२ अप्रैल को भारत सरकार के पाल्हे से मिडिया के पाल्हे मे एक ख़बर उछाली गई । सरकार मंहगाई रोकने के लिए कमिटी (कमीशन ) बनाने का फरमान जारी कर दिया । हमारे देश मे एक परंपरा चली आ रही है इस परंपरा को सभी सरकारें सिद्दत से निभा भी रही है कि पहले समस्या पैदा करो और जब समस्या विकराल रूप धारण करले तो उसके समाधान हेतु सुझाव प्राप्त करने के लिए एक कमिटी (कमीशन ) का गठन कर दो ।
इतिहास गवाह है कमिटीयां सरकारों को अपना रिपोर्ट देने मे अच्छा-खासा समय लगाती है " तुम मुझे समय दो मैं तुम्हे रिपोर्ट दूंगी" का टैग लटकाए ए कमिटीयां अपनी रिपोर्ट जब सरकारों को सौंपती है तो सरकारी नुमाइन्दो के पास रिपोर्ट पढ़ने का समय नही होता रिपोर्ट मे दिए गए सुझावों को लागु करना तो दूर की बात है ।
अरे भाई मंहगाई को रोकने का नाटक आम जनता के सामने क्यों कर रहे हो मंहगाई तो आप ने ही बढाया है ? अगर मंहगाई को आप नही रोक पा रहे हो तो आप की कमेटी (कमीशन ) क्या खाक मंहगाई रोकेगी ? यह समस्या तो आपने ही सरकारी खजाने को भरने के चक्कर मे खडा किया है । वायदा बाजार के नाम पर खाद्यानों की सट्टा-बाजारी कराना और उनसे भी टैक्स वसूलने के फिराक मे "कमोडिटी ट्रांजेक्शन टैक्स" ( जिसका गजट आना बाकी है ) आप मुनाफा कमाओगे तो मंहगाई बढेगी ही ।
राष्ट्रीय स्तर पर किसानों की पैरवी करने वाले सी आई एफ ए के मुख्य सचिव पी चेंगल रेड्डी ने बताया है की सकल घरेलु उत्पाद (जीडीपी) मे कृषि की हिस्सेदारी १९८२-८३ के ३६.४ प्रतिशत से घट कर २००६-०७ मे १८.५ प्रतिशत रह गई इसीसे मंहगाई के सही तस्वीर का अंदाजा लगाया जा सकता है । आपको जानकर हैरानी होगी कि वायदा बाजार मे दो एक्सचेंज है एम् सी एक्स और एन सी डी ई एक्स पिछले महीने मे एक एक्सचेंज मे कपास के दाम ८० रूपये सस्ता था और दुसरे मे ८० रूपये मंहगा हम सरकार से जानना चाहते है कि फॉरवर्ड मार्केट कमीशन (एफ एम् सी ) का रोल क्या है ? एफ एम् सी ने कुछ चुनिंदा मंडियों और वायदा कारोबारियों को खाद्यानों के भाव के उतार-चढाव को नियंत्रित करने छूट क्यों दे रक्खी है ?
दरसल सरकार मंहगाई को नियंत्रित करने के लिए यह कसरत नही कर रही है । उसकी गिद्धदृष्टि लोकसभा के चुनावों को लेकर है उसे यह पता है कि अगर उसने मंहगाई रोकने के लिए जनता के समक्ष दिखावा नही करेगी तो जनता उसे लोकसभा चुनावों मे सस्ते मे ही निपटा देंगी ।