मानव अधिकार के हनन में लगा महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग---------
वर्ष १९९६ में जब आल इंडिया ह्यूमन राइट्स एंड सिटीझन आफ्शन नामक संस्था की नीव रखी तो उस समय संस्था के उद्देश्यों में महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग की गठन के मांग को सबसे ऊपर रखा गया था । आयोग के गठन की मांग को लेकर संस्था ने वर्ष १९९६ से लेकर जब तक आयोग का गठन नही हो गया तब तक संघर्ष किया, रैलियां की, जनसभाए की, धरने-प्रदर्शन किए राज्य स्तरिय मानव अधिकार आयोग के गठन के लिए ज्ञापन दिए किन्तु यह सब करते समय हमे यह मालूम न था कि महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग का गठन हो जाने के पश्चात यह मानव अधिकार आयोग हम जैसे मानव अधिकारों के क्षेत्र में कार्य कर रहे मानव अधिकार कार्यकर्ताओं तथा स्वयंसेवी संगठनों एवं संस्थाओं को कुचलना ही अपना मुख्य उद्देश्य बना लेगा ।इस् विषय का हमे तब पता चला जब महाराष्ट्र के मंत्रालय में मैं उपस्थित था वहाँ मौजूद कुछ सचिव स्तर के अधिकारियों द्वारा महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग को "मलाईदार महकमा" के नाम से संबोधित करते हुए सुना तो हमे यह आभास हो गया कि किस तरह महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है । सरकारी महकमे मसलन पुलिस, महसूल, परिवहन, एवं महानगरपालिका आदि के अधिकारियों के विरुद्ध आयोग में आयी हुई शिकायतों को रफा-दफा करने हेतु सौदे किये जाने लगे है । आम आदमी जो यह समझता था कि कही न्याय मिले न मिले लेकिन मानव अधिकार आयोग में न्याय अवश्य मिलेगा आयोग द्वारा उनके इस् विश्वास को छला जाने लगा । आम आदमी को तो यह पता ही नही था कि उसके द्वारा कि गयी शिकायत मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम १९९३ के तहत सुनवाई के योग्य है या नही इसका लाभ लेकर आयोग के सदस्यों ने उन सभी शिकायतों को यह कह कर खारिज करना शुरू कर दिया कि यह शिकायत मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम १९९३ के तहत सुनवाई के योग्य नही है । और तो और पुलिस द्वारा व्यवसायी पर मकोका लगाए जाने के मामले को यह कह कर खारिज कर दिया गया कि यह दीवानी का मामला है । जिन मामलों में वे ऐसा नही कर पाए उन मामलों में शिकायतकर्ताओं को यह कह कर शिकायत पीछे लेने हेतु दबाव डाला जाने लगा कि पुलिस से अथवा सरकारी अधिकारियों से दुश्मनी मत मोल लो शिकायत वापस लेलो नही तो तुम्हे आगे काफी तकलीफ आयेगी, इतना ही नहीं आयोग द्वारा बिचौलिए की भूमिका निभाते हुए पुलिस अधिकारियों से पीड़ित को पैसे दिलाकर मामले को रफा-दफा किये जाने की बात होने लगी है, तथा शिकायतकर्ताओं को बिना सूचित किये सुनवाई बंद की जाने लगी ।मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम १९९३ में यह कलमबद्ध किया गया है कि मानव अधिकारों के क्षेत्र में काम करने वाले स्वयंसेवी संगठनो, संस्थाओं को मानव अधिकार आयोगों द्वारा प्रोत्साहित किया जायेगा किन्तु महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग द्वारा स्थिति उलट दी गयी । जब कोई स्वयंसेवी संगठन जो कि मानव अधिकारों के क्षेत्र में काम कर रहे है उनके द्वारा रखे गए सेमिनार में वक्ता के रूप में मौजूद आयोग के सदस्य या कर्मचारी मसलन मानव अधिकार हनन के मामलों कि जांच के लिए आयोग में नियुक्त पुलिस अधिकारी अपने भाषण में यह कहना शुरू कर दिया है कि मानव अधिकार आयोग का किसी स्वयंसेवी संगठन या संस्था से कोई संबंध नहीं है यहाँ यह विचारणीय है कि अगर ये आयोग जनसंगठनो या संस्थाओं से संबंधों को नकार रहे है तो क्या वे आम जनता के मानव अधिकारों के लिए कार्य करेगे ? इसमें संशय है । आयोग के सदस्य और कर्मचारीगण स्वयम यह साबित करना शुरू कर दिया है कि "मानव अधिकार जो कि आम नागरिक का मुद्दा था उसे व्यवस्था द्वारा हड़प लिया गया है" उन्होने मानव अधिकार के क्षेत्र में काम करने वाले गैर सरकारी संगठनो तथा संस्थाओं पर हमले तेज कर दिए है उनके इन हमलों से पता चलता है कि मानव अधिकार आयोगों को ऐसे गैर सरकारी संगठन या संस्था जो कि मानव अधिकारों के क्षेत्र में कार्यरत है और आयोग के क्रियाकलापों पर नजर रख सकते है उनके द्वारा गलत किये जाने पर ऊँगली भी उठा सकते है ।
