विकास बनाम पर्यावरण की संतुलित अवधारणा या पर्यावरण बनाम विकास की परंपरागत अवधारणा परस्पर विरोधाभाषी है । पहले तात्पर्य यह था कि या तो पर्यावरण अथवा विकास । किंतु आधुनिक समय में उपरोक्त अवधारणा सुसंगत नहीं है इस दुविधात्मक परिस्थिति का हल है "संभाव्य सुदृढ़ विकास" जो पर्यावरण के संवंध में सकारात्मक है "संभाव्य सुदृढ़ विकास" के अंतर्गत ही संपूर्णतया निर्धारित किया जा सकता है कि आथिक ढांचे के सभी विभागों के विकास के लिए क्या करना चाहिए, कैसे करना चाहिए, कब करना चाहिए, और क्यों करना चाहिए जो उचित और आवश्यक है ।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर "संभाव्य सुदृढ़ विकास" की व्याख्या का सर्वप्रथम उद्भव १९७२ में स्टोक होल्म उदघोषणा में हुआ था इसके पश्चात वर्ष १९८७ में विश्व पर्यावरण और विकास आयोग ( World Commission on Environment and Development) ने अपने रिपोर्ट में "संभाव्य सुदृढ़ विकास" की व्याख्या को प्रमाणित स्वरूप दिया था । तत्पश्चात विश्व पर्यावरण और विकास आयोग को समर्थन देते हुए, "सर्वमान्य और सर्वसामान्य भविष्य" नामक अपने रिपोर्ट में प्रकृति के लिए विश्व निधी ( World Wide Fund for Nature ) नें भी पृथ्वी के लिए देख-भाल ( Caring for the Eardh ) साथ में "संभाव्य सुदृढ़ विकास" ( Sustainable Development ) की अवधारणा को पुष्ट किया ।
जून १९९२ में, रियो-डी-जेनेरो में आयोजित पृथ्वी शिखर समिती नें " संभाव्य सुदृढ़ विकास" पर मोहर लगायी । साथ में समिती नें हस्ताक्षर द्वारा प्रस्ताओं को प्रमाणित करते हुए दो मुख्य लक्ष्य हासिल किए ।
(१) समिती नें जीवसृष्टि की विविधता का विस्तृत रिपोर्ट पेश किया । साथ ही
(२) वातावरण एवं पर्यावरण परिवर्तन पर अपने सघन विचार प्रकट किए ।
तत्पश्चात इन दस्तावेजों पर १५३ राष्ट्रों नें अपने हस्ताक्षर किए । साथ में समिती के प्रतिनिधि मंडल नें तीन महालेख भी सर्वानुमति से प्रकाशित किए (१) वन्य सिद्धांतों का विवरण (२) पर्यावरण नीति एवं विकास की भूमिका संवंधी सिद्धांतों की उदघोषणा (३) एजेंडा २१ इक्कीसवी सदी में पर्यावरण के हेतु क्या करना चाहिए उसके लिए रचनात्मक सूचनाये एवं निर्देश ।
" संभाव्य सुदृढ़ विकास" की व्याख्या का प्रारम्भ १९७२ में स्टोक-होल्म में हुआ था और इस विचारधारा नें अपना वास्तविक स्वरूप १९९२ में रियो-डी-जेनेरो में प्राप्त किया । मौजूदा समय में हम जानते है कि "संभाव्य सुदृढ़ विकास" के अंतर्गत पर्यावरण और विकास की परस्पर मर्यादा निभाते हुए मानव जीवन के सर्वांगीण विकास हेतु, अज्ञान के कारण पैदा हुई गरीबी का निर्मूलन कैसे किया जाय । और समस्त विश्व के राष्ट्र इस व्याख्या के अंतर्गत अपना विकास करने हेतु निरंतर प्रयासरत है ।
"संभाव्य सुदृढ़ विकास" के माने स्पष्ट है कि (१) पर्यावरण के संतुलन ही "संभाव्य सुदृढ़ विकास" की बुनियाद है । (२) इसलिए विकास के नाम पर पर्यावरण और जीवसृष्टि की प्राथमिक या अंधाधुंध अवहेलना नहीं की जायेगी (३) पर्यावरण का संतुलन या विकास का आयोजन एक ही सिक्के के दो पहलू है । (४) पर्यावरण बनाम विकास या विकास बनाम पर्यावरण, दोनों ही "संभाव्य सुदृढ़ विकास" के परिपक्व अन्वेषण से परस्पर सहायक और पूरक है ।