने का सिलसिला आखिर कब रुकेगा ? आखिर कब तक मान सम्मान के नाम पर युवाओं की हत्या होती रहेगी ? कौन है ! जो इस जघन्य कृत्य को चुनौती देने की हिम्मत करेगा ? इसका जवाब कानून नहीं है, इसका जवाब हम सभी को अपने आप से पूछना है, इस समाज से पूछना है, जिसके बीच हम रहते है ।. हमें अपने आप को बदलना होगा, रूढ़िवादिता के चंगुल से स्वयं को और समाज को छुड़ाना होगा, जातिवाद के दलदल से बाहर आकर, ऊँच-नीच के भेद-भाव को ख़त्म करना होगा, और सबसे बड़ी बात तो यह है कि उन परिवारों को भरोसा देना होगा कि अगर तुम्हारे बच्चे सगोत्रीय या अंतरजातीय विवाह करते है तो तुम्हे अपने समाज में सामाजिक बहिष्कार का दंश नहीं झेलना होगा. परिवार के दुसरे बच्चे के विवाह को लेकर सजातीय बहिष्कार नहीं किया जायेगा. तुम्हे किसी तरह की छीटाकशी और तानाकशी का सामना नहीं करना पड़ेगा. अगर हम यह सब नहीं कर पाए तो शायद आने वाला विधेयक या कानून भी ऑनर किलिंग पर लगाम लगाने में सक्षम नहीं होंगें ?