दु:ख की बात यह है की महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग इससे भी दो कदम आगे जाकर मानव अधिकारों के क्षेत्र में पिछले १५ वर्षों से कार्यरत मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुलिस के माध्यम से झूठे एफ.आई.आर. दर्ज कराने शुरू कर दिए है तथा मानव अधिकार के क्षेत्र में काम करने वाले संगठनों की जांच के नाम पर संगठनों, संस्थाओं के कार्यकर्ताओं को प्रताडित करना शुरू कर दिया है । यह सब आयोग में बैठे आयोग के सदस्यों एवं आयोग के जांच विभाग में बैठाये गए पुलिस कर्मचारियों के इशारे पर हो रहा है आयोग के सदस्य के द्वारा तो यहाँ तक कहते सुना गया है कि ऐसे सभी स्वयं सेवी संगठनों को बंद कराना है जो मानव अधिकारों के क्षेत्र में काम कर रहे है । प्रश्न यह है कि आखिर महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग की मंशा क्या है मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के विरुद्ध झूठे एफ।आई.आर. दर्ज कराने से लेकर, जांच के नाम पर मानव अधिकार संगठनों को प्रताडित करना क्या यही मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम १९९३ का उद्देश्य था, क्या संयुक्त राष्ट्रसंघ के मानव अधिकार विश्वघोषणा का उद्देश्य यही है ? जो महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग का उद्देश्य बनता नजर आ रहा है जब रक्षक भक्षक बन जाये तो उसके विरुद्ध उठ खडे हो जाना नितांत आवश्यक हो जाता है । ब्यवस्था की खामियों से संघर्ष करना ही मानव अधिकार आंदोलनों का पहला चरण है अब वह समय आ गया है जब हम सभी मानव अधिकारों के क्षेत्र में काम करने वाले स्वयंसेवी संगठनो एवं संस्थाओं तथा कार्यकर्ता एकजुट हों और महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग द्वारा भारी पैमाने पर किये जा रहे मानव अधिकार हनन के विरुद्ध संघर्ष शुरू करे ।
वर्ष १९९६ में जब आल इंडिया ह्यूमन राइट्स एंड सिटीझन आफ्शन नामक संस्था की नीव रखी तो उस समय संस्था के उद्देश्यों में महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग की गठन के मांग को सबसे ऊपर रखा गया था । आयोग के गठन की मांग को लेकर संस्था ने वर्ष १९९६ से लेकर जब तक आयोग का गठन नही हो गया तब तक संघर्ष किया, रैलियां की, जनसभाए की, धरने-प्रदर्शन किए राज्य स्तरिय मानव अधिकार आयोग के गठन के लिए ज्ञापन दिए किन्तु यह सब करते समय हमे यह मालूम न था कि महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग का गठन हो जाने के पश्चात यह मानव अधिकार आयोग हम जैसे मानव अधिकारों के क्षेत्र में कार्य कर रहे मानव अधिकार कार्यकर्ताओं तथा स्वयंसेवी संगठनों एवं संस्थाओं को कुचलना ही अपना मुख्य उद्देश्य बना लेगा ।इस् विषय का हमे तब पता चला जब महाराष्ट्र के मंत्रालय में मैं उपस्थित था वहाँ मौजूद कुछ सचिव स्तर के अधिकारियों द्वारा महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग को "मलाईदार महकमा" के नाम से संबोधित करते हुए सुना तो हमे यह आभास हो गया कि किस तरह महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है । सरकारी महकमे मसलन पुलिस, महसूल, परिवहन, एवं महानगरपालिका आदि के अधिकारियों के विरुद्ध आयोग में आयी हुई शिकायतों को रफा-दफा करने हेतु सौदे किये जाने लगे है । आम आदमी जो यह समझता था कि कही न्याय मिले न मिले लेकिन मानव अधिकार आयोग में न्याय अवश्य मिलेगा आयोग द्वारा उनके इस् विश्वास को छला जाने लगा । आम आदमी को तो यह पता ही नही था कि उसके द्वारा कि गयी शिकायत मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम १९९३ के तहत सुनवाई के योग्य है या नही इसका लाभ लेकर आयोग के सदस्यों ने उन सभी शिकायतों को यह कह कर खारिज करना शुरू कर दिया कि यह शिकायत मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम १९९३ के तहत सुनवाई के