मुंबई के समुद्री तट के पास जवाहरलाल नेहरु पोर्ट ट्रस्ट (जेएनपीटी) से करीब 5 (नॉटिकल) समुद्री मील की दूरी पर अरब सागर में 7 अगस्त शनिवार की सुबह 9.30 बजे पनामा के दो मालवाहक जहाज एमएससी चित्रा और एमवी खलिजिया की जोरदार टक्कर हुई इस हादसे में जहाज में सवार 33 क्रू मेंबरों को बचा लिया गया किन्तु इस टक्कर से एमएससी चित्रा के ईंधन टैंक में दरार आ जाने से जहाज (एमएससी चित्रा) डूब रहा है. और शनिवार से मुंबई के तटवर्तीय समुद्री क्षेत्र में तेल का रिसाव शुरू हो गया था बताया जा रहा है कि चित्रा के ईंधन टैंक से लगभग लगभग 500 से 800 टन तेल का रिसाव हो चूका है. चित्रा में कुल 2662 टन इंधन 283 टन डीजल और 88 टन लुब्रिकेटिंग तेल मौजूद था. भारी मात्रा में हुए तेल रिसाव से मुंबई के तटीय अरब सागर में 102 मील से अधिक के दायरे फ़ैल रहे तेल के कारण स्थानीय पर्यावरणीय परिस्थितिकी तंत्र और मैंग्रोव को बड़ा खतरा पैदा हो गया है. इस घटना से भारी मात्रा में मछलियों के मारे जाने की आशंका सहित समुद्री जीवन के भोजन के स्रोत स्थाई तौर पर नष्ट हो जायेंगे और भोजन नहीं मिलने से कई समुद्री प्रजातियाँ लुप्त हो जायेंगी.
राहत और बचाव के लिए कोस्टगार्ड के तरफ से "ऑपरेशन चित्रा" अभियान चलाया हुआ है जिसमें संकल्प, अमृत कौर, सुभद्रा कुमारी चौहान, कमला देवी, और सी-145 जहाजों को तैनात किया गया है तथा कोस्टगार्ड डोर्नियर हेलीकाप्टरों से प्रदूषण निरोधक अभियान चलाया जा रहा है. राहत और बचाव कार्यों में ओएनजीसी और जेएनपीटी की मदद ली जा रही है. मुंबई के येलोगेट पुलिस थाने में दोनों मालवाहक जहाजों के कैप्टन और चालक दल के सदस्यों के खिलाफ आईपीसी की धारा 280 (लापरवाही से जहाज चलाने), धारा 336 (दूसरों की जान जोखिम में डालने) और धारा 427 (शरारत के जरिए क्षति पहुंचाने) तथा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है. इतना ही नहीं इनके विरुद्ध पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की धारा 7-8 और 9 के तहत मुकद्दमा दर्ज किया गया है.
एमएससी चित्रा पर 1219 कंटेनर लदे हुए थे. इसमें से 31 कंटेनर में घातक रसायन थे. पिछले तीन दिनों में करीब 400 कंटेनर समुद्र में डूब गए हैं. हालांकि जहरीले रसायन वाले कितने कंटेनर डूबे हैं इसका अभी खुलासा नहीं हुआ है. लेकिन ये कंटेनर सबसे नीचे रखे थे इसलिए इनके पानी में डूबने की आशंका कम है. दुर्घटना के बाद पूरे इलाके में मैंग्रोव को भारी खतरा है साथ ही मानसून का यह वही समय है जब मछलियाँ ब्रीडिंग के लिए किनारे पर मैंग्रोव वनों तक आती है. ज्ञात हो कि भारत में मैंग्रोव कुल 3,60,000.हेक्टेयर में फैला हुआ है जोकि विश्व के कुल ज्वारीय वन का 3 % है मुंबई शहर, मुंबई उपनगर, ठाणे, रायगड़ और रत्नागिरी स्थित तटीय इलाकों में मैंग्रोव बहुतायत में पाया जाता है इसी मैंग्रोव या ज्वारीय वन से जैवविविधता और तटीय परिस्थितिकी तंत्र सुरक्षित रहता है.