मंगलवार, 22 जून 2010

४९८ (ए) का शिकार एक और परिवार

महिलाओं को दहेज उत्पीड़न के सुरक्षाकवच के रूप में ४९८ (ए) एक ऐसा हथियार मिल गया है कि वे अब इसका जरूरत से ज्यादा दुरूपयोग करने लगी हैं इस समय देश में दहेज उत्पीड़न के मुकदमों की बाढ़ सी आ गई है दहेज उत्पीड़न के मुकदमें दर्ज कराने में महिला संगठन अग्रणी भूमिका निभा रही हैं इसकी एक बानगी देखने को मिली जब सुबह १० बजे ऑफिस में आया। अभी आफिस पहुंचा भी नहीं था कि एक घबराया हुआ युवक ऑफिस में आया नाम पूछने पर पता चला कि उसका नाम विकी डे था । वह बंगलूरू स्थित एक्सेंचर नामक आउटसोर्सिंग कंपनी में काम करता है उसने इंटरनेट पर हमारे बारे में पता करके हमारे पास आया था।
पूछने पर उसने जो अपने परिवार के उत्पीड़न की कहानी बताई उससे मेरे सामने दहेज उत्पीड़न ४९८ (ए) के माध्यम से बेकसूर ससुराल वालों को एक महिला द्वारा सामाजिक और मानसिक प्रताड़ना की एक कहानी फिर से आ गई कि आखिर एक महिला झूठी शिकायत करती है तो पति और उसके बूढ़े माँ- बाप और रिश्तेदार फ़ौरन ही बिना किसी विवेचना के गिरफ्तार कर लिए जायेंगे और गैर-जमानती टर्म्स में जेल में डाल दिए जायेंगे, भले चाहे की गई शिकायत फर्जी और झूठी ही क्यों न हो ! आप शायद उस गलती की सज़ा पायेंगे । जो आपने की ही नहीं और आप अपने आपको निर्दोष भी साबित नहीं कर पाएँगे अगर आपने अपने आपको निर्दोष साबित कर भी लिया तब तक शायद आप समाज में एक जेलयाफ्ता मुजरिम कहलायेंगे ।
विकी डे नें बताया कि कि उसके भाई विक्रम डे की पत्नी और उसकी भाभी प्रिया मोंडल नें भाई विक्रम सहित उसके बूढ़े माता-पिता और दो बहनों के विरुद्ध वहाँ की एक स्थानीय महिला समिति के सहयोग से दहेज उत्पीडन का स्थानीय पुलिस थाना ऑल वूमन पुलिस थाने में एफआईआर क्रमांक ५९/२०१० भा।द.वि. ४९८ (ए), ३४ के तहत मुकदमा दर्ज कराया है । विकी डे ने बताया कि उसके भाई विक्रम की शादी जब प्रिया से हुई थी उस समय वह दसवी में पढ़ रही थी । उस समय दोनों परिवारों ने यह तय किया था कि बारहवीं तक की पढ़ाई प्रिया अपने मायके में ही रह कर करेगी सो उसने बारहवीं तक की पढ़ाई अपने मायके में ही रह कर की । इस बीच विक्रम की गोवा में अच्छी नौकरी लग गई जब वह विक्रम के घर आई तो विक्रम और प्रिया दोनों ने यह तय किया कि थोड़े दिनों बाद गोवा में घर लेकर वहाँ शिफ्ट हो जायेंगे ।
विकी डे का भाई विक्रम प्रिया के साथ कुछ दिन गुजारने के बाद गोवा चला गया प्रिया विक्रम के माँ-बाप और दोनों बहनों के साथ गुवाहाटी में रहने लगी किन्तु इसी बीच प्रिया के पास किसी अनजान आदमी का फोन आने लगा जिसपर वह घंटों बात करती थी । जब बात करने का सिलसिला ज्यादा बढ़ गया तो विक्रम के माता-पिता को यह नागवार लगने लगा । फोन पर इस गुफ्तगूं से विक्रम की माँ नाराज होकर प्रिया को एक दिन काफी खरी-खोटी सुनायी और कहा कि आइंदा किसी भी आदमी का तुम्हारे पास फोन नहीं आना चाहिए । इस पर प्रिया ने भी विक्रम की माँ का जवाब दिया और वह अपना सामान लेकर अपने मायके चली गई । उसके जाते समय विक्रम की माँ-पिताजी और बहनों ने रोकने की कोशिश की किन्तु प्रिया नहीं मानी । वह विक्रम के परिवार को झिड़क कर अपने मायके चली गई ।