योग्य नही है । और तो और पुलिस द्वारा व्यवसायी पर मकोका लगाए जाने के मामले को यह कह कर खारिज कर दिया गया कि यह दीवानी का मामला है । जिन मामलों में वे ऐसा नही कर पाए उन मामलों में शिकायतकर्ताओं को यह कह कर शिकायत पीछे लेने हेतु दबाव डाला जाने लगा कि पुलिस से अथवा सरकारी अधिकारियों से दुश्मनी मत मोल लो शिकायत वापस लेलो नही तो तुम्हे आगे काफी तकलीफ आयेगी, इतना ही नहीं आयोग द्वारा बिचौलिए की भूमिका निभाते हुए पुलिस अधिकारियों से पीड़ित को पैसे दिलाकर मामले को रफा-दफा किये जाने की बात होने लगी है, तथा शिकायतकर्ताओं को बिना सूचित किये सुनवाई बंद की जाने लगी ।मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम १९९३ में यह कलमबद्ध किया गया है कि मानव अधिकारों के क्षेत्र में काम करने वाले स्वयंसेवी संगठनो, संस्थाओं को मानव अधिकार आयोगों द्वारा प्रोत्साहित किया जायेगा किन्तु महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग द्वारा स्थिति उलट दी गयी । जब कोई स्वयंसेवी संगठन जो कि मानव अधिकारों के क्षेत्र में काम कर रहे है उनके द्वारा रखे गए सेमिनार में वक्ता के रूप में मौजूद आयोग के सदस्य या कर्मचारी मसलन मानव अधिकार हनन के मामलों कि जांच के लिए आयोग में नियुक्त पुलिस अधिकारी अपने भाषण में यह कहना शुरू कर दिया है कि मानव अधिकार आयोग का किसी स्वयंसेवी संगठन या संस्था से कोई संबंध नहीं है यहाँ यह विचारणीय है कि अगर ये आयोग जनसंगठनो या संस्थाओं से संबंधों को नकार रहे है तो क्या वे आम जनता के मानव अधिकारों के लिए कार्य करेगे ? इसमें संशय है । आयोग के सदस्य और कर्मचारीगण स्वयम यह साबित करना शुरू कर दिया है कि "मानव अधिकार जो कि आम नागरिक का मुद्दा था उसे व्यवस्था द्वारा हड़प लिया गया है" उन्होने मानव अधिकार के क्षेत्र में काम करने वाले गैर सरकारी संगठनो तथा संस्थाओं पर हमले तेज कर दिए है उनके इन हमलों से पता चलता है कि मानव अधिकार आयोगों को ऐसे गैर सरकारी संगठन या संस्था जो कि मानव अधिकारों के क्षेत्र में कार्यरत है और आयोग के क्रियाकलापों पर नजर रख सकते है उनके द्वारा गलत किये जाने पर ऊँगली भी उठा सकते है ।
दु:ख की बात यह है की महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग इससे भी दो कदम आगे जाकर मानव अधिकारों के क्षेत्र में पिछले १५ वर्षों से कार्यरत मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुलिस के माध्यम से झूठे एफ.आई.आर. दर्ज कराने शुरू कर दिए है तथा मानव अधिकार के क्षेत्र में काम करने वाले संगठनों की जांच के नाम पर संगठनों, संस्थाओं के कार्यकर्ताओं को प्रताडित करना शुरू कर दिया है । यह सब आयोग में बैठे आयोग के सदस्यों एवं आयोग के जांच विभाग में बैठाये गए पुलिस कर्मचारियों के इशारे पर हो रहा है आयोग के सदस्य के द्वारा तो यहाँ तक कहते सुना गया है कि ऐसे सभी स्वयं सेवी संगठनों को बंद कराना है जो मानव अधिकारों के क्षेत्र में काम कर रहे है । प्रश्न यह है कि आखिर महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग की मंशा क्या है मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के विरुद्ध झूठे एफ।आई.आर. दर्ज कराने से लेकर, जांच के नाम पर मानव अधिकार संगठनों को प्रताडित करना क्या यही मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम १९९३ का उद्देश्य था, क्या संयुक्त राष्ट्रसंघ के मानव अधिकार विश्वघोषणा का उद्देश्य यही है ? जो महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग का उद्देश्य बनता नजर आ रहा है जब रक्षक भक्षक बन जाये तो उसके विरुद्ध उठ खडे हो जाना नितांत आवश्यक हो जाता है । ब्यवस्था की खामियों से संघर्ष करना ही मानव अधिकार आंदोलनों का पहला चरण है अब वह समय आ गया है जब हम सभी मानव अधिकारों के क्षेत्र में काम करने वाले स्वयंसेवी संगठनो एवं संस्थाओं तथा कार्यकर्ता एकजुट हों और महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग द्वारा भारी पैमाने पर किये जा रहे मानव अधिकार हनन के विरुद्ध संघर्ष शुरू करे ।