एमएससी चित्रा के डूबने से समुद्रीय जल में घुलने वाले तेल, रसायन, कीटनाशक तटीय मैंग्रोव वनों और उसमें रहने वाले जीवों के लिए बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है. तटीय जीवों के संबंध में कहा जाता है कि प्राय: जीव ज्वारीय विस्तार एवं ज्वारीय आयाम से संबंधित होते है. मैंग्रोव वनों में पाए जाने वाले वन्य जीवन अद्भुत विविधता लिए होता है. मैंग्रोव वनों में पाए जाने वाले जीवों में मुख्यत: अकशेरुकी जीव तथा कीट आते है. पोरीफेरा, स्नाईडेरिया, आर्थोपोडा वर्गों के जीव जड़ों के आस-पास पाए जाते है. मैंग्रोव क्षेत्रों अति महत्वपूर्ण जीवों की सैकड़ों-सैकड़ों प्रजातियाँ पायी जाती है जैसे केकड़ो की लगभग 275 प्रजातियाँ. समुद्री मछलियों की अनेक प्रजातियाँ केवल मैंग्रोव क्षेत्रों तक ही सीमित और निर्भर रहती हैं.मैंग्रोव क्षेत्रों में छोटी मछलियों के जीवन के लिए अति आवश्यक भोजन तथा आश्रय प्राप्त होते है. मूंगे की चट्टानों (कोरल रीफ) में पाए जाने वाले तमाम जीवों के जीवन चक्र में मैंग्रोव क्षेत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. तटीय क्षेत्रों पर पायी जाने वाली मछलियों की संख्या पर मैंग्रोव वनों का प्रभाव अत्यंत महत्वपूर्ण है.
मैंग्रोव की जड़े मछलियों के लार्वा तथा छोटे बच्चों के लिए सुरक्षित आश्रय प्रदान करती हैं. मछलियों एवं अन्य अति महत्वपूर्ण समुद्री जीवों की कई ऐसी प्रजातियाँ हैं जिनका वयस्क जीवन तो सामान्यत: गहरे समुद्र तथा अन्य स्थानों पर गुजरता है किन्तु उनके बच्चे मैंग्रोव वनों में ही बड़े होते हैं. मैंग्रोव क्षेत्रों की स्वस्थ बहुतायत का मछलियों की संख्या से सीधा अनुपात देखने को मिलता है. मैंग्रोव क्षेत्रों में पायी जाने वाली मछलियों का इस वातावरण के तापमान तथा भौतिक और रासायनिक परिवर्तनों के साथ अनुकूलन अति आवश्यक है. कुछ अति महत्वपूर्ण समुद्रीय प्रजातियों ने स्वयं को मैंग्रोव वनों के वातावरण के इतना अनुकूल बना लिया है कि मैंग्रोव वनों के बिना उन प्रजातियों की कल्पना ही नहीं की जा सकती विस्तृत क्षेत्र में पायी जाने वाली द्विलिंगी किलीफिश ( रिवुलस मारमोरेटस) इसका अच्छा उदाहरण है. डूबते एमएससी चित्रा से हुए तेल और जहरीले रसायनों के रिसाव से मुंबई और आस-पास के मैंग्रोव वनों के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा पैदा हो गया है. यह खतरा जितना बड़ा मैंग्रोव वनों के लिए है उतना ही बड़ा उन सभी प्रजातियों के लिए है जो मुंबई और आस-पास के मैंग्रोव वनों के पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं.और जितना बड़ा खतरा मैंग्रोव वनों के पारिस्थितिकी तंत्र और जैवविविधता को है, मानवीय जीवन के लिए उतना ही बड़ा खतरा है.
जब हम मैंग्रोव के उपयोगिता को समझेंगे तब हमें पता चलेगा कि मुंबई और उसके आस-पास डूबते हुए जहाज से रिसने वाला तेल और जहरीला रसायन कितना विनाशक है. वस्तुत: मैंग्रोव वन विभिन्न प्रकार के समुद्री जीवों और वनस्पतियों के लिए अद्वितीय पारिस्थितिक पर्यावरण उपलब्ध कराते हैं. बहुत से जीव मैंग्रोव का विविध प्रकार से उपयोग करते हैं. मैंग्रोव के पौधों के पत्तों की टहनियां टूटी शाखाएं, बीज तथा फल विभिन्न प्रकार के जीवों के लिए भोजन उपलब्ध कराते हैं. ये क्षेत्र मूंगे की चट्टानों में तथा उसके आस-पास रहने वाले जीवों के छोटे बच्चों के लिए आदर्श शरणस्थल उपलब्ध कराते हैं. मैंग्रोव पौधों की आपस में गुथी हुई जलमग्न जड़ें अनेक प्रकार की मछलियों झींगे, पपड़ी वाले जीवों तथा कछुओं के लिए परभक्षियों से सुरक्षित आश्रय तथा प्रजनन ( ब्रीडिंग) स्थल का कार्य करती हैं. मैंग्रोव वन ज्वारीय दलदली क्षेत्रों के पोषक तत्त्व जैसे नाइट्रोजन फास्फोरस भारी धातुओं तथा सूक्ष्म तत्वों जो स्थलीय क्षेत्रों से नदियों द्वारा बहाकर लाये जाते है, के भण्डारण स्थल के रूप में कार्य करते है. सड़ती-गलती वनस्पतियों तथा अन्य जीव-जंतुओं से निकलने वाले तत्वों जैसे कार्बन, फास्फोरस तथा अन्य तत्वों के पुन: चक्रों में मैंग्रोव वनों का अद्वितीय योगदान होता है ये ज्वार भाटे के समय तटीय मिट्टी के कटाव को रोकते हैं ज्वार भाटे द्वारा मैंग्रोव वनों से पोषक तत्व समुद्र में ले जाये जाते है जहाँ समुद्री प्राणियों द्वारा इनका उपयोग होता है.
मैंग्रोव के वृक्षों से गिरने वाले पत्तियों, शाखाओं आदि का जीवाणुओं द्वारा अपघटन होता है इन प्रक्रिया में पोषक तत्व निकलते हैं जो आस-पास के पानी को उपजाऊ बनाते हैं अपघटित कार्बनिक पदार्थ तथा जीवाणु जैवद्रव्यमान ( बायोमास) को संयुक्त रूप से अपरद परिवर्तित करते हैं यह मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र में पैदा होने वाला यह एक मुख्य उत्पाद है. इसमें प्रोटीन का स्तर अधिक होता है और यहाँ जीव-जंतुओं के एक बड़ी संख्या के लिए भोजन प्रदान करता है जो पानी में से इस अपरद को छान कर अलग कर लेते हैं इस अपरद को खाने वाली छोटी मछलियों का शिकार बड़ी मछलियों द्वारा किया जाता है. मैंग्रोव वनों द्वारा उत्पन्न पोषक तत्व अन्य कोमल पारिस्थितिक तंत्रों जैसे प्रवाल भित्तियों, समुद्री शैवालों तथा समुद्री घास आदि को पोषण उपलब्ध कराते हैं. वर्षाऋतु के दौरान अधिक शुद्ध जल और अधिक करकट पात के परिणाम स्वरूप पोषक तत्वों की आपूर्ती बढ़ जाती है करकट पात के अपघटन से अपरद बनता है. अपरद पर सूक्ष्म जीवों की क्रिया से छोटे झींगों और मछलियों के पोषक तत्व बढ़ जाते हैं मैंग्रोव के पेड से गिरने वाली पत्तियों में जीवाणुओं के गतिविधियों के कारण अनेक जीवन के लिए भोजन की तथा प्राकृतिक आवास की व्यवस्था होती है. मैंग्रोव के इन प्राकृतिक आवासों में संसार की सबसे महत्वपूर्ण सामुद्रिक जैविक नर्सरी विद्यमान है. मुंबई और आस-पास के तटीय क्षेत्र भी मैंग्रोव के इसी स्वस्थ पारिस्थितिकी के हिस्सा हैं जो इस समय इस औद्योगिक हादसे यानि समुद्री मालवाहक जहाज एमएससी चित्रा से रिसने वाले तेल और जहाज से समुद्र में गिरे कंटेनरों जिसमें खतरनाक कीटनाशक रसायन से होने वाले रिसाव से गंभीर खतरे में पड़ गए हैं. समुद्र की सतह पर फैले इस जहरीले तेल और रसायन की अगर तत्काल और युद्ध स्तर पर सफाई नहीं की गई तो इस हादसे के कारण मुंबई का तटीय समुद्री इको सिस्टम भयानक पर्यावरणीय विनाश का गवाह बनेगा.