१ मई २०१० को ऑल वूमन पुलिस थाने गुवाहाटी से विक्रम के घर पर शाम को ४।०० बजे पुलिस आई और विक्रम के माँ-बाप को उठाकर थाने ले गई विक्रम की बहन निर्मला डे के काफी अनुरोध करने के बाद तथा १०,००० रूपये लेकर पुलिस ने रात को १० बजे विक्रम के माँ-बाप को निर्मला डे से यह कहते हुए छोड़ा कि बाहर के बाहर मामले को निपटा लो अथवा अपने भाई को गोवा से बुला लो, उसके आने के बाद तुम लोग पुलिस स्टेशन में आ जाओ मैं प्रिया और उसके परिवार को बुलाकर समझौता करवा दूँगा । विक्रम की बहन निर्मला डे ने गोवा फोन कर विक्रम को सारी स्थिती की जानकारी दी और जल्दी से गुवाहाटी आने को कहा लेकिन कंपनी से विक्रम को देर से छुट्टी मिलने के कारण ९ मई २०१० को वह गुवाहाटी पहुँचा । वहाँ पहुँचकर वह सीधे ससुराल यानि प्रिया के माता-पिता के पास गया और उसने समाज में अपने और अपने परिवार के मान-सम्मान का हवाला देते हुए केस उठाने के लिए अनुरोध किया ।
विक्रम ने प्रिया से यह भी कहा कि अगर वह माँ और पिता जी के साथ नहीं रहना चाहती तो हमारे साथ गोवा चलो और वहाँ हमारे साथ रहो किन्तु प्रिया ने विक्रम के साथ कहीं भी जाने से मना कर दिया इतना ही नहीं प्रिया की माँ दुर्गा मोंडल और भाई कार्तिक मोंडल नें विक्रम को बेइज्जत करके अपने घर से निकाल दिया तथा विक्रम के गोवा से आने की सुचना पुलिस को दे दी, पुलिस ने विक्रम और उसके माँ-बाप को थाने में बुलाकर गिरफ्तार कर लिया । तथा विक्रम डे की दोनों बहनों क्रमशः निर्मला डे उम्र २८ वर्ष और बबली डे उम्र १७ वर्ष को गिरफ्तार करने के लिए ढूढ़ने लगी तो निर्मला डे नें बंगलूरू स्थित भाई विकी डे से संपर्क किया । विकी डे नें बंगलूरू से २५,००० रुपया भेजा । जिससे निर्मला डे और बबली डे की अग्रिम जमानत गुवाहाटी उच्च न्यायालय से हो सकी किन्तु अभी भी विकी की माँ सीता रानी डे और पिता निरमोय डे तथा भाई विक्रम डे की अभी भी जमानत नहीं हो सकी है । विकी डे के अनुसार उसकी माँ सीता रानी डे की उम्र ५७ वर्ष और उसके पिता निरमोय डे की उम्र ६३ वर्ष है उम्र के अंतिम पड़ाव पर हमारे माता-पिता को मेरे भाभी प्रिया के कारण यह दिन देखना पड रहा है विकी डे के अनुसार प्रिया और उसके मायके के लोगों ने जान-बूझ कर उसके माता-पिता, भाई और बहनों को झूठे मुकदमें में फंसाया है ।
विकी डे यह कहते कहते कि हमारी भाभी ने हमारे बूढ़े माँ-बाप और भाई को जेल में डलवा दिया है । हमारी बहनों को अग्रिम जमानत लेनी पडी, आखिर उनका क्या दोष है ? क्या भाभी के गलती करने पर हमारे माँ-बाप उसे डाट नहीं सकते इतना कहते कहते उसके ऑख में आँसू आ जाते हैं और वह फफक कर रो पड़ता है । विकी डे बताता है कि उसके भाई की अच्छी-खासी नौकरी जेल में जाने के वजह से चली गई । उसके बहन की भी नौकरी भी झूठे मुकद्दमें के वजह से रोज-रोज के भाग-दौड के कारण खतरे में है विकी डे कहता है कि वह अपने कंपनी में जहां काम करता है वह यह नहीं बता सकता कि उसका पूरा परिवार दहेज उत्पीड़न के झूठे मुकदमें के कारण जेल में है इसलिए उसने अपनी कंपनी से अपनी माँ के बीमारी का बहाना करके छुट्टी लेकर माँ-बाप और भाई को छुड़ाने गुवाहाटी जा रहा है ।
बहरहाल हमने विकी डे और उसके माँ-बाप भाई बहनों के साथ दहेज उत्पीड़न के नाम पर किये जा रहे अत्याचार में विकी और उसके परिवार का गुवाहाटी में संस्था के माध्यम से मदद करने का निर्णय लिया है । हमने संस्था के आसाम राज्य इकाई के पदाधिकारियों से कहा है कि आसाम इकाई के संस्था के वकील के माध्यम से विकी डे की मदद करें और उसके परिवार की जमानत कराएँ । यह मामला संस्था के समक्ष आने पर विकी और उसके परिवार की हमारे तरफ से उन्हें जमानत पर तो रिहा करा दिया जायेगा परन्तु उन लाखों विकी डे और उनके परिवारों की कौन मदद करेगा जो आये दिन ४९८ (ए) के झूठे मुकदमों में फंसाकर प्रताड़ित किये जा रहे हैं ।

