आज ३१ मई २००८ विश्व तम्बाकू रोधी दिवस है भारत सरकार ने अखबारों तथा अन्य प्रसार माध्यमों के मध्यम से बडे-बडे इश्तिहार देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली इन इस्तिहारों में यह कह दिया गया कि "धूम्र पान जानलेवा है" कही-कही यह भी लिख दिया गया कि "तम्बाकू से कैंसर होता है" एक और जुमला फेका गया "तम्बाकू दर्दनाक मृत्यु का कारण है" इसी के साथ कुछ मुह के कैंसर से पीड़ित लोगों फोटो लगा दिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डा अम्बुमणि रामदौस एवं स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री श्रीमती पानाबाका लक्ष्मी का भी अखबारी एड के माध्यम से प्रचार हो गया विश्व तम्बाकू रोधी दिवस पर केवल एड में करोडों रूपये खर्च कर दिए गए सवाल यह है कि कितने लोगों ने इस् एड को देखा या पढा ? क्या एक दिन के एड से अथवा एक दिन विश्व तम्बाकू रोधी दिवस मना लेने भर से इस् बडे खतरे से मानवता निजाद पा लेगी ? मुझे नही लगता कि केवल इतना करने मात्र से हमे कुछ हासिल होगा बल्कि इस समस्या से अगर समाज को बचाना है तो हमारे समाज एवं हमारी सरकारों को तम्बाकू मुक्त समाज आन्दोलन अथवा मुहीम चलानी होगी ठीक उसी तरह जैसे हमारे देश में पोलियो के विरुद्ध अभियान चलाया जा रहा है ।
सरकारी आकडे के अनुसार हमारे देश में तम्बाकू जनित रोगों के कारण प्रतिवर्ष १० लाख लोगों की मौत हो जाती है । स्वास्थ्य मंत्रालय एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ ) और अन्य स्वतंत्र विशेषज्ञों का मानना है कि कैंसर के ५० प्रतिशत से अधिक मामले तम्बाकू के सेवन से होते है । मौजूदा समय में तम्बाकू मानवता का सबसे बडा हत्यारा है । अभी तक हमारी सरकारों ने केवल इस समस्या के बारे में सतही तौर पर खानापूर्ति करती ही दिखती है । इस् विषय पर सरकार की कार्रवाईयों को देख कर लगता है कि तम्बाकू उत्पादों के खतरे का ढिंढोरा पीटने के पीछे केवल एक मकसद होता है इन उत्पादों पर कर बढा देना जिससे सरकारी खजाने में बढोत्तरी हो सके । तम्बाकू का उत्पाद बनाने वाली कंपनिया इन बातों से परिचित है । हमारी सरकार की तरफ़ से अभी तक तम्बाकू का उत्पाद बनाने वाली कंपनियों के विरुद्ध क्यो कोई सख्त कदम नही उठाया गया ? क्या केवल इन कंपनियों द्वारा अपने उत्पादों पर " तम्बाकू का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है" इतना लिख देने मात्र से उनका अपराध ख़त्म हो जाता है ? ये कंपनिया भ्रामक विज्ञापन, उत्पादों के इस्तेमाल हेतु प्रोत्साहन, एवं प्रचार-प्रसार में लगभग १० अरब सालाना रूपये खर्च करती है ।
"तम्बाकू २६ प्रकार से भी अधिक जानलेवा बीमारियो का जनक है"। तम्बाकू में मौजूद तत्व निकोटीन अधिक नशीला होता है। और आदि बनाने वाला होता है इसलिए इस नशे को त्यागने में लोग अक्सर असफल हो जातें हैं। इन सभी बातों से पता चलता है समस्या की जडें कितनी गहरी है तो क्या सतही तौर पर कार्रवाई से समस्या का समाधान हो सकेगा । अभी हल में ही देश के स्वास्थ्य मंत्री डा अम्बुमणि रामदौस ने अपने एक बयान में कहा है कि "अब बिना विलम्ब आकस्मिक तौर पर ६० करोड़ भारतीयों को, जिनकी उम्र ३० साल से कम है उनकों तम्बाकू, शराब, और फास्ट फ़ूड से बचना है" लेकिन हमारे स्वास्थ्य मंत्री कैसे बचायेगे इन युवाओं को ? क्या कोई ठोस रणनीति है स्वास्थ्य मंत्रालय के पास या फ़िर यह केवल कोरी बयानबाजी है यह तो स्वास्थ्य मंत्री ही जानते होंगे ।
मैं तो केवल आप सभी पाठकों से यही अपील कर सकता हूँ कि "जिन्दगी चुनें तम्बाकू नहीं"