मुंबई के निकट दो समुद्री मालवाहक जहाजों की टक्कर मामूली घटना नहीं है. इस हादसे से यह तो बखूबी समझ में आता है कि मुंबई के तटीय समुद्र में सामान्य यातायात के नियमों के पालन की अनदेखी हो रही है. सवाल हार्बर ट्रैफिक मैनेजमेंट का है. क्यों हार्बर ट्रैफिक मैनेजमेंट इतना कमजोर है कि दो मालवाहक जहाज आपस में टकरा जा रहे हैं और सवाल सुरक्षा का भी, ऐसा तब हो रहा है जब भारतीय गुप्तचर एजेंसियों ने मुंबई पर समुद्री रास्तों से आतंकी हमले की आशंका जाहिर की हो और महाराष्ट्र सरकार अपनी तैयारियों को पूरा करने का दम भरती हो. आखिर इसे किस परिपेक्ष्य में देखा जाय. इससे भी बड़ा सवाल यह है कि इस तरह के दुर्घटनाओं से निपटने के लिए जरूरी संसाधनों और प्रभावी टेक्नोलाजी के मद्देनजर हम कहाँ खड़े हैं ? इस औद्योगिक दुर्घटना के कारण मुंबई के तटीय समुद्री पर्यावरण के इस गंभीर संकट की घड़ी में विदेशी तकनीक और मदद का मोहताज होना पड़ रहा है. दुर्घटनाग्रस्त जहाज से हो रहे तेल रिसाव पर काबू पाने के लिए विदेशी विशेषज्ञों को बुलाया गया जिसमें नीदरलैंड की कंपनी एलएमआईटी साल्वेज और सिंगापूर की एक कंपनी के विशेषज्ञों के दल का समावेश है. इस हादसे के राहत और बचाव कार्यों के लिए विदेशी विशेषज्ञों को बुलाने की मजबूरी हमारे देश के आपदा प्रबंधन की पोल खोलती है.
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राजेश सिंह
लेखक- नागरिक विकल्प के संपादक हैं
मो-919833004571
rajesh.aihrco@gmail.com
राहत और बचाव के लिए कोस्टगार्ड के तरफ से "ऑपरेशन चित्रा" अभियान चलाया हुआ है जिसमें संकल्प, अमृत कौर, सुभद्रा कुमारी चौहान, कमला देवी, और सी-145 जहाजों को तैनात किया गया है तथा कोस्टगार्ड डोर्नियर हेलीकाप्टरों से प्रदूषण निरोधक अभियान चलाया जा रहा है. राहत और बचाव कार्यों में ओएनजीसी और जेएनपीटी की मदद ली जा रही है. मुंबई के येलोगेट पुलिस थाने में दोनों मालवाहक जहाजों के कैप्टन और चालक दल के सदस्यों के खिलाफ आईपीसी की धारा 280 (लापरवाही से जहाज चलाने), धारा 336 (दूसरों की जान जोखिम में डालने) और धारा 427 (शरारत के जरिए क्षति पहुंचाने) तथा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है. इतना ही नहीं इनके विरुद्ध पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की धारा 7-8 और 9 के तहत मुकद्दमा दर्ज किया गया है.