गुरुवार, 17 जून 2010

डॉ महंगाई सिंह की सरकार का एक अहम् पैतरा

एंडरसन को विदेश भगाने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले लोगों के तरफ से देशवासियों का ध्यान बटाने के लिए डॉ महंगाई सिंह की सरकार नें एक अहम् फैसला लिया है पेट्रोल और डीजल का दाम बढ़ा दो जिससे आम आदमी और मीडिया का ध्यान भोपाल गैस त्रासदी से हटा कर बढ़े हुए पेट्रोल और डीजल के दाम के बहस में उलझा दिया जाय आप लोगों नें देखा होगा कि सरकार जब यह देखती है कि किसी खास मुद्दे पर मीडिया और देश की जनता सरकार को घेर रही है तो सरकार तत्काल उस मुद्दे को पीछे धकेलने के लिए एक नया मुद्दा उछाल देती है

सोमवार, 7 जून 2010

महंगाई विरोधी जनांदोलन का फैसला

महंगाई को लेकर आम आदमी बेहद लाचार है और सरकार द्वारा ठगा सा महसूस कर रहा । है पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दाम बढ़ाए जाने की खबर सुनकर एक बार फिर चिंतित होगया है इसी के मद्देनजर मुंबई के तमाम रेसिडेंस वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्य तथा हाऊसिंग सोसायटियों के सदस्यों नें फैसला किया है क़ि जिस दिन सरकार पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस का दाम बढ़ाएगी उस दिन हाऊसिंग सोसायटियों काला झंडा लगाकर और हांथों में काली पट्टी बांध कर सरकार द्वारा ताबड़तोड़ बढाई जा रही महंगाई का विरोध करेगे ।
यह प्रतीकात्मक विरोध होगा आगे चलकर प्रत्येक माह के एक पुरे सप्ताह यह प्रक्रिया चलाई जायेगी इसे "महंगाई के विरुद्ध साप्ताहिक विरोध" नाम दिया जायेगा मुंबईवासियों नें देश के सभी प्रबुद्ध नागरिकों से भावनात्मक अपील की है क़ि प्रत्येक शहर के लोग इस प्रतीकात्मक महंगाई विरोधी जनांदोलन को अपने-अपने रेसिडेंस एरिया, हाऊसिंग कालोनी, हाऊसिंग सोसायटी शुरू करें।
इस बीच खबर आयी है कि पेट्रोल, डीजल व रसोई गैस के दाम बढ़ाने का फैसला फ़िलहाल टाल दिया गया है हालाँकि सोमवार 7 जून को मंत्रियों का समूह पेट्रोल व डीजल के दाम बढ़ाने का फैसला लिया जाना था । इसके हिसाब से गणनाएं भी की जा रही थीं कि इंडियन ऑयल से लेकर ओएनजीसी का मूल्यांकन कितना बढ़ जाएगा और उनके शेयर कितने बढ़ सकते हैं। लेकिन कोरम न पूरा होने से मंत्रियों के समूह की बैठक ही न हो सकी ।
मंत्रियों के इस समूह (ई-जीओएम) के अध्यक्ष वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी हैं। सोमवार की बैठक में प्रणव मुखर्जी समेत पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा, उर्वरक मंत्री एम के अलागिरी, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोटेंक सिंह आहलूवालिया और कैबिनेट सचिव के एम चंद्रशेखर ने हिस्सा लिया है। लेकिन चार प्रमुख मंत्रियों की गैर-मौजूदगी के चलते कोई फैसला नहीं हो सका। अनुपस्थित मंत्रियों में रेल मंत्री ममता बनर्जी और कृषि मंत्री शरद पवार शामिल हैं। तेल सचिव एस सुंदरेशन के मुताबिक बैठक काफी अच्छी रही। लेकिन मंत्रियों के न होने से कोई फैसला नहीं लिया जा सका। जल्दी ही फिर बैठक बुलाई जाएगी। मंत्रियों के समूह को किरीट पारिख समिति की सिफारिशों पर फैसला लेना है जिसमें पेट्रोल और डीजल पर मूल्य नियंत्रण खत्म करने की बात कही गई है।
इसे मान लेने पर पेट्रोल के दाम 3.50 रुपए प्रति लीटर और डीजल के दाम 2 रुपए प्रति लीटर बढ़ जाएंगे। इसका राजनीतिक विरोध हो रहा है। खासकर, ममता बनर्जी इसे मानने को तैयार नहीं हैं। लेकिन मुरली देवड़ा इसे हर हालत में लागू करवाना चाहते हैं। बावजूद इसके मुंबईवासियों नें अपने इस निर्णय पर दृढ़ है कि जिस दिन सरकार पेट्रोल, डीजल व रसोई गैस के दाम बढ़ाएगी उस दिन से प्रतीकात्मक महंगाई विरोधी जनांदोलन की शुरुवात करेंगे और आगे चलकर इसे "महंगाई के विरुद्ध साप्ताहिक विरोध" का रूप दे दिया जायेगा ।
मुंबईवासियों के इस प्रयास की सराहना Honesty Project for Real Democracy in India के माडरेटर जय कुमार झा ने भी दिल्ली से की है.

