महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग के काम-काज की जांच मुंबई हाईकोर्ट करेगा, मानवाधिकार आयोग में मानवाधिकार उल्लंघन के बारे में कोई करवाई न किए जाने को लेकर तथा आयोग के सदस्यों द्वारा नियमित तौर पर की गई अनियमितताओं पर एक जनहित याचिका दायर की गयी थी । इस याचिका के लिए सूचना अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त की गई थी याचिका में कहा गया था कि जून २००८ तक २८,०८३ मामले दायर किए गए थे । परन्तु आयोग नें कारवाई का आदेश केवल ३९ मामलों में दोषी अधिकारियों के खिलाफ दिया है । मानवाधिकार उल्लंघन के मामले शिकायतकर्ताओं नें दायर किए थे ये मामले राज्य के विरुद्ध थे जिसमें सरकारी अधिकारी भी शामिल थे ।
आयोग नें २४०७१ मामले निपटाए तथा जून २००८ तक ४०१२ मामले निपटाने बाकी थे याचिका में कहा गया था कि २४०३२ मामलों को विचारणीय न माना जाना अजीब लगता है । इसका अर्थ यह हुआ कि केवल ०।१६ प्रतिशत मामलों में ही मानवाधिकार उल्लंघन के केस साबित हो पाए क्या बाकी बकवास थे ? यह याचिका व्यवसायी व समाजसेवी पुष्कर दामले नें दायर की थी । जो हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार तथा एस।सी. धर्माधिकारी की खंडपीठ में गुरुवार को सुनवायी हेतु आयी थी । खंडपीठ नें इस याचिका पर राज्य सरकार से ३ सप्ताह के भीतर उत्तर देने को कहा है । याचिका में बताया गया है कि राज्य सरकार नें वर्ष १९९३ के मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम के वर्ष २००६ के संशोधन के प्रावधानों को लागू करने का कोई प्रयास नहीं किया इस परिवर्तन से किसी भी उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता तथा ४ सदस्यों वाले आयोग में मात्र एक अध्यक्ष तथा दो सदस्य रखे जाने थे पर वर्ष २००६ में आयोग केवल एक अध्यक्ष सी।एल। थूल की अध्यक्षता में ६ माह तक काम करता रहा ।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि २३.११.२००६ में इसके लागू होने से पूर्व महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित कमेटी नें ३ सदस्यों का चयन किया इनकी नियुक्ति राज्यपाल नें वास्तव में १०.११.२००६ में की थी । अब तक जो सदस्य कार्यरत रहे उनमें टी।सिंगार्वेल ( नागपुर के पूर्व पुलिस आयुक्त ) सुभाष लाला ( मुख्यमंत्री के पूर्व निजी सहायक) तथा विजय मुंशी ( उच्च न्यायलय के पूर्व जज ) याचिका में कहा गया है कि परिवर्तित एच.आर. एक्ट अभी तक महाराष्ट्र सरकार नें लागू नहीं किया है । याचिका में कहा गया है कि अपनी नियुक्ति के एक दिन बाद ही एक सदस्य कैंसर सर्जरी के लिए अवकाश पर चला गया । इस सदस्य के इलाज पर राज्य सरकार के ६।२५ लाख रूपये खर्च हुए एक अन्य सदस्य नें निर्देशों का उल्लंघन करके अपनी पत्नी के साथ अत्यधिक यात्रायें की ।
आयोग नें २४०७१ मामले निपटाए तथा जून २००८ तक ४०१२ मामले निपटाने बाकी थे याचिका में कहा गया था कि २४०३२ मामलों को विचारणीय न माना जाना अजीब लगता है । इसका अर्थ यह हुआ कि केवल ०।१६ प्रतिशत मामलों में ही मानवाधिकार उल्लंघन के केस साबित हो पाए क्या बाकी बकवास थे ? यह याचिका व्यवसायी व समाजसेवी पुष्कर दामले नें दायर की थी । जो हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार तथा एस।सी. धर्माधिकारी की खंडपीठ में गुरुवार को सुनवायी हेतु आयी थी । खंडपीठ नें इस याचिका पर राज्य सरकार से ३ सप्ताह के भीतर उत्तर देने को कहा है । याचिका में बताया गया है कि राज्य सरकार नें वर्ष १९९३ के मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम के वर्ष २००६ के संशोधन के प्रावधानों को लागू करने का कोई प्रयास नहीं किया इस परिवर्तन से किसी भी उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता तथा ४ सदस्यों वाले आयोग में मात्र एक अध्यक्ष तथा दो सदस्य रखे जाने थे पर वर्ष २००६ में आयोग केवल एक अध्यक्ष सी।एल। थूल की अध्यक्षता में ६ माह तक काम करता रहा ।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि २३.११.२००६ में इसके लागू होने से पूर्व महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित कमेटी नें ३ सदस्यों का चयन किया इनकी नियुक्ति राज्यपाल नें वास्तव में १०.११.२००६ में की थी । अब तक जो सदस्य कार्यरत रहे उनमें टी।सिंगार्वेल ( नागपुर के पूर्व पुलिस आयुक्त ) सुभाष लाला ( मुख्यमंत्री के पूर्व निजी सहायक) तथा विजय मुंशी ( उच्च न्यायलय के पूर्व जज ) याचिका में कहा गया है कि परिवर्तित एच.आर. एक्ट अभी तक महाराष्ट्र सरकार नें लागू नहीं किया है । याचिका में कहा गया है कि अपनी नियुक्ति के एक दिन बाद ही एक सदस्य कैंसर सर्जरी के लिए अवकाश पर चला गया । इस सदस्य के इलाज पर राज्य सरकार के ६।२५ लाख रूपये खर्च हुए एक अन्य सदस्य नें निर्देशों का उल्लंघन करके अपनी पत्नी के साथ अत्यधिक यात्रायें की ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें