गुरुवार, 28 जुलाई 2011

मुंबई शहर की समेकित बाल विनाश योजना



समेकित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) के कार्यक्रम अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा हेतु तमाम अन्य योजनाओं के माध्यम से सरकार द्वारा करोड़ों का बजट आबंटित किया जा रहा है. ज्ञात हो कि इस मद में वर्ष २००९-१० में ८१७२ करोड़ तथा वर्ष २०१०-११ में ८७०० करोड़ रुपया आबंटित किया गया किन्तु क्या यह आपको पता है कि आईसीडीएस कार्यक्रम के लिए आबंटित इस भारी भरकम धनराशि का लाभ उन ३ करोड ५० लाख बच्चों को मिल पा रहा है, सरकार द्वारा जिन्हें लाभान्वित होने का दावा किया जा रहा है ? समेकित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) के तहत मुंबई में चल रही आँगनवाड़ियों (बालवाड़ी) को केंद्रित करके जब हमने इस विषय का अध्ययन किया तो काफी चौकाने वाले तथ्य उभर कर सामने आये जोकि काफी चिंताजनक हैं.
समेकित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) और उसी की तर्ज पर ही महाराष्ट्र राज्य में संचालित योजना “एकात्मिक बाल विकास योजना” के तहत कुल ८८ हजार २ सौ ७२ आँगनवाड़ियों को संचालित किया जा रहा है और बताते है कि महाराष्ट्र में इस योजना से ८६ लाख ३२ हजार बच्चे लाभान्वित हो रहे है किन्तु जब हमने इस आँगनवाड़ी योजना को लेकर मुंबई की स्थिति की जानकारी इकट्ठी की तो हमने पाया कि इन आँगनवाड़ियों (बालवाड़ी) की आड में भारी पैमाने पर गडबडियां की जा रही हैं. इन आँगनवाड़ियों (बालवाड़ी) से संबंधित गडबड़ियों एवं भ्रष्टाचार में आकंठ तक डूबे प्रकल्प अधिकारियों ( Project Officer) से लेकर आँगनवाडी कार्यकर्ता सभी शामिल है. इस योजना के मुंबई में संचालन का जिम्मा कुल ३२ प्रकल्प अधिकारियों ( Project Officer) पर है प्रत्येक प्रकल्प अधिकारी के अंतर्गत २० से २५ आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) प्रत्येक आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) में अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा प्राप्त कर रहे कम से कम ३० और अधिक से अधिक ५० बच्चे है. इस तरह मुंबई में सरकार द्वारा चलाई जा रही इन आँगनवाड़ियों (बालवाड़ी) में लगभग २८ हजार बच्चे अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा प्राप्त कर रहे है.
इन आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) के प्रत्येक बच्चे के लिए पूरक पोषाहार के रूप में मध्यान्ह भोजन ( Mid Day Meal) के रूप में प्रत्येक बच्चों के लिए १०० ग्राम प्रतिदिन पोषक तत्वों से भरपूर पका हुआ भोजन जिसमें एनपी एनएसपीई २००६ के संशोधित नियम के अनुसार पोषण सामग्री जिसमें ४५० कैलोरी, १२ प्रोटीन एवं सूक्ष्म आहार के रूप में आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन-ए, इत्यादि सक्षम आहारों की पर्याप्त मात्रा हो, दिया जाना चाहिए. मुंबई के जिस आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) में ५० बच्चे अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं उन्हें पोषक तत्वों से भरपूर पका हुआ भोजन १०० ग्राम के हिसाब से ५ किलो मिलना चाहिए किन्तु किन्तु आलम यह है कि इन केन्द्रों पर ठेकेदार संस्थाओं द्वारा दो से ढाई किलो ही पका हुआ खाना आँगनवाड़ियों (बालवाड़ी) के बच्चों में वितरित कर रहे है तथा इस चोरी के एवज में आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) कार्यकर्ता को ५० रूपये प्रतिदिन रिश्वत के रूप में दे रहे है.
५० रूपये रिश्वत पा जाने पर आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) कार्यकर्ता पोषक आहार मुहैया कराने वाले ठेकेदार के ५ किलो के चालान पर आँख बंद करके हस्ताक्षर कर रहे है. अगर आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) के बच्चों को दिया जाने वाला पका हुआ भोजन आधा से अधिक चोरी कर रहे हैं. तो पौष्टिक आहार के (Composition) जैसे कैलोरी, प्रोटीन, आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन-ए, आदि सक्षम आहारों के समिश्रण के अनुपालन का तो भगवान ही मालिक है. पोषक आहार उपलब्ध कराने वाले ठेकेदारों द्वारा प्रकल्प अधिकारी ( Project Officer) को उनके रिश्वत का हिस्सा पहुंचाया जाता है. बताया जाता है कि आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) कार्यकर्ताओं के ऊपर पर्यवेक्षक का एक पद होता है. एक पर्यवेक्षक के अनुसार उनकी शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया जाता. जो पर्यवेक्षक इन आँगनवाड़ियों (बालवाड़ी) में नियमतः काम करवाना चाहते है उन्हें या तो शीर्षस्थ अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित कर चुप करा दिया जाता है या तो उनका स्थानांतरण कर दिया जाता है.