महंगाई विरोधी जनांदोलन का फैसला

दरसल महंगाई को लेकर आम आदमी बेहद लाचार है और सरकार द्वारा ठगा सा महसूस कर रहा । है पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दाम बढ़ाए जाने की खबर सुनकर एक बार फिर चिंतित होगया है इसी के मद्देनजर मुंबई के तमाम रेसिडेंस वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्य तथा हाऊसिंग सोसायटियों के सदस्यों नें फैसला किया है क़ि जिस दिन सरकार पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस का दाम बढ़ाएगी उस दिन हाऊसिंग सोसायटियों काला झंडा लगाकर और हांथों में काली पट्टी बांध कर सरकार द्वारा ताबड़तोड़ बढाई जा रही महंगाई का विरोध करेगे ।
यह प्रतीकात्मक विरोध होगा आगे चलकर प्रत्येक माह के एक पुरे सप्ताह यह प्रक्रिया चलाई जायेगी इसे "महंगाई के विरुद्ध साप्ताहिक विरोध" नाम दिया जायेगा मुंबईवासियों नें देश के सभी प्रबुद्ध नागरिकों से भावनात्मक अपील की है क़ि प्रत्येक शहर के लोग इस प्रतीकात्मक महंगाई विरोधी जनांदोलन को अपने-अपने रेसिडेंस एरिया, हाऊसिंग कालोनी, हाऊसिंग सोसायटी शुरू करें। मुंबईवासियों के इस प्रयास की सराहना Honesty Project for Real Democracy in India के माडरेटर जय कुमार झा ने भी दिल्ली से की है.

मुंबई के लोगों नें किया महंगाई विरोधी जनांदोलन का फैसला

दरसल महंगाई को लेकर आम आदमी बेहद लाचार है और सरकार द्वारा ठगा सा महसूस कर रहा । है पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दाम बढ़ाए जाने की खबर सुनकर एक बार फिर चिंतित होगया है इसी के मद्देनजर मुंबई के तमाम रेसिडेंस वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्य तथा हाऊसिंग सोसायटियों के सदस्यों नें फैसला किया है क़ि जिस दिन सरकार पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस का दाम बढ़ाएगी उस दिन हाऊसिंग सोसायटियों काला झंडा लगाकर और हांथों में काली पट्टी बांध कर सरकार द्वारा ताबड़तोड़ बढाई जा रही महंगाई का विरोध करेगे ।
यह प्रतीकात्मक विरोध होगा आगे चलकर प्रत्येक माह के एक पुरे सप्ताह यह प्रक्रिया चलाई जायेगी इसे "महंगाई के विरुद्ध साप्ताहिक विरोध" नाम दिया जायेगा मुंबईवासियों नें देश के सभी प्रबुद्ध नागरिकों से भावनात्मक अपील की है क़ि प्रत्येक शहर के लोग इस प्रतीकात्मक महंगाई विरोधी जनांदोलन को अपने-अपने रेसिडेंस एरिया, हाऊसिंग कालोनी, हाऊसिंग सोसायटी शुरू करें।

शुक्रवार, 21 मई 2010

15 हजार मछुआरे क्या मराठी माणुस नहीं हैं?


