कल महाराष्ट्र विधान सभा में २००९ के नवनिर्वाचित विधायकों के सपथ समारोह में समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आसिम आज़मी के साथ सदन में हाथापाई और मारपीट की गयी । आज़मी का दोष यह था कि उन्होंने हिंदी में सपथ लेने का साहस किया विधानसभा के अंदर किसी तरह की हाथापाई या अभिव्यक्ति में बाधा पहुंचाना दरअसल सदन की अवमानना एवं बोलने की आजादी पर हमला है।
संविधान के अनुच्छेद १९४ में राज्य के विधानमंडल को अधिकार होता है कि वे अपनी अवमानना के लिए अपने सदस्य या गैर-सदस्य को दंडित कर सकते हैं। अनुच्छेद १९४-३ यह कहता है कि विशेषाधिकार उल्लंघन के लिए राज्य विधानमंडलों के पास दंडित करने का वही अधिकार होगा, जो १९७८ में ४४ वें संविधान संशोधन के लागू होने के ठीक पहले था। सदन की अवमानना के लिए या विशेषाधिकार हनन के लिए सदन को जो तमाम अधिकार दिए गए हैं, उसमें जेल में निरूद्ध करना, बुलाकर फटकार लगाना या अन्य आवश्यक या उचित दंड देने के अधिकार शामिल हैं। इसके अलावा सदन को अपने सदस्यों को उपरोक्त दंडों के अलावा उनको निष्कासित करने या निलंबित करने या अन्य तरह से दंडित करने का अधिकार भी प्राप्त है। महाराष्ट्र विधानसभा में हमलावर विधायकों द्वारा अबू आजमी से हाथापाई या थप्पड़ मारना या कोई भी कार्रवाई करना गैरकानूनी कार्य करना सदन की अवमानना है।
हालाँकि सदन नें हमलावर विधायकों को चार वर्ष के लिए निलंबित कर दिया यह बात आयी गयी हो जायेगी महाराष्ट्र का सदन भी आने वाले दिनों में अपना काम करने लगेगा अबू आसिम आज़मी भी अपने साथ किये गये दुर्व्यवहार को भूलकर अपने काम में व्यस्त हो जायेगे किन्तु इस घटना से अगर किसी की क्षति हुई है तो वह है अपने पसंद की भाषा में बोलने की आजादी क्षति ! इसकी क्षतिपूर्ति न तो हमलावर कर सकते है ( माफी मांगने पर भी), न अबू आसिम आज़मी और न तो वह सदन जिसने प्रस्ताव पास करके हमलावर विधायकों को चार वर्ष कल लिए निलंबित कर दिया ।
कुछ लोग इसे अबू आसिम आज़मी की राजनैतिक हठवादिता की उपमा देंगे तो कुछ लोग उपरोक्त हमलावरों को क्षेत्रीय भाषाई उग्रवाद की उपमा देंगे किन्तु यहाँ पर हमें यह मानने में कोई संकोच नहीं यह पसंद की भाषा में बोलने की आजादी पर हमला है और अबू आसिम उसके वाहक बनें लेकिन उन्होंने इस मुद्दे के प्रवाह को मोड़ दिया विषय पर बुलाये गये कांफ्रेंस में बाल ठाकरे पर तीखी टिप्पणी की और वे बोलने की आजादी पर हुए हमले को मुद्दा नहीं बना सके । अगर वे इस मुद्दे को लेकर आम जनता में गये होते तो आम जन में नवीन राजनीतिज्ञों एवं व्यवस्थातंत्रों के विरूद्ध एक नई जागरूकता, एवं संघर्ष चेतना का निर्माण होता एवं अभिव्यक्ति के आजादी के वास्तविक लडाई के वाहक बनते ।
लोकतंत्र में अपनी बात अपनी भाषा में कहने की आजादी होनी चाहिए इसे रोकना लोकतंत्र पर कुठाराघात है क्योंकि अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता का मूल मानव अधिकार है । किसी को उसके पसंद की भाषा में बोलने से रोकना उसकी स्वतंत्रता का हनन है, उसके मानव अधिकारों का हनन है १० दिसम्बर १९४८ वह ऐतिहासिक दिन था जब संयूक्त राष्ट्र महासभा नें मानव अधिकार पर सार्वभौमिक घोषणा पत्र यानि युनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स जिसके अनुच्छेद १९ में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को विचारों की अभिव्यक्ति और जानकारी हासिल करने का अधिकार है ।
भारत के संविधान के द्वारा प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति का मूल अधिकार दिया गया है जिसमें मनचाही अभिव्यक्ति के साथ भाषाई स्वतंत्रता भी शामिल है । देश के प्रत्येक नागरिक को अपने पसंद की भाषा में स्वयं को अभिव्यक्त करने का अधिकार है अगर इन अधिकारों से कोई किसी को वंचित करता है या रोकता है तो वह मानव अधिकारों के उल्लंधन का दोषी है साथ ही वह राष्ट्र की एकता व अखंडता पर कुठाराघात करने का दोषी भी होगा ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें