सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

विरोध को दबाने की सरकारी मुहिम


देश में सत्ताधारी लोग और सरकारें नागरिक समाज के लोगों, सरकारी अधिकारियों और विरोधी दल के कार्यकर्ताओं को डरा-धमका रहे हैं. तथा उनके खिलाफ झूठे मुकद्दमें कायम करने में मसगूल हैं और ये काम बड़े ही सुनियोजित तरीक़े से किया जा रहा है. वैसे तो विरोधियों को ठिकाने लगाने का सत्ताधारियों का काफी पुराना रिकार्ड रहा है. लेकिन पिछले कुछ दिनों से खुलेआम और बड़े ही बेशर्म तरीके से सत्ताधारी अपनें विरोधियों को कुचलने पर आमादा हैं. इतना ही नहीं जब कोई सामाजिक कार्यकर्ता या समाजसेवी एक पार्टी के विरुद्ध बोलता है तो वह पार्टी तत्काल उक्त समाजसेवी को विरोधी पार्टी के एजेंट के रूप में प्रचारित करने लगती हैं. मोटे तौर पर यह दिखाई दे रहा है कि देश में जितनी पार्टियों की सरकारें सत्ता पर काबिज हैं लगभग सभी सरकारें अपनें विरोधियों के दमनचक्र को पुरजोर तरीके से चला रहीं हैं.

इनके इस रवैये से देश में लोकतंत्र और मानवाधिकारों को गंभीर खतरा पैदा हो गया है. इस दमनचक्र के ताजा शिकार जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रहमण्यम स्वामी, गुजरात के आईपीएस संजीव भट्ट, मध्यप्रदेश इंदौर से प्रकाशित सांध्य दैनिक प्रभात किरण का मुस्सविर नाम से कार्टून बनाने वाले पत्रकार कार्टूनिष्ट हरीश यादव, बिहार विधान परिषद के कर्मचारी कवि मुसाफिर बैठा और युवा आलोचक अरुण नारायण तथा आदिवासी हकों के सपने देखने वाला लिंगाराम सहित अन्ना हजारे और बाबा रामदेव शामिल हैं. चाहे वह यूपीए के सरकार हो अथवा एनडीए की इसे संयोग ही कहेंगे कि सभी सत्ताधारियों का अपने खिलाफ आवाज उठाने वालों के विरुद्ध दमनचक्र का तरीका एक ही है.

जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रहमण्यम स्वामी के खिलाफ मामला दर्ज किया है यह मामला दिल्ली स्थित नेहरु प्लेस के क्राईम ब्रांच नें दर्ज किया है. बताया या जा रहा है कि बीते जुलाई महीनें में सुब्रहमण्यम स्वामी नें एक अखबार में मुसलमानों के संबंध में एक लेख लिखा था. जिसके कारण समुदाय विशेष की भावनाओं को ठेस पहुंची थी. इसी मामले को लेकर अगस्त महीने में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग द्वारा पटियाला हाउस कोर्ट में असगर खान नामक एक वकील द्वारा दर्ज कराई गई थी. पुलिस के मुताबिक उसी शिकायत के आधार पर सेक्शन १५३-अ, १५३-ब, और २९५-अ आदि धाराओं में मुकद्दमा दर्ज कराया गया है पुलिस के अनुसार पुलिस नें सीधे इस शिकायत को दर्ज नहीं की है. अगर आपको पता होगा तो बता दें कि १ लाख ७६ हजार करोड का २जी स्पेक्ट्रम घोटाले के मामले को सुब्रहमण्यम स्वामी द्वारा ही अदालत में ले जाया गया है. जिसके कारण घोटाले में तमाम लोगों के संलग्न होने के प्रमाण सामने आते जा रहे है २जी स्पेक्ट्रम घोटाले में ए. राजा, कनिमोझी, सिद्धार्थ बेहरा, गौतम दोषी, करीम मोरानी, शाहिद बलवा, राजीव अग्रवाल, आदि जेल की हवा खा रहे है इस घोटाले को लेकर कहा जाता है कि डीएमके के दयानिधि मारन पर भी तलवार लटक रही है. तथा इस मामले की आंच से कपिल सिब्बल और पी. चिदंबरम भी नहीं बच पाए हैं इतना ही नहीं सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला में उनका अगला खुलासा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को लेकर हैं. स्वामी ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि 2जी स्पेक्ट्रम मामले में पहले पूर्व टेलिकॉम मंत्री ए. राजा, डीएमके सांसद एम.के. कनिमोड़ी, पूर्व केंद्रीय मंत्री दयानिधि मारन और गृह मंत्री पी. चिदंबरम की भूमिकाओं का खुलासा कराने के बाद अब उनका अगला खुलासा रॉबर्ट वाड्रा को लेकर है. संभवतः सुब्रहमण्यम स्वामी की सत्ताधारियों के विरुद्ध इसी सक्रियता के कारण इनके ऊपर एफआईआर दर्ज किया गया लगता है.