मुंबई से लगभग 400 किलोमीटर की दूरी पर महाराष्ट्र का एक जिला है- रत्नागिरी। जिले की आबादी लगभग 17 लाख है जिले में कुल 9 तालुकाएं है मंडनगढ़, दापोली, खेड़, चिपलून, गुहागर, संगमेश्वर, लोज़ा, राजापुर, और रत्नागिरी। रत्नागिरी तालुका में समुद्र के किनारे दो गाँव है (1) गोलप मोहल्ला (2) पावस, इन दोनों गावों में लगभग 5000 मछुआरों का परिवार रहता है जिसमें हिन्दू कोली समुदाय और मुस्लिम दाल्दी समुदाय के लोग है और यह दोनों समुदाय मिलजुल कर समुद्र से मछली पकड़कर अपनी आजीविका चलाते है।

मछली पकड़ने का यह कार्य इनका पुस्तैनी धंधा है और लगभग 15,000 लोग इस धंधे पर आश्रित हैं। ये लोग मछली पकड़ने के इस व्यवसाय को सदियों से करते चले आ रहे है किन्तु अब इन मछुआरों का मछली पकड़ने का व्यवसाय खतरे में पड़ गया है अब इन्हें अपना भविष्य अंधकारमय दिख रहा है इनके नजरों के सामने ही इनके व्यवसाय को तहस-नहस किया जा रहा है.इन मछुआरों के रोजगार को तहस-नहस करने के पीछे एक कंपनी है जो कि 20 वर्ष पहले यहाँ आयी है। कंपनी का नाम है फिनोलेक्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड। स्थानीय लोग एवं कंपनी से पीड़ित मछुआरे बताते है कि इस कंपनी और कंपनी के मालिक को मराठा क्षत्रप शरद पवार का आशीर्वाद प्राप्त है इसलिए इन मछुआरों की व्यथा को स्थानीय समाचार पत्रों में भी जगह नहीं मिलती। इलेक्ट्रानिक मिडिया तो दूर की बात है क्योकि यह कंपनी इन्हें नियमित रूप से विज्ञापन देती रहती है सो मछुआरों के इन सवालों से मिडिया नें अपने आपको अलग कर लिया है. चूँकि कंपनी को शरद पवार का आशीर्वाद प्राप्त है इसलिए किसी स्थानीय नेता की इन मछुआरों के पक्ष में खड़े होने की हिम्मत नहीं है. अब ये मछुआरे अपने आपको मछली पकड़ने के अपने पुस्तैनी व्यवसाय से बेदखल किये जाते असहाय होकर देख रहे है कंपनी द्वारा इनके व्यवसाय पर हमले के विरुद्ध उक्त गांव के सभी मछुआरे अपने-अपने घरों के छतों पर कंपनी के अत्याचार के विरोध स्वरूप काले झंडे लगा रखें है.
फिनोलेक्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने 20 वर्ष पहले यहाँ आकर अपनी जेट्टी बनाया था तथा दूर समुद्र में खड़े मालवाहक जहाजों से माल बार्जों पर लाद कर अपनी जेट्टी तक लाती है। कंपनी को रनपार बंदर के इर्द-गिर्द के समुद्र में किसी की दखलंदाजी बर्दास्त नहीं। कंपनी नहीं चाहती कि मछुआरे मछली पकड़ने के लिए समुद्र में आवाजाही करें। हालाँकि अब तक कंपनी के किसी अधिकारी ने खुलकर इस बारे में कुछ नहीं कहा है. मछुआरों की रनपार बंदर में अपनी एक जेट्टी है. मौजूदा समय में मछुआरों के पास 4 बड़े यांत्रिक बोट (ट्रालर), 60 छोटे यांत्रिक बोट, 20 सादा बोट (बिना यन्त्र के) हैं. मछुआरे इन बोटों को रनपार बंदर में रखते है. रनपार बंदर अंग्रेजी के U के आकर का है. मछुआरे बताते है कि कंपनी के बार्जों के लगातार आवाजाही से भारी मात्रा में रेत किनारे पर बह कर आ जाती है जिसमें मछुआरों की बोट फंस जाती है. मछुआरों की जेट्टी के आस-पास रेत पट जाने के वजह से समुद्र के ज्वार-भाटे की भरती जहाँ तक आती थी अब वहां रेत पट गयी है मछुआरों की बोटों का किनारे तक आना-जाना मुश्किल हो रही है, इस कारण से उन्हें भारी नुकसान सहना पड़ रहा है.
समुद्र में खड़े मालवाहक जहाजों तक बार्जों के आने-जाने के लिए कंपनी नें सिग्नल की बोई लगा रखी है जिसमें आये दिनों मछुआरों की मछली पकड़ने की जाली फंस कर फट जाती है। एक जाली के फटने से मछुआरों का लगभग 70 000/- रूपये का नुकसान हो रहा है. पहले जिस रास्ते से मछुआरे समुद्र में जाते थे अब उस रास्ते के बीचों-बीच से कंपनी के बार्ज मालवाहक जहाजों तक आ जा रहे है इस कारण कंपनी अब मछुआरों को सीधे समुद्र में जाने से सख्ती से रोक लगा रही है. इस वजह से अब मछुआरों को लगभग 8 किलोमीटर घूम कर समुद्र में जाना पड़ता है, जिसके कारण मछुआरों को हर बार अतिरिक्त 20 लीटर डीजल जलाना पड़ता है. इससे मछुआरों को हर बार समुद्र में जाने पर अतिरिक्त 800/- रूपये का बोझ पड़ रहा है जो कि मछुआरों के आर्थिक स्थिति को और खराब कर रहा है.

