गणतंत्र दिवस के पूर्व संध्या पर महाराष्ट्र स्थित नाशिक जिले के अतिरिक्त जिलाधिकारी यशवंत सोनवणे की हत्या से महाराष्ट्र राज्य ही नहीं वरन पूरे देश का प्रशासन और प्रबुद्ध नागरिक भौचक्क है। महाराष्ट्र राज्य के ८० हजार राजपत्रित अधिकारी (गजटेड आफिसर) यशवंत सोनवणे की हत्या के विरोध में गुरुवार को हड़ताल पर चले गये. वास्तव में यह घटना पूरे देश को हिलाकर रख दिया है. एक राजपत्रित अधिकारी को जलाकर मार डालने का दुस्साहस करने वाला तेल माफिया पोपट दत्तू शिंदे और उसके साथियों को पुलिस नें पकड़ लिया है. इस जघन्य अपराध में पोपट दत्तू शिंदे के आलावा उसका साला सीताराम भालेराव और सहायक राजू शिरसाट, काचरू सुरोद, विकास शिंदे, दीपक वोरास, तोसिफ शेख, अल्ताफ शेख एवं पोपट शिंदे का लड़का कुणाल शामिल हैं.
अतिरिक्त जिलाधिकारी यशवंत सोनवणे की हत्या कोई साधारण घटना नहीं है यह एक आश्चर्यजनक घटना है. आखिर एक मिलावटखोर तेल माफिया एक राजपत्रित अधिकारी को जलाकर मार डालने की हिमाकत कैसे की यह जाँच का विषय है. अगर इमानदारी से इस मामले की जाँच हो जाय तो पोपट शिंदे महाराष्ट्र के किसी बड़े राजनेता के संरक्षण में अपने इस काले कारोबार को फैला रहा है इसका खुलासा हो जायेगा. लेकिन यकीन मानिए जाँच वहां तक पहुंचने ही नहीं पायेगी और पोपट शिंदे के संरक्षक पर किसी तरह की कोई आंच नहीं आयेगी. इस पोपट शिंदे के जेल या सजा हो जाने पर वह राजनेता किसी नये पोपट शिंदे को पैदाकर उसके संरक्षण में संलग्न हो जायेगा जिससे अगला पोपट शिंदे उस राजनेता के राजनैतिक और आर्थिक हवस की पूर्ति करता रहे और जरूरत पड़ने पर किसी प्रशासनिक अधिकारी की जघन्य हत्या से भी गुरेज न करे.
गुंडाराज के मामले में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों का नाम लिया जाता था किन्तु अब महाराष्ट्र राज्य के नाम का भी उसमे सुमार हो गया है यशवंत सोनवणे की हत्या भ्रष्टाचारियों और मिलावटखोरों के मनोबल को दर्शाता है इस विषय पर गुरुवार को ही केन्द्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री जयपाल रेड्डी और राज्यमंत्री आर.पी.एन. सिंह नें एमओपीएनजी और तेल विपणन कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की और पेट्रोलियम उत्पादों तथा रियायती ऑटो इंजन में मिलावट की समीक्षा की. यह समीक्षा मालेगांव (महाराष्ट्र) के अतिरिक्त जिलाधिकारी यशवंत सोनवणे की हत्या के मद्देनज़र की गयी जो कि पेट्रोलियम उत्पादों की चोरी रोकने के लिए अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए मारे गये. मंत्री महोदय द्वय नें यशवंत सोनवणे के संतप्त परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए तेल कंपनियों की ओर से उनके परिवार को २५ लाख रूपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की.