मुंबई में चल रहे आँगनवाड़ियों (बालवाड़ी) की योजना में करोड़ों रूपये का घोटाला केवल हुआ ही नहीं बल्कि लगातार हो रहा है. बावजूद इसके इस योजना का महाराष्ट्र में पिछले ५ वर्षों से ऑडिट नहीं किया गया है. भ्रष्टाचार में आकंठ तक डूबे अधिकारियों की रिपोर्ट को सही मानकर योजना की धनराशि बढाकर मुहैया करा दी जाती है और इस योजना से भ्रष्टाचार का परनाला लगातार बहता रहता है. उस पर तुर्रा यह कि अभी हाल में ही आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) कर्मियों के मानदेय को दुगना कर दिया गया पिछले दिनों प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों पर मंत्रिमंडल समिति की बैठक में आँगनवाड़ी कर्मियों को दिये जा रहे मानदेय को १५०० रूपये प्रति माह से बढ़ा कर ३००० हजार करने को मंजूरी दी गई. कैबिनेट की बैठक के बाद पेट्रोलियम मंत्री एस जयपाल रेड्डी ने संवाददाताओं से कहा कि अर्ध आँगनवाड़ी कर्मियों को समेकित बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) के तहत अब ७५० रूपये प्रतिमाह के स्थान पर १५०० रूपये प्रतिमाह मानदेय दिया जायेगा. सवाल यह है कि क्या इस बढे हुए मानदेय के मद्देनजर आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) कार्यकर्ता भारी पैमाने पर चल रहे भ्रष्टाचार से अलग कर लेंगे, शायद नहीं.
“निरक्षरता हमारे लिए पाप और शर्मनाक है इसका नाश किया जाना चाहिए” महात्मा गांधी के इसी आदर्श वाक्य के मद्देनजर तथा भारत सरकार की राष्ट्रीय बाल नीति जिसमें कि बच्चों को राष्ट्र की परम महत्वपूर्ण संपत्ति माना गया है, से हुआ. इस योजना का नाम समेकित बाल विकास योजना रखा गया इसकी नीव १९७४ में रखी गई तथा इसकी शुरूवात महात्मा गांधी के जन्म दिवस २ अक्टूबर को वर्ष १९७५ की गई प्रयोग के तौर पर यह कार्यक्रम उस समय संपूर्ण भारत के केवल ३३ खण्डों में चलाया गया किन्तु आज के समय में इसका विस्तार पुरे देश में व्यापक रूप से हो चुका है इस कार्यक्रम का उद्देश्य छ: साल तक के आयु के बच्चों पोषण व स्वास्थ्य में सुधार लाना, बच्चों के मानसिक, शारीरिक, सामाजिक व बौद्धिक विकास की नीव रखना, बाल मृत्यु दर व बच्चों के कुपोषण में कमी लाना, बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर [ ड्राप आउट] {राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन की ओर से २००९ में किए गए अध्ययन के मुताबिक ८१.५० लाख बच्चों ने स्कूली शिक्षा अधूरी छोड़ी जो ६-१३ आयुवर्ग के बच्चों की आबादी के ४.२८ प्रतिशत है} में कमी लाना, गर्भवती व दूध पिलाने वाली माताओं के स्वास्थ्य व पोषण स्तर में सुधार लाना, महिलाओं में स्वास्थ्य व पोषण के बारे में जागृती लाकर उन्हें इस काबिल बनाना कि वे अपने परिवार तथा विशेषतौर से अपने बच्चों की पोषाहार व स्वास्थ्य की जरूरतों को स्वयं पूरा कर सकें. इन समेकित बाल विकास योजना के तहत संचालित आँगनवाडियों के माध्यम से दी जाने वाली सेवाएं निम्नलिखित है जैसे पूरक पोषाहार, अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा, टीकाकरण, स्वास्थ्य जां, पोषाहार एवं स्वास्थ्य शिक्षा ( महिलाओं के लिए) और संदर्भ सेवाएं प्रमुख है.
इस समेकित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) के तहत चलाई जा रही आँगनवाड़ियों के माध्यम से बच्चों को दी जा रही अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा जिसे मुंबई में बालवाड़ी योजना के नाम से जाना जाता है, में चल रहे भारी भ्रष्टाचार को देखकर यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि इस योजना का मुंबई जैसे शहर में जहाँ अत्यधिक जागरूक नागरिक बसते है, यह हाल है तो भारत के दूर-दराज के गाँव में क्या होता होगा इसमें कोई शक नहीं कि भारत के दूर-दराज के गाँव में आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) केवल कागजों पर ही होती होंगी. ऐसे में भारत सरकार की राष्ट्रीय बाल नीति जिसमें कि बच्चों को राष्ट्र की परम महत्वपूर्ण संपत्ति माना जाता है, के क्या मायने है और आखिर यह सवाल किससे किया जाना चाहिए कि बच्चों के मानसिक, शारीरिक, सामाजिक व बौद्धिक विकास की नीव रखने की जिम्मेदारीयुक्त आँगनवाड़ी (बालवाड़ी) में चल रहे भारी भ्रष्टाचार और उनके पोषक आहार पर डाले जा रहे डाके को रोकने की जिम्मेदारी किसकी है ?

यह लेख विस्फोट.कॉम पर २७ जुलाई २०११ को प्रकाशित हो चुका है