वर्ष 2006 में महाराष्ट्र राज्य की मत्स्य उद्योग मंत्री श्रीमती मीनाक्षी ताई पाटील के कार्यकाल में रनपार बंदर के मच्छीमार जेट्टी के विकास के लिए कुल 3 करोड़ रूपये का फंड पास किया गया था जिसमे मछुआरों के गांव से जेट्टी तक के सड़क का निर्माण, मच्छीमार जेट्टी का पुनर्विकास, मछुआरों द्वारा पकड़ी गयी मछलियों के नीलामी के लिए नीलाम घर (आक्सन हॉउस) का निर्माण, मच्छीमार जेट्टी पर मछुआरों के लिए शौचालय एवं स्नान घर का निर्माण आदि के लिए था. मत्स्य विभाग द्वारा उक्त फंड से मछुआरों के जेट्टी का काम शुरू किया गया लगभग 65 लाख रूपये खर्च करके मछुआरों के गांव से मछुआरों की जेट्टी तक के सड़क का निर्माण कार्य शुरू किया गया और 12 फिट चौड़ी और 1 किलोमीटर लंबी सड़क बन भी गयी किन्तु मच्छीमार जेट्टी का सरकारी फंड से विकास होते देख फिनोलेक्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड नें रत्नागिरी सत्र न्यायालय में दिनांक 12 /03 /2006 को (दीवानी वाद क्र. रे.मु.नं. 73 / 2006 ) सहायक संचालक मत्स्य विभाग, रत्नागिरी कोल्हापुर के विरूद्ध मुकदमा दायर कर दिनांक 17 /03 /2006 को उक्त निर्माण कार्य पर एकतरफा स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया. जब इस स्थगन आदेश के बारे में मछुआरों नें पता किया तो पता चला कि मत्स्य विभाग नें मुकद्दमें की पैरवी के लिए सत्र न्यायालय में अपना वकील ही नहीं खड़ा किया था जिसके कारण कंपनी को एकतरफा स्थगन आदेश प्राप्त हो गया मछुआरों का कहना है कि कंपनी तो हमारे पीछे पड़ी है किन्तु महाराष्ट्र राज्य मत्स्य विभाग द्वारा भी कंपनी को फायदा पहुँचाने के लिए मुकद्दमे की पैरवी के लिए वकील न खड़ा करके हमारे साथ धोखाधड़ी की गयी है महाराष्ट्र सरकार द्वारा मच्छीमार जेट्टी के विकास के लिए पास किये गये 3 करोड़ रूपये में से बाकी बचे 2 करोड़ 35 लाख रूपये वैसे ही पड़े है. मछुआरों की दो सोसायटियां है (1) परशुराम मच्छीमार सोसायटी, (2) पावस मच्छीमार सोसायटी, इन दोनों सोसायटियों के पदाधिकारी कंपनी के इस कार्रवाई से और मत्स्य विभाग द्वारा कंपनी का साथ देने से अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहे है. मछुआरों के अनुसार कंपनी जिस जमीन को अपनी जमीन बताकर सत्र न्यायालय से स्थगन आदेश प्राप्त किया वह सी.आर.