एमएससी चित्रा पर 1219 कंटेनर लदे हुए थे. इसमें से 31 कंटेनर में घातक रसायन थे. पिछले तीन दिनों में करीब 400 कंटेनर समुद्र में डूब गए हैं. हालांकि जहरीले रसायन वाले कितने कंटेनर डूबे हैं इसका अभी खुलासा नहीं हुआ है. लेकिन ये कंटेनर सबसे नीचे रखे थे इसलिए इनके पानी में डूबने की आशंका कम है. दुर्घटना के बाद पूरे इलाके में मैंग्रोव को भारी खतरा है साथ ही मानसून का यह वही समय है जब मछलियाँ ब्रीडिंग के लिए किनारे पर मैंग्रोव वनों तक आती है. ज्ञात हो कि भारत में मैंग्रोव कुल 3,60,000.हेक्टेयर में फैला हुआ है जोकि विश्व के कुल ज्वारीय वन का 3 % है मुंबई शहर, मुंबई उपनगर, ठाणे, रायगड़ और रत्नागिरी स्थित तटीय इलाकों में मैंग्रोव बहुतायत में पाया जाता है इसी मैंग्रोव या ज्वारीय वन से जैवविविधता और तटीय परिस्थितिकी तंत्र सुरक्षित रहता है.
एमएससी चित्रा के डूबने से समुद्रीय जल में घुलने वाले तेल, रसायन, कीटनाशक तटीय मैंग्रोव वनों और उसमें रहने वाले जीवों के लिए बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है. तटीय जीवों के संबंध में कहा जाता है कि प्राय: जीव ज्वारीय विस्तार एवं ज्वारीय आयाम से संबंधित होते है. मैंग्रोव वनों में पाए जाने वाले वन्य जीवन अद्भुत विविधता लिए होता है. मैंग्रोव वनों में पाए जाने वाले जीवों में मुख्यत: अकशेरुकी जीव तथा कीट आते है. पोरीफेरा, स्नाईडेरिया, आर्थोपोडा वर्गों के जीव जड़ों के आस-पास पाए जाते है. मैंग्रोव क्षेत्रों अति महत्वपूर्ण जीवों की सैकड़ों-सैकड़ों प्रजातियाँ पायी जाती है जैसे केकड़ो की लगभग 275 प्रजातियाँ. समुद्री मछलियों की अनेक प्रजातियाँ केवल मैंग्रोव क्षेत्रों तक ही सीमित और निर्भर रहती हैं.मैंग्रोव क्षेत्रों में छोटी मछलियों के जीवन के लिए अति आवश्यक भोजन तथा आश्रय प्राप्त होते है. मूंगे की चट्टानों (कोरल रीफ) में पाए जाने वाले तमाम जीवों के जीवन चक्र में मैंग्रोव क्षेत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. तटीय क्षेत्रों पर पायी जाने वाली मछलियों की संख्या पर मैंग्रोव वनों का प्रभाव अत्यंत महत्वपूर्ण है.
मैंग्रोव की जड़े मछलियों के लार्वा तथा छोटे बच्चों के लिए सुरक्षित आश्रय प्रदान करती हैं. मछलियों एवं अन्य अति महत्वपूर्ण समुद्री जीवों की कई ऐसी प्रजातियाँ हैं जिनका वयस्क जीवन तो सामान्यत: गहरे समुद्र तथा अन्य स्थानों पर गुजरता है किन्तु उनके बच्चे मैंग्रोव वनों में ही बड़े होते हैं. मैंग्रोव क्षेत्रों की स्वस्थ बहुतायत का मछलियों की संख्या से सीधा अनुपात देखने को मिलता है. मैंग्रोव क्षेत्रों में पायी जाने वाली मछलियों का इस वातावरण के तापमान तथा भौतिक और रासायनिक परिवर्तनों के साथ अनुकूलन अति आवश्यक है. कुछ अति महत्वपूर्ण समुद्रीय प्रजातियों ने स्वयं को मैंग्रोव वनों के वातावरण के इतना अनुकूल बना लिया है कि मैंग्रोव वनों के बिना उन प्रजातियों की कल्पना ही नहीं की जा सकती विस्तृत क्षेत्र में पायी जाने वाली द्विलिंगी किलीफिश ( रिवुलस मारमोरेटस) इसका अच्छा उदाहरण है. डूबते एमएससी चित्रा से हुए तेल और जहरीले रसायनों के रिसाव से मुंबई और आस-पास के मैंग्रोव वनों के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा पैदा हो गया है. यह खतरा जितना बड़ा मैंग्रोव वनों के लिए है उतना ही बड़ा उन सभी प्रजातियों के लिए है जो मुंबई और आस-पास के मैंग्रोव वनों के पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं.और जितना बड़ा खतरा मैंग्रोव वनों के पारिस्थितिकी तंत्र और जैवविविधता को है, मानवीय जीवन के लिए उतना ही बड़ा खतरा है.
