भारत एक कृषि प्रधान देश था लेकिन शायद अब भारत को कृषि प्रधान देश कहने मे किसी को भी हिचकिचाहट होगी ? क्योकि केन्द्र सरकार के कृषि मंत्री श्री शरद पवार ने कुछ समय पहले लोक सभा में बताया था कि देश मे ११,००० किसान प्रतिवर्ष आत्महत्या करते हैं जिसमें भारी संख्या में कर्ज न अदा करने वाले किसान हैं। फोर्ब्स पत्रिका के अनुसार देश में कुल ३६ खरबपति हैं जिसमें अकेले महाराष्ट्र राज्य के मुंबई में २६ पाये जाते हैं. लेकिन उसी राज्य में पिछले १० सालों में कर्ज के बोझ तले दबकर ३६,००० से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है. उनका कहना था कि सरकारी प्रयासों का क्या हाल इसे समझने के लिए यह पर्याप्त होगा कि साल २००६ में प्रधानमंत्री के दौरे के बाद विदर्भ क्षेत्र में पांच हजार पांच सौ से अधिक किसानों ने आत्महत्या की. इनमें से अधिकांश किसानों ने अपने सुसाईड नोट में अपनी आत्महत्या के लिए सीधे प्रधानमंत्री और राज्य के मुख्यमंत्री को जिम्मेदार ठहराया है.
आप ने अभी हाल मे ही सुना या पढा होगा कि देश के किसानों का कर्ज सरकार की तरफ़ से माफ़ कर दिया गया इस् कर्ज माफ़ी के लिए सरकार को कुल ६०.००० करोड़ रूपये का इंतजाम करना पडा इसको लेकर उद्योग जगत मे हाय तौबा मच गई यह कहा जाने लगा कि बैंक कंगाल हो जायेगे, किसानों पर की गई सरकारी दरियादिली के कारण देश की अर्थ व्यवस्था चरमरा जायेगी । आप को बता दें कि इन हाय तौबा मचाने वाले उद्योग जगत के लोगों द्वारा चलाई जा रही कंपनियों के आय पर सरकार ने इतनी छुट दे रक्खी है कि जितना राजस्व वसूल होता है उसका आधा छुट मे निकल जाता है वर्ष २००७-०८ मे केंद्रीय बजट के अनुसार यही उद्योग जगत सरकारी खजाने का २,३५,१९१ करोड़ रुपये डकार गया उसपर तुर्रा यह कि सरकारी नुमाइंदो ने इसे राजस्व की हानि नाम दिया अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारी खजाने से किसानों को साठ हजार करोड़ रूपये कर्ज माफ़ी के लिए दिया गया और उद्योग जगत के लोग सरकारी खजाने से दो लाख पैतीस हजार एक सौ इक्यान्बे करोड़ रूपये हजम किए । सरकार ने किसानों को दी गई राहत का जोर शोर से प्रचार किया और उद्योग जगत द्वारा हजम किए गए रकम के बारे मे कही भी चर्चा नही हुई ।
अब आइये हम आप को बताते है की किसानों को सरकार द्वारा दिया गया ६०,००० करोड़ रुपया आखिर जाएगा कहाँ । सरकार का यह किसान प्रेम दरसल वित्तीय संस्थाओं के दबाव मे उठाया गया कदम है बैंकों, कोआपरेटिव सोसाइटियों और अन्य वित्तीय संस्थानों का लगभग ३०,००० करोड़ रूपया ऐसा बकाया है जो एनपीए (नान परफार्मिंग एसेट) की श्रेणी में है। रिजर्व बैंक कहता है कि दो फसल चक्रों के बाद भी अगर खेती के लिए गये लोन का पैसा वापस नहीं मिलता है तो बैंक उस रकम को एनपीए घोषित कर सकते हैं देश के किसानों पर इस समय ३ लाख करोड़ से भी अधिक का कर्ज है। इसमें यह ३०.००० करोड़ की रकम बैंकों का एनपीए है. सरकार ने जो पैकेज घोषित किया है उससे बैंको को वह वसूली हो जाएगी जिसे वे अपना डूबा धन मान चुके थे. किसान की जान छूटेगी. क्योंकि अब उसको वसूली की धमकी नहीं आयेगी. लेकिन क्या किसानों को वसूली की धमकी मिलनी चाहिए जबकि रिजर्व बैंक खुद कहता है कि पैदावार न होने के कारण अगर किसान कर्ज नहीं दे सकता तो उस रकम को एनपीए मान लिया जाए. इसका मतलब यह है कि बैंक भागते भूत की लंगोटी की तर्ज पर जो कुछ रकम वसूल हो जाए उसे वसूल करना चाहते हैं ।
किसानों के प्रति राज्य सरकारों रवैया क्या है आपको उत्तर प्रदेश के बुन्देल खंड के ३०० किसानों के ऊपर इसलिए यू पी सरकार एफ आई आर करवा देती है क्योकि वे भूगर्भ से पानी निकाल कर अपने खेतों की सिंचाई करने का साहस किया हमारे देश की सरकारें पूंजीपतियों को नदियाँ और बडे बडे जलस्रोत सौप देती है और वे उन जल स्रोतों के उस पानी को जो प्रकृति ने मुफ्त मे दिया है उसे १२ रूपये लीटर मिनरल वाटर के नाम से बेच कर भारी मुनाफा कमा रहे है । भारत मे आबादी का सत्तर फीसदी हिस्सा गांव मे रहता है खेती से जुड़ा हुआ है और देश में ७० फीसदी किसानों के पास आधा हेक्टेयर से कम भूमि है। एक हेक्टेयर में सकल कृषि उपज का मूल्य ३०,००० रु। अनुमानित है। अत: लगभग तीन चौथाई किसान परिवार १५,००० रु. वार्षिक आमदनी पर जीवन यापन कर रहे हैं। गरीबी रेखा २१,००० रुपए मानी गई है। यानि स्पष्ट है कि ये तीन चौथाई किसान किसान नही बल्कि कृषि मजदुर है और अब तो इनकी जमीन को भी उद्योग जगत पैसे की ताकत से इनसे छीन लेना चाहता है इस् कयावत मे सरकार भी सामिल है ।
विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) और विशेष कृषि आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना की घोषणा के बाद इस प्रवृति को अधिक बल मिला है। विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना, अवासीय परिसरों के निर्माण, कृषि फार्मों की स्थापना, भूमि बैंकों की स्थापना, आवासीय परिसरों के निर्माण, कृषि फार्मों की स्थापना, भूमि बैंकों की स्थापना, सड़क निर्माण आदि के लिये व्यावसायिक घराने एवं कम्पनियाँ लाखों एकड़ भूमि खरीदने को आतुर हैं। रिलायंस इन्डस्ट्रीज, टाटा समूह, बाबा कलयानी, सहारा, महिन्द्रा ग्रुप, अंसल, इन्फोसिस, इंडिया बुल्स आदि नगरों में या उसके निकट बड़े-बड़े भू-भाग खरीदने को आतुर हैं। टाटा समूह ने भारत में कहीं भी ३ एकड़ से २५००० एकड़ तक भूमि निजी स्वामियों से खरीदने का विज्ञापन दिया है आज हमारी सरकारों द्वारा किसानों के प्रति जो नीति अपनाई जा रही है वो बर्ड फ्लू के समय मुर्गियों के साथ अपनाई गई नीति के समान ही है ।