जेड. ( केंद्र सरकार) की जमीन है और वहां तक ज्वार-भाटे के समय समुद्र की भरती आती है दोनों सोसायटियों के पदाधिकारी सुरेन्द्र भडेकर, विट्ठल पावस्कर, प्रशांत हरचेकर, गणेश सुर्वे, जिक्रिया पावस्कर, शफी भुजबा, आदि मछुआरों के प्रतिनिधि के रूप में श्रीमती पाटील के बाद मत्स्य उद्योग मंत्री हसन मुश्रीफ़ से मिले और मछुआरों पर कंपनी द्वारा किये जा रहे अत्याचार को रोकने की गुहार लगायी. मछुआरों के प्रतिनिधि मंडल नें मांग की कि कंपनी के स्थगन आदेश के विरूद्ध हम सक्षम न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे हमें मत्स्य विभाग अनुमती दे किन्तु हसन मुश्रिफ ने मछुआरों के अनुरोध को अनसुना कर दिया. इसके बाद भी मछुआरों के प्रतिनिधि मंडल नें अपना प्रयास जारी रखते हुए बंदर विकास मंत्री प्रीतम कुमार शेगावकर से मिले किन्तु वहां से भी मछुआरों को बैरंग वापस लौटना पड़ा. मछुआरे कहते है कि अब कोई हमारी मदद नहीं कर रहा है हमारे सामने अब केवल दो रास्ते है या तो हम विदर्भ के किसानों की तरह आत्महत्या कर लें या गढ़चिरौली, चन्द्रपुर के आदिवासियों की तरह कंपनी, शासन और प्रशासन के विरुद्ध हथियार उठा लें. स्थानीय जानकार कंपनी के इन करतूतों को पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बता रहे है इनके अनुसार रनपार बंदर का 8 किलोमीटर का समुद्री किनारा है और रनपार बंदर के तीन तरफ से पहाड़ है इस 8 किलोमीटर लंबे समुद्री किनारे पर समुद्री घास मैन्ग्रोस की बहुतायत है समुद्री मछलियां इन्ही समुद्री मैन्ग्रोस के पास अंडे देने आती है रनपार बंदर का समुद्री किनारा मछलियों के अंडे देने का सबसे पसंदीदा जगह था किन्तु अब कंपनी के मालवाहक जहाज और बार्जों के आवाजाही से रनपार बंदर के समुद्री किनारे का पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है अब जब संयुक्त राष्ट्र नें वर्ष 2010 को बायोडाईवर्सिटी इयर यानि जैव विविधता वर्ष घोषित किया है कंपनी ( फिनोलेक्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड) रनपार बंदर के जैव विविधता को ध्वस्त करने पर तुली है. चूँकि यह कंपनी मछुआरों के रोजगार को छीन रही है इसलिए मछुआरे कंपनी के विरुद्ध आवाज उठा रहे है. मछली व्यवसाय के इस धंधे के कुल 15,000 आश्रितों के आजीविका को छीनने वाली इस कंपनी में केवल 300 लोग रोजगार पाते है जिसमे 26 लोग स्थानीय यानि मराठी माणुस हैं. शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे, मनसे प्रमुख राज ठाकरे और मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण यह बताने की कोशिश करेंगे कि 15000 मछुआरे मराठी माणुस क्यों नहीं है?