जब हम मैंग्रोव के उपयोगिता को समझेंगे तब हमें पता चलेगा कि मुंबई और उसके आस-पास डूबते हुए जहाज से रिसने वाला तेल और जहरीला रसायन कितना विनाशक है. वस्तुत: मैंग्रोव वन विभिन्न प्रकार के समुद्री जीवों और वनस्पतियों के लिए अद्वितीय पारिस्थितिक पर्यावरण उपलब्ध कराते हैं. बहुत से जीव मैंग्रोव का विविध प्रकार से उपयोग करते हैं. मैंग्रोव के पौधों के पत्तों की टहनियां टूटी शाखाएं, बीज तथा फल विभिन्न प्रकार के जीवों के लिए भोजन उपलब्ध कराते हैं. ये क्षेत्र मूंगे की चट्टानों में तथा उसके आस-पास रहने वाले जीवों के छोटे बच्चों के लिए आदर्श शरणस्थल उपलब्ध कराते हैं. मैंग्रोव पौधों की आपस में गुथी हुई जलमग्न जड़ें अनेक प्रकार की मछलियों झींगे, पपड़ी वाले जीवों तथा कछुओं के लिए परभक्षियों से सुरक्षित आश्रय तथा प्रजनन ( ब्रीडिंग) स्थल का कार्य करती हैं. मैंग्रोव वन ज्वारीय दलदली क्षेत्रों के पोषक तत्त्व जैसे नाइट्रोजन फास्फोरस भारी धातुओं तथा सूक्ष्म तत्वों जो स्थलीय क्षेत्रों से नदियों द्वारा बहाकर लाये जाते है, के भण्डारण स्थल के रूप में कार्य करते है. सड़ती-गलती वनस्पतियों तथा अन्य जीव-जंतुओं से निकलने वाले तत्वों जैसे कार्बन, फास्फोरस तथा अन्य तत्वों के पुन: चक्रों में मैंग्रोव वनों का अद्वितीय योगदान होता है ये ज्वार भाटे के समय तटीय मिट्टी के कटाव को रोकते हैं ज्वार भाटे द्वारा मैंग्रोव वनों से पोषक तत्व समुद्र में ले जाये जाते है जहाँ समुद्री प्राणियों द्वारा इनका उपयोग होता है.