गुजरात के आईपीएस संजीव भट्ट पर आरोप है कि एक कांस्टेबल के. डी. पंत को धमकाया और झूठे हलफनामे पर हस्ताक्षर करवाया. गुजरात पुलिस नें संजीव भट्ट को उक्त कांस्टेबल को धमकाने और झूठे हलफनामें पर हस्ताक्षर करवाने के आरोप में घाटलोदिया पुलिस थाने मे एक प्राथमिकी दर्ज कर उन्हें हिरासत में ले लिया है शिकायतकर्ता कांस्टेबल नें आरोप लगाया है कि संजीव भट्ट नें उसे धमकाते हुए २७ फरवरी २००२ को गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बुलाई गई उच्चस्तरीय बैठक में गलत हलफनामें पर हस्ताक्षर करवाया. गुजरात के पुलिस महानिदेशक चितरंजन सिंह का कहना है कि संजीव भट्ट के विरुद्ध दर्ज प्राथमिकी के संबंध में भट्ट को पूछताछ के लिये बुलाया गया था. उनका बयान दर्ज किया जायेगा. वर्ष 2002 के दंगों के दौरान भट्ट के अधीन काम कर चुके कांस्टेबल के. डी. पंत ने प्राथमिकी दर्ज कराते हुए आरोप लगाया था कि भट्ट ने एक सरकारी कर्मचारी यानी उन्हें धमकाया, सबूतों को गढ़ा और गलत तरीके से उन पर दबाव बनाया. पंत ने अपनी प्राथमिकी में आरोप लगाया कि उन्हें भट्ट ने 16 जून को फोन किया और उनसे किसी काम के सिलसिले में घर पर आने को कहा. जब पंत भट्ट के आवास पर पहुंचे तो आईपीएस अधिकारी ने उन्हें बताया कि मुकदमे में मदद करने के लिये उच्चतम न्यायालय की ओर से नियुक्त वकील 18 जून को आयेंगे और उन्हें बयान दर्ज कराने के सिलसिले में उनसे मुलाकात करनी होगी. पंत का आरोप है कि भट्ट ने उनसे कहा कि वकील को बताया जाये कि विशेष जांच दल (एसआईटी) ने उनका बयान जबर्दस्ती दर्ज किया था. जब पंत ने इस बात का विरोध किया तो भट्ट ने कथित तौर पर उन्हें धमकी दी. भट्ट ने पंत से कहा कि अगर वह उनके कहे अनुसार काम करते हैं तो इसमें कोई चिंता की बात नहीं है. पुलिस कांस्टेबल पंत का यह भी दावा है कि भट्ट उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अर्जुन मोधवाडिया के पास ले गये. कांग्रेस नेता ने भी पंत को आश्वासन दिया कि इसमें चिंता करने की बात नहीं है और उन्हें वही करना चाहिये जो भट्ट कह रहे हैं. मोधवाडिया से मिलने के बाद भट्ट पंत को गुजरात उच्च न्यायालय के निकट एक वकील और नोटरी के दफ्तर ले गये और उनसे दो हलफनामों पर हस्ताक्षर करवाये. ‘दरअसल भट्ट ने उच्चतम न्यायालय में दायर अपनें हलफनामे में आरोप लगाया है कि गोधराकांड के बाद गुजरात में हुए दंगों में मोदी की कथित तौर पर सहअपराधिता थी.’ यहाँ सवाल यह उठना स्वाभाविक है कि पुलिस कांस्टेबल पंत अगर एक आईपीएस अधिकारी के कहने से हलफनामे पर हस्ताक्षर कर सकता है तो एक मुख्यमंत्री के कहनें पर एक आएपीएस अधिकारी पर झूठे आरोप नहीं लगा सकता ?

