दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा आज २ जुलाई, २००९ को दिए गए ऐतिहासिक निर्णय द्वारा भारत में वयस्कों के बीच स्वैच्छिक समलैंगिक सम्बन्धों को संवैधानिक मूल अधिकारों के अंतर्गत मानते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा ३७७ को इस हद तक शून्य घोषित कर दिया है। अब सहमति से वयस्क समलैंगिकों के बीच संबंध को इस धारा के अंतर्गत दण्डनीय नहीं माना जाएगा।
दिल्ली उच्च न्यायालय का यह निर्णय कुल १०५ पृष्ठों, १३५ चरणों और २६३९७ शब्दों का है। इस संपूर्ण निर्णय को किसी ब्लाग की एक पोस्ट पर प्रकाशित कर पाना संभव नहीं है। लेकिन इस निर्णय के चरण संख्या १२९ से १३२ में निर्णय का निष्कर्ष है। यदि आप चाहें तो यह निष्कर्ष तीसरा खंबा के सहयोगी अंग्रेजी ब्लाग LEGALLIB पर जा कर इसे यहाँ पढ़ सकते हैं।
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