मैंग्रोव के वृक्षों से गिरने वाले पत्तियों, शाखाओं आदि का जीवाणुओं द्वारा अपघटन होता है इन प्रक्रिया में पोषक तत्व निकलते हैं जो आस-पास के पानी को उपजाऊ बनाते हैं अपघटित कार्बनिक पदार्थ तथा जीवाणु जैवद्रव्यमान ( बायोमास) को संयुक्त रूप से अपरद परिवर्तित करते हैं यह मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र में पैदा होने वाला यह एक मुख्य उत्पाद है. इसमें प्रोटीन का स्तर अधिक होता है और यहाँ जीव-जंतुओं के एक बड़ी संख्या के लिए भोजन प्रदान करता है जो पानी में से इस अपरद को छान कर अलग कर लेते हैं इस अपरद को खाने वाली छोटी मछलियों का शिकार बड़ी मछलियों द्वारा किया जाता है. मैंग्रोव वनों द्वारा उत्पन्न पोषक तत्व अन्य कोमल पारिस्थितिक तंत्रों जैसे प्रवाल भित्तियों, समुद्री शैवालों तथा समुद्री घास आदि को पोषण उपलब्ध कराते हैं. वर्षाऋतु के दौरान अधिक शुद्ध जल और अधिक करकट पात के परिणाम स्वरूप पोषक तत्वों की आपूर्ती बढ़ जाती है करकट पात के अपघटन से अपरद बनता है. अपरद पर सूक्ष्म जीवों की क्रिया से छोटे झींगों और मछलियों के पोषक तत्व बढ़ जाते हैं मैंग्रोव के पेड से गिरने वाली पत्तियों में जीवाणुओं के गतिविधियों के कारण अनेक जीवन के लिए भोजन की तथा प्राकृतिक आवास की व्यवस्था होती है. मैंग्रोव के इन प्राकृतिक आवासों में संसार की सबसे महत्वपूर्ण सामुद्रिक जैविक नर्सरी विद्यमान है. मुंबई और आस-पास के तटीय क्षेत्र भी मैंग्रोव के इसी स्वस्थ पारिस्थितिकी के हिस्सा हैं जो इस समय इस औद्योगिक हादसे यानि समुद्री मालवाहक जहाज एमएससी चित्रा से रिसने वाले तेल और जहाज से समुद्र में गिरे कंटेनरों जिसमें खतरनाक कीटनाशक रसायन से होने वाले रिसाव से गंभीर खतरे में पड़ गए हैं. समुद्र की सतह पर फैले इस जहरीले तेल और रसायन की अगर तत्काल और युद्ध स्तर पर सफाई नहीं की गई तो इस हादसे के कारण मुंबई का तटीय समुद्री इको सिस्टम भयानक पर्यावरणीय विनाश का गवाह बनेगा.
मुंबई के निकट दो समुद्री मालवाहक जहाजों की टक्कर मामूली घटना नहीं है. इस हादसे से यह तो बखूबी समझ में आता है कि मुंबई के तटीय समुद्र में सामान्य यातायात के नियमों के पालन की अनदेखी हो रही है. सवाल हार्बर ट्रैफिक मैनेजमेंट का है. क्यों हार्बर ट्रैफिक मैनेजमेंट इतना कमजोर है कि दो मालवाहक जहाज आपस में टकरा जा रहे हैं और सवाल सुरक्षा का भी, ऐसा तब हो रहा है जब भारतीय गुप्तचर एजेंसियों ने मुंबई पर समुद्री रास्तों से आतंकी हमले की आशंका जाहिर की हो और महाराष्ट्र सरकार अपनी तैयारियों को पूरा करने का दम भरती हो. आखिर इसे किस परिपेक्ष्य में देखा जाय. इससे भी बड़ा सवाल यह है कि इस तरह के दुर्घटनाओं से निपटने के लिए जरूरी संसाधनों और प्रभावी टेक्नोलाजी के मद्देनजर हम कहाँ खड़े हैं ? इस औद्योगिक दुर्घटना के कारण मुंबई के तटीय समुद्री पर्यावरण के इस गंभीर संकट की घड़ी में विदेशी तकनीक और मदद का मोहताज होना पड़ रहा है. दुर्घटनाग्रस्त जहाज से हो रहे तेल रिसाव पर काबू पाने के लिए विदेशी विशेषज्ञों को बुलाया गया जिसमें नीदरलैंड की कंपनी एलएमआईटी साल्वेज और सिंगापूर की एक कंपनी के विशेषज्ञों के दल का समावेश है. इस हादसे के राहत और बचाव कार्यों के लिए विदेशी विशेषज्ञों को बुलाने की मजबूरी हमारे देश के आपदा प्रबंधन की पोल खोलती है.
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राजेश सिंह
लेखक- नागरिक विकल्प के संपादक हैं
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