मध्यप्रदेश इंदौर से प्रकाशित सांध्य दैनिक प्रभात किरण के पत्रकार कार्टूनिष्ट हरीश यादव जो कि मुस्सविर नाम से कार्टून बनाते हैं को गिरफ्तार कर लिया गया है. ज्ञात हो कि नरेंद्र मोदी के सद्भभावना अनशन के दौरान देश के अलग-अलग हिस्से से आये लोग अपने यहां के प्रतीक चिन्ह के तौर पर वस्तुएं मोदी को भेंट कर रहे थे. मोदी उन चीजों को स्वीकार कर रहे थे और ये चीजें मामूली होते हुए भी उस इलाके की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है. इसी दौरान एक सामान्य मुसलमान जो कि पिछले दो दिनों से इंतजार कर रहा था कि वो भी नरेंद्र मोदी को कुछ दे और उसने नरेंद्र मोदी को टोपी दे दी और पहनने का आग्रह किया. ये बहुत ही संवेदनशील और भावुक क्षण था और अगर वो उसे पहनते, तो संभव था कि मुसलमानों के बीच बहुत ही अलग किस्म का सकारात्मक संदेश जाता लेकिन नरेंद्र मोदी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया जिससे उनके छद्म सद्भावना अनसन की पोल खुल गई. इसी थीम को लेकर मुस्सविर नाम से बनाया गया कार्टून प्रभात किरण में २० सितंबर को छपा और इस मामले में मोदी के कहने पर मध्यप्रदेश सरकार नें धार्मिक भावनाये भडकाने के आरोप में मल्हारगंज थाने में हरीश यादव के खिलाफ आईपीसी के धारा– 295 ए के तहत मुकदमा दर्ज कर हरीश यादव उर्फ मुस्सविर को गिरफ्तार कर लिया. दरसल जिस चांद-सितारे को कार्टून में दिखाया गया है, उसकी व्याख्या इस्लाम धर्म के जानकार बेहतर कर सकते हैं? क्या इस धर्म में चांद-सितारे की उसी अर्थ में व्याख्या है, जिस अर्थ में मुस्सविर पर धार्मिक भावनाएं भड़काये जाने के लिए सजा दी गयी? ये सिर्फ और सिर्फ उस एक सामान्य मुसलमान की भावनाओं की अभिव्यक्ति है, जो कि नरेंद्र मोदी को टोपी भेंट में देना चाहता था. दरसल मुस्सिवर पर जो कानूनी कार्रवाई की गयी, वो शिवराज सिंह चौहान के आदेश पर की गयी, जिस समय वो चीन के दौरे पर थे. नरेंद्र मोदी ने यहां तक कहा कि आप इंदौर में मामला दर्ज करवाएं नहीं तो फिर अहमदाबाद में करवाया जाएगा. शिवराज नें मोदी के दबाव के कारण रातोंरात कार्रवाई की इस कार्रवाई को दरअसल इस लिए भी आनन्-फानन में अंजाम दिया गया क्योंकि गुजरात और मध्यप्रदेश दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार है.

कमोबेस यही स्थिती बिहार की भी है. वहां भी अपने विरुद्ध उठ रही हर आवाज को राजग सरकार क्रूरता से कुचल देनें पर आमादा है. और इन परिस्थितियों में राजग सरकार को आईना दिखाने में सक्षम लोग अथवा बुद्धिजीवी या तो आपसी राग-द्वेष डूबे हुए है या फिर जाति-बिरादरी के नाम पर बंटकर बिहार की तानाशाही सरकार और उसके कर्ताधर्ता के इस नंगे नाच को देखकर भी चुप हैं. दिनांक १६ सितंबर २०११ को बिहार विधान परिषद नें अपने दो कर्मचारियों को केवल इस लिए निलंबित कर दिया क्योकि वे फेसबुक पर परिषद के अधिकारियों असंवैधानिक भाषा का प्रयोग करते है तथा उनके बारे में ‘दीपक तले अँधेरा’ जैसी लोकोक्ति का इस्तेमाल करते हैं और लिखते हैं कि बिहार विधान परिषद जिसकी मै नौकरी करता हूँ वहां विधानों की धज्जियाँ उडाई जाती हैं. अरुण नारायण के निलंबन के लिए भी कुछ इसी तरह के बहाने गढे गए. हिन्दी फेसबुक पर कवी मुसाफिर बैठा अपनी बेबाक टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं. और अरुण नारायण नें पिछले एक महीने से फेसबुक पर अपना एकाउंट बनाया था. उपरोक्त टिप्पणियों का जिक्र इन दोनों को निलंबित करते हुए किया गया है. फेसबुक पर टिप्पणी करने के कारण संभवतः हिंदी प्रदेश का पहला उदाहरण है. मुसाफिर बैठा और अरुण नारायण ए दोनों हिंदी साहित्य की दुनिया के परिचित नाम हैं. मुसाफिर बैठा ‘हिंदी की दलित कहानी’ पर पीएचडी की है तथा अरुण नारायण का बिहार की पत्रकारिता पर एक महत्वपूर्ण शोधकार्य है. मुसाफिर और अरुण के निलंबन के तीन-चार महीने पहले बिहार विधान परिषद से उर्दू के कहानीकार सैयद जावेद हसन को नौकरी से निकाल दिया गया उनके ऊपर भी कुछ इसी तरह के आरोप लगाये गए थे. वस्तुतः इन तीनों लेखक कर्मचारियों का निलंबन, पत्रकारों को खरीद लेने के बाद बिहार सरकार द्वारा काबू में नहीं आने वाले लेखकों व पत्रकारों के विरुद्ध की गई है. बड़े अख़बारों और चैनलों को चांदी के जूते उपहार में देकर अपना पिट्ठू बना लेना तो बिहार सरकार के बस में है लेकिन अपनी मर्जी के मालिक और बिंदास लेखकों पर नकेल कसना राजग सरकार के लिए संभव नहीं हो रहा था परिणामस्वरूप इनको निलंबित किया गया.