महाराष्ट्र में जब भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट सतीश शेट्टी की हत्या की गयी उसी समय सरकार की चुप्पी और निष्क्रियता नें इस तरह की हत्याओं के लिए जमीन तैयार कर दी थी. सतीश शेट्टी की हत्या में भी दबी जुबान राज्य के बड़े नेता का नाम लिया जा रहा था उस समय भी आम जन सतीश शेट्टी की हत्या से विचलित थे किन्तु सरकार चुप थी सतीश शेट्टी की बर्बर हत्या का विरोध आम जन को सड़क पर उतर कर करना चाहिए था. जो कि नहीं किया गया. सतीश शेट्टी नें भी अवैध कारोबार रोकने की कोशिश की थी और यशवंत सोनवणे नें भी किन्तु दोनों मामलों के बीच फर्क यह रहा कि यशवंत सोनवणे की हत्या के विरोध में प्रथम एवं द्वितीय श्रेणी के लाखों कर्मचारी हड़ताल पर चले गये तथा राज्य और केंद्र सरकार पर कार्रवाई के लिए दबाव बनाने में कामयाब रहे लेकिन दुर्भाग्य बस सतीश शेट्टी के मामले में ऐसा नहीं हुआ.
मोदी के "वाईब्रेंट गुजरात" में कुछ इसी तरह की घटना घटी यहाँ पर भी आरटीआई एक्टिविस्ट अमित जेठवा की जघन्य हत्या की गयी बताया जाता है कि अमित जेठवा भाजपा सांसद दीनू सोलंकी के काले कारनामों को उजागर कर रहे थे. जिससे क्षुब्ध होकर दीनू सोलंकी नें अपने भतीजे द्वारा अमित जेठवा की हत्या करवा दी. पांच वर्ष पहले उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में तैनात इंडियन आयल कारपोरेशन के सेल्स मैनेजर षग्मुगम मंजुनाथन की गोली मारकर हत्या भी ऐसे ही तेल माफियाओं द्वारा ही की गयी थी. वे भी लखीमपुर खीरी के कुख्यात मिलावटखोर से मिलावटखोरी बंद कराने के लिए उलझ गये थे इन हत्याओं से पेट्रोल और डीजल में मिट्टी का तेल मिलाकर मोटी कमाई करने वाले तेल माफियाओं का मनोबल कितने खतरनाक स्थिति तक बढ़ चुका है पता चलता है.सवाल यह है कि इन मिलावटखोरों, भ्रष्टाचारियों पर अंकुश लगाने के लिए किसी समाज सेवक या अफसर के शहीद होने के बाद ही सरकार की नींद टूटेगी अगर ऐसा है तो वह दिन दूर नहीं जब इन भ्रष्टाचारी मिलावटखोरों, माफियाओं को रोकने की बजाय समाज सेवक या अफसर अपनी रोजी-रोटी, परिवार तथा जीवन की फ़िक्र ज्यादा करेंगे और इनके सामने चल रहे भ्रष्टाचार या मिलावटखोरी को अनदेखा कर देंगे या शायद इस काले धंधे में हिस्सेदार भी बन जायेंगे.
हत्या चाहे षग्मुगम मंजुनाथन और यशवंत सोनवणे जैसे कर्तव्यनिष्ठ अफसरों की हो या सतीश शेट्टी अमित जेठवा जैसे सामाजिक व्हिसल व्लोवर्स की हो इन हत्याओं के कारण समाज और सरकारी कर्मचारियों में जो संदेश जा रहा है और इस संदेश के कारण उनके भीतर जो भय व्याप्त हो रहा है वह देश के कानून और व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है अब अगर सरकारें समय रहते ऐसी घटनाओं पर अंकुश नहीं लगायीं तो वह दिन दूर नहीं जब भ्रष्टाचारी, मिलावटखोर माफियाओं के द्वारा किये जा रहे हत्याओं की जद में देश के राजनेता भी होंगे. उस समय स्थिति की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है. यशवंत सोनवणे की हत्या के मामले में जितना दोषी पोपट शिंदे और उसका मिलावटखोर गैंग है उससे कम दोषी उन तेल कंपनियों के अधिकारी और स्थानीय पुलिस प्रशासन नहीं है जिन्होंने पोपट शिंदे से मिलीभगत/भ्रष्टाचार करके उसे मिलावट करने की खुली छूट दी. इनसे भी अधिक दोषी वे राजनेता है जिनका वरदहस्त पोपट शिंदे जैसे मिलावटखोरों पर है. क्या इनके विरुद्ध भी यशवंत सोनवणे की हत्या के लिए परिस्थितियों के निर्माण में सहयोग करने का दोषी मानकर कार्रवाई होगी ? अगर नहीं तो आने वाले दिनों में इस तरह के अनेकों भयावह मंजर से भारतीय समाज को रूबरू होना होगा साथ ही इन तेजश्वी समाज सेवकों और अधिकारियों की हत्याओं को न रोक पाने के कलंक को ढ़ोना होगा. भारतीय लोकतंत्र के लिए यह शर्मनाक स्थिति होगी.
