अमृत सिंह भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बेटी है. उन्होंने एक किताब लिखी है जिसमें अमरीका के बुश प्रशासन को सीधे तौर पर क़ैदियों को प्रताड़ित करने का ज़िम्मेदार ठहराया गया है. इस किताब की ख़ास बात यह है कि इसमें जो भी आरोप लगाए गए हैं उनके सबूत ख़ुद अमरीकी सरकार के दस्तावेज़ों के आधार पर पेश किए गए हैं. इस पुस्तक में पिछले कई सालों में अमरीकी हिरासत में लिए गए क़ैदियों को प्रताड़ित किए जाने का लेखा-जोखा है. एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ़ टॉर्चर नाम की इस किताब में कहा गया है कि ख़ुद बुश प्रशासन के ही आला अफ़सरों ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए क़ैदियों को प्रताड़ित करने के निर्देश दिए थे. अमृत सिंह और एसीएलयू के ही दूसरे वकील जमील जाफ़र ने मिलकर यह किताब लिखी है. यह दोनों ही वकील एसीएलयू की ओर से मानवाधिकार के विभिन्न मामलों में अमरीकी सरकार के खिलाफ़ मुक़दमे लड़ते रहे हैं.
"बुश प्रशासन जनतंत्र और मानवाधिकार के प्रति प्रतिबद्धता की क़सम खाता है लेकिन ये दस्तावेज़ दिखाते हैं कि इस प्रशासन ने क़ैदियों के साथ मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले प्रताड़ना के विभिन्न तरीक़े अपनाए हैं. और इस किताब का मक़सद यही है कि सरकारी दस्तावेज़ों के ज़रिए ही हम सच्चाई अधिक से अधिक लोगों के सामने रखें"
इस नई किताब में कहा गया है कि बुश प्रशासन के यह कहने के बावजूद कि कैदियों को प्रताड़ित किए जाने के छिटपुट मामले ही हुए हैं, उसी के सरकारी दस्तावेज़ दूसरी ही कहानी कहते हैं। अमृत सिंह कहती हैं, "एक दस्तावेज़ जिसको अलबर्टो गोंज़ालेज़ ने लिखा था उसमें कहा गया है कि चूँकि अमरीका आतंकवाद से जूझ रहा है इसलिए जिनेवा कन्वेंशन के हिसाब से काम करना ज़रूरी नहीं है। और जो क़ैदी अमरीका ने पकड़े हैं उन पर जिनेवा कन्वेंशन के नियम लागू नहीं होते।" किताब के मुताबिक प्रताड़ना के मामले व्यापक पैमाने पर सामने आए हैं जिनमें सिर्फ़ इराक की अबू ग़रेब जेल, अफ़ग़ानिस्तान और ग्वांतानामो बे ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों की जेलों में क़ैदियों के साथ दुर्व्यहवार किया गया। अमृत सिंह का कहना है कि अगर अबू ग़रेब जेल की तस्वीरें सामने न आतीं तो क़ैदियों को यातनाएँ देने और प्रताड़ित करने के बारे में अंतरराष्ट्रीय सुमदाय को जानकारी न मिलती. अमृत सिंह का कहना है, "हैरत की बात यह थी कि एक मामले में तो कुछ एफ़बीआई के एजेंटों ने सैनिकों की इन कार्रवाई को देखकर कहा भी कि इस तरह प्रताड़ना देना ग़ैरक़ानूनी है, अनैतिक है और बेमतलब है. लेकिन यातनाएँ दी जाती रहीं. इस तरह बुश प्रशासन का सीधे तौर पर इस मामले में हाथ नज़र आता है." कुल 456 पन्नों की इस किताब में कई जेलों में क़ैदियों को तरह-तरह से यातनाएँ दिए जाने के मामलों को विस्तार से छापा गया है. एक लाख से ज़्यादा सरकारी दस्तावेज़ों का इस्तेमाल इस किताब में किया गया है जिनके आधार पर प्रताड़ना के इन मामलों में बुश प्रशासन की नीतियों को ज़िम्मेदार ठहराया गया है. जिन दस्तावेज़ों का इस्तेमाल इस किताब में किया गया है उनमें से करीब 350 दस्तावेज़ तो असली शक्ल में हू-ब-हू वैसे ही छापे गए है .