ठीक यही कहानी आदिवासी हकों के सपने देखने वाला लिंगाराम के साथ भी दुहराई गयी उसे नक्सलियों का सहयोगी बताकर छत्तीसगढ़ पुलिस नें गिरफ्तार कर लिया. लिंगाराम के बारे में बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ स्थित दंतेवाडा के पूर्व डीआयजी कल्लूरी और एसपी अमरेश मिश्रा नें जबरन एसपीओ बनाने के लिए ४० दिन तक दंतेवाडा थाने के शौचालय में भूखा रखा था जिसे स्थानीय मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार नें छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से मुक्त कराया था. और मुक्त होने के बाद वह दिल्ली जाकर पत्रकारिता की पढाई करने लगा. उसी दौरान डीआयजी कल्लूरी और एसपी अमरेश मिश्रा नें एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा कि लिंगाराम कोडोपी कांग्रेसी नेता अशोक गौतम के घर हुए हमले का मास्टर माइंड है, लेकिन जब दिल्ली में शोर मचा कि लिंगाराम तो दिल्ली में है तो दंतेवाडा में कैसे हमला करेगा? तो तत्कालीन पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन नें कहा कि ए प्रेस विज्ञप्ति गलती से जारी हो गई थी. किन्तु अगर उस समय लिंगाराम छत्तीसगढ़ में रहा होता तो उसे नपने से कोई नहीं रोक सकता था. ! खैर गलती तो अक्सर प्रशासन से हो जाया करती है ! बहरहाल बताया जाता है कि दिल्ली से लिंगाराम अपना मिट्टी का घर बनाने गया था. वह अपने दादाजी के घर पर था कि कुछ सादे कपड़े में पुलिस वाले आकार उसे उठा ले गए और नक्सलियों को पैसा पहुँचाने के झूठे आरोप लगाकर उसे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया हाँ लिंगाराम का यह कसूर अवश्य है कि उसनें आदिवासियों के अधिकारों को शासन प्रशासन से मान्यता दिलवाने का सपना देखा.

इसी तरह अन्ना हजारे के जनलोकपाल लाने संबंधी अनसन को न होने देने के लिए उन्हें जेल में डालने से लेकर. रामलीला मैदान में काले धन के बारे में बाबा रामदेव सहित उनके सोये हुए समर्थकों पर आधी रात के समय दिल्ली पुलिस द्वारा किये गए लाठीचार्ज जिसमें अभी हाल में एक महिला की मौत हो गई को अंजाम देना कहाँ तक उचित है. क्या कारण है कि लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से सत्ता पर काबिज हुए लोग उसी लोकतंत्र को दरकिनार कर अचानक तानाशाह बनते जा रहे हैं अतः अब समय रहते देश के नीति-निर्धारकों को इस तथ्य पर गंभीर विचार करते हुए कि मौजूदा सरकारें जो कि अपने विरोधियों को सिर्फ कानून के दुरूपयोग और हिंसा से कुचलने पर आमादा हैं उन्हें रोकने के उपाय करने होंगे. अगर समय रहते ऐसा नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे पड़ोसी देशों की तरह हमारा भी नाम भी लोकतान्त्रिक स्तर पर (फेल) नाकाम राष्ट्रों में सुमार कर दिया जाएगा. नीतिगत विरोधियों के सम्मान की रक्षा भी सरकार का दायित्व है ये वही लोग हैं जो सरकार और शासन प्रशासन के जनविरोधी नीतियों का विरोध करते हुए उसमे व्यापक सुधार की मांग करते हैं. जो कि फौरी तौर पर भले ही सरकार और शासन प्रशासन के विरुद्ध दिखें लेकिन वस्तुतः वे दीर्घकालिक तौर पर सरकारों को अलोकप्रिय होने से बचाते हैं और उन्हें जन विरोधी फैसले लेने से रोककर आगामी चुनाओं में जनता को चेहरा दिखाने लायक बना देते हैं. किन्तु यही सरकारें दुर्भावनावश वस उन्हें प्रताड़ित करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने नहीं देती. अगर ये सभी विसलव्लोवर अपने-अपने कामों का बहिष्कार कर दें तो समाज की गति थम जाएगी. और यह देश निरंकुशता के भंवर में फंस जायेगा. यह माना कि अपने विरोधियों के दमन की मानसिकता जो कि सदियों से सत्ताधारियों के दिमाग में अपनी विक्षिप्तता के साथ घर कर गई हैं को एक झटके में हटा पाना आसान नहीं है, परतु यह काम असंभव भी नहीं है.

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