अतिरिक्त जिलाधिकारी यशवंत सोनवणे की हत्या कोई साधारण घटना नहीं है यह एक आश्चर्यजनक घटना है. आखिर एक मिलावटखोर तेल माफिया एक राजपत्रित अधिकारी को जलाकर मार डालने की हिमाकत कैसे की यह जाँच का विषय है. अगर इमानदारी से इस मामले की जाँच हो जाय तो पोपट शिंदे महाराष्ट्र के किसी बड़े राजनेता के संरक्षण में अपने इस काले कारोबार को फैला रहा है इसका खुलासा हो जायेगा. लेकिन यकीन मानिए जाँच वहां तक पहुंचने ही नहीं पायेगी और पोपट शिंदे के संरक्षक पर किसी तरह की कोई आंच नहीं आयेगी. इस पोपट शिंदे के जेल या सजा हो जाने पर वह राजनेता किसी नये पोपट शिंदे को पैदाकर उसके संरक्षण में संलग्न हो जायेगा जिससे अगला पोपट शिंदे उस राजनेता के राजनैतिक और आर्थिक हवस की पूर्ति करता रहे और जरूरत पड़ने पर किसी प्रशासनिक अधिकारी की जघन्य हत्या से भी गुरेज न करे.
गुंडाराज के मामले में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों का नाम लिया जाता था किन्तु अब महाराष्ट्र राज्य के नाम का भी उसमे सुमार हो गया है यशवंत सोनवणे की हत्या भ्रष्टाचारियों और मिलावटखोरों के मनोबल को दर्शाता है इस विषय पर गुरुवार को ही केन्द्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री जयपाल रेड्डी और राज्यमंत्री आर.पी.एन. सिंह नें एमओपीएनजी और तेल विपणन कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की और पेट्रोलियम उत्पादों तथा रियायती ऑटो इंजन में मिलावट की समीक्षा की. यह समीक्षा मालेगांव (महाराष्ट्र) के अतिरिक्त जिलाधिकारी यशवंत सोनवणे की हत्या के मद्देनज़र की गयी जो कि पेट्रोलियम उत्पादों की चोरी रोकने के लिए अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए मारे गये. मंत्री महोदय द्वय नें यशवंत सोनवणे के संतप्त परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए तेल कंपनियों की ओर से उनके परिवार को २५ लाख रूपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की.
महाराष्ट्र में जब भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट सतीश शेट्टी की हत्या की गयी उसी समय सरकार की चुप्पी और निष्क्रियता नें इस तरह की हत्याओं के लिए जमीन तैयार कर दी थी. सतीश शेट्टी की हत्या में भी दबी जुबान राज्य के बड़े नेता का नाम लिया जा रहा था उस समय भी आम जन सतीश शेट्टी की हत्या से विचलित थे किन्तु सरकार चुप थी सतीश शेट्टी की बर्बर हत्या का विरोध आम जन को सड़क पर उतर कर करना चाहिए था. जो कि नहीं किया गया. सतीश शेट्टी नें भी अवैध कारोबार रोकने की कोशिश की थी और यशवंत सोनवणे नें भी किन्तु दोनों मामलों के बीच फर्क यह रहा कि यशवंत सोनवणे की हत्या के विरोध में प्रथम एवं द्वितीय श्रेणी के लाखों कर्मचारी हड़ताल पर चले गये तथा राज्य और केंद्र सरकार पर कार्रवाई के लिए दबाव बनाने में कामयाब रहे लेकिन दुर्भाग्य बस सतीश शेट्टी के मामले में ऐसा नहीं हुआ.