"बुश प्रशासन जनतंत्र और मानवाधिकार के प्रति प्रतिबद्धता की क़सम खाता है लेकिन ये दस्तावेज़ दिखाते हैं कि इस प्रशासन ने क़ैदियों के साथ मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले प्रताड़ना के विभिन्न तरीक़े अपनाए हैं. और इस किताब का मक़सद यही है कि सरकारी दस्तावेज़ों के ज़रिए ही हम सच्चाई अधिक से अधिक लोगों के सामने रखें"
इस नई किताब में कहा गया है कि बुश प्रशासन के यह कहने के बावजूद कि कैदियों को प्रताड़ित किए जाने के छिटपुट मामले ही हुए हैं, उसी के सरकारी दस्तावेज़ दूसरी ही कहानी कहते हैं। अमृत सिंह कहती हैं, "एक दस्तावेज़ जिसको अलबर्टो गोंज़ालेज़ ने लिखा था उसमें कहा गया है कि चूँकि अमरीका आतंकवाद से जूझ रहा है इसलिए जिनेवा कन्वेंशन के हिसाब से काम करना ज़रूरी नहीं है। और जो क़ैदी अमरीका ने पकड़े हैं उन पर जिनेवा कन्वेंशन के नियम लागू नहीं होते।" किताब के मुताबिक प्रताड़ना के मामले व्यापक पैमाने पर सामने आए हैं जिनमें सिर्फ़ इराक की अबू ग़रेब जेल, अफ़ग़ानिस्तान और ग्वांतानामो बे ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों की जेलों में क़ैदियों के साथ दुर्व्यहवार किया गया। अमृत सिंह का कहना है कि अगर अबू ग़रेब जेल की तस्वीरें सामने न आतीं तो क़ैदियों को यातनाएँ देने और प्रताड़ित करने के बारे में अंतरराष्ट्रीय सुमदाय को जानकारी न मिलती. अमृत सिंह का कहना है, "हैरत की बात यह थी कि एक मामले में तो कुछ एफ़बीआई के एजेंटों ने सैनिकों की इन कार्रवाई को देखकर कहा भी कि इस तरह प्रताड़ना देना ग़ैरक़ानूनी है, अनैतिक है और बेमतलब है. लेकिन यातनाएँ दी जाती रहीं. इस तरह बुश प्रशासन का सीधे तौर पर इस मामले में हाथ नज़र आता है." कुल 456 पन्नों की इस किताब में कई जेलों में क़ैदियों को तरह-तरह से यातनाएँ दिए जाने के मामलों को विस्तार से छापा गया है. एक लाख से ज़्यादा सरकारी दस्तावेज़ों का इस्तेमाल इस किताब में किया गया है जिनके आधार पर प्रताड़ना के इन मामलों में बुश प्रशासन की नीतियों को ज़िम्मेदार ठहराया गया है. जिन दस्तावेज़ों का इस्तेमाल इस किताब में किया गया है उनमें से करीब 350 दस्तावेज़ तो असली शक्ल में हू-ब-हू वैसे ही छापे गए है .
इन सरकारी दस्तावेज़ों में बुश प्रशासन के निर्देशों की प्रतियाँ, मुर्दा क़ैदियों के पंचनामों की रिपोर्टें, अमरीकी जांच संस्था एफ़बीआई के ईमेल और सरकारी जाँच रिपोर्टें भी शामिल हैं। किताब में प्रयोग किए गए यह दस्तावेज़ एसीएलयू संस्था ने सूचना के अधिकार संबंधित क़ानून के ज़रिए अमरीकी सरकार से ही हासिल किए थे। इस पुस्तक में हज़ारों की संख्या में इन दस्तावेज़ों के सहारे ही कैदियों को यातनाएँ देने के मामलों को सीधे बुश प्रशासन के उच्च अधिकारियों औऱ प्रशासन की नीतियों से जोड़ा गया है। अमृत सिंह और जमील जाफ़र ने किताब में लिखा है कि क़ैदियों के साथ बदसलूकी बुश प्रशासन की नीतियों के बावजूद नहीं बल्कि नीतियों के चलते ही की गई। उनका कहना है कि इस मामले में अमरीकी सेना के आला अप़सरों के साथ-साथ प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल थे। कुछ सरकारी जाँच एजेंसियों के एजेंट अपनी रिपोर्टों में कैदियों को प्रताड़ित करने की बात लिख कर अधिकारियों को भेजते भी थे लेकिन उनपर कोई अमल नहीं होता था। कैदियों को यातनाएँ दिए जाने का सिलसिला जारी रहा और उसके लिए उच्च अधिकारियों की हिमायत भी जारी रही। जिन आला अफ़सरों के खुलकर नाम लिए गए हैं उनमें पूर्व अमरीकी रक्षा मंत्री डोनल्ड रम्सफ़ेल्ड, अमरीकी सेना के जनरल माइकल डन्लेवी, मेजर जनरल जेफ़री मिलर और रक्षा मंत्रालय के अन्य कई उच्च अधिकारियों के नाम भी शामिल हैं। किताब में लिखा गया है, "बुश प्रशासन जनतंत्र और मानवाधिकार के प्रति कटिबद्वता की कसम खाता है लेकिन ये दस्तावेज़ दिखाते हैं कि इस प्रशासन ने क़ैदियों के साथ मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले प्रताड़ना के विभिन्न तरीक़े अपनाए हैं। और इस किताब का मक़सद यही है कि सरकारी दस्तावेज़ों के ज़रिए ही हम सच्चाई अधिक से अधिक लोगों के सामने रखें।" क़ैदियों के साथ बदसलूकी के मामलों में बुश प्रशासन की जांच से भी अमृत सिंह संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि अमरीकी कांग्रेस को चाहिए कि वह इस सारे मामले की गहन जाँच कराए और दोषियों को सज़ा दिलवाए।