मोदी के "वाईब्रेंट गुजरात" में कुछ इसी तरह की घटना घटी यहाँ पर भी आरटीआई एक्टिविस्ट अमित जेठवा की जघन्य हत्या की गयी बताया जाता है कि अमित जेठवा भाजपा सांसद दीनू सोलंकी के काले कारनामों को उजागर कर रहे थे. जिससे क्षुब्ध होकर दीनू सोलंकी नें अपने भतीजे द्वारा अमित जेठवा की हत्या करवा दी. पांच वर्ष पहले उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में तैनात इंडियन आयल कारपोरेशन के सेल्स मैनेजर षग्मुगम मंजुनाथन की गोली मारकर हत्या भी ऐसे ही तेल माफियाओं द्वारा ही की गयी थी. वे भी लखीमपुर खीरी के कुख्यात मिलावटखोर से मिलावटखोरी बंद कराने के लिए उलझ गये थे इन हत्याओं से पेट्रोल और डीजल में मिट्टी का तेल मिलाकर मोटी कमाई करने वाले तेल माफियाओं का मनोबल कितने खतरनाक स्थिति तक बढ़ चुका है पता चलता है.सवाल यह है कि इन मिलावटखोरों, भ्रष्टाचारियों पर अंकुश लगाने के लिए किसी समाज सेवक या अफसर के शहीद होने के बाद ही सरकार की नींद टूटेगी अगर ऐसा है तो वह दिन दूर नहीं जब इन भ्रष्टाचारी मिलावटखोरों, माफियाओं को रोकने की बजाय समाज सेवक या अफसर अपनी रोजी-रोटी, परिवार तथा जीवन की फ़िक्र ज्यादा करेंगे और इनके सामने चल रहे भ्रष्टाचार या मिलावटखोरी को अनदेखा कर देंगे या शायद इस काले धंधे में हिस्सेदार भी बन जायेंगे.
हत्या चाहे षग्मुगम मंजुनाथन और यशवंत सोनवणे जैसे कर्तव्यनिष्ठ अफसरों की हो या सतीश शेट्टी अमित जेठवा जैसे सामाजिक व्हिसल व्लोवर्स की हो इन हत्याओं के कारण समाज और सरकारी कर्मचारियों में जो संदेश जा रहा है और इस संदेश के कारण उनके भीतर जो भय व्याप्त हो रहा है वह देश के कानून और व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है अब अगर सरकारें समय रहते ऐसी घटनाओं पर अंकुश नहीं लगायीं तो वह दिन दूर नहीं जब भ्रष्टाचारी, मिलावटखोर माफियाओं के द्वारा किये जा रहे हत्याओं की जद में देश के राजनेता भी होंगे. उस समय स्थिति की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है. यशवंत सोनवणे की हत्या के मामले में जितना दोषी पोपट शिंदे और उसका मिलावटखोर गैंग है उससे कम दोषी उन तेल कंपनियों के अधिकारी और स्थानीय पुलिस प्रशासन नहीं है जिन्होंने पोपट शिंदे से मिलीभगत/भ्रष्टाचार करके उसे मिलावट करने की खुली छूट दी. इनसे भी अधिक दोषी वे राजनेता है जिनका वरदहस्त पोपट शिंदे जैसे मिलावटखोरों पर है. क्या इनके विरुद्ध भी यशवंत सोनवणे की हत्या के लिए परिस्थितियों के निर्माण में सहयोग करने का दोषी मानकर कार्रवाई होगी ? अगर नहीं तो आने वाले दिनों में इस तरह के अनेकों भयावह मंजर से भारतीय समाज को रूबरू होना होगा साथ ही इन तेजश्वी समाज सेवकों और अधिकारियों की हत्याओं को न रोक पाने के कलंक को ढ़ोना होगा. भारतीय लोकतंत्र के लिए यह शर्मनाक स